(प्रारम्भिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन 1 & 3: भारतीय विरासत और संस्कृति &संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।)
चर्चा में क्यों
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय जारी कर केंद्र सरकार को देश भर में पवित्र उपवनों के प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने का निर्देश दिया है।
न्यायालय का यह निर्णय राजस्थान में लुप्त हो रहे वनों के मुद्दे से संबंधित दायर याचिका पर सुनवाई के बाद आया है।
पवित्र उपवन से तात्पर्य
पवित्र उपवन वनों के वे हिस्से हैं जिन्हें स्थानीय समुदायों द्वारा उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्त्व के कारण पारंपरिक रूप से संरक्षित किया जाता है।
ये उद्यान पौधों, जानवरों और कीटों की विभिन्न प्रजातियों को सहारा देकर जैव विविधता संरक्षण में भी योगदान देते हैं।
भारत में पवित्र उपवन मुख्यतः तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान में पाए जाते हैं।
प्रक्रिया की निगरानी हेतु समिति का गठन
मानचित्रण और पहचान प्रक्रिया की देखरेख के लिए 5 सदस्यीय पैनल का गठन किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे।
सदस्य- डोमेन विशेषज्ञ, मुख्य वन संरक्षक, वरिष्ठ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन अधिकारी, राजस्थान के वन और राजस्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारी।
पारंपरिक समुदायों का सशक्तीकरण
न्यायालय ने उन पारंपरिक समुदायों को सशक्त बनाने के महत्त्व पर भी बल दिया, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से पवित्र उपवनों की रक्षा की है-
इन समुदायों को वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत मान्यता दी जानी चाहिए, जो स्थानीय समुदायों को संरक्षण अधिकार प्रदान करता है।
इन समुदायों के सशक्तीकरण से बागो में असंवहनीय या हानिकारक गतिविधियों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी, जिससे दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित होगा।
राजस्थान सरकार को विशिष्ट निर्देश
न्यायालय ने राजस्थान सरकार को विशेष रूप से निर्देश दिया कि वह -
पवित्र उपवनों का भू एवं उपग्रह मानचित्रण करे।
आकार के बजाय सांस्कृतिक/पारिस्थितिक महत्व पर ध्यान दें।
वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत सामुदायिक रिजर्व घोषित करे।
न्यायालय के निर्णय का महत्त्व
परंपरागत रूप से, वन्यजीव संरक्षण राज्य की जिम्मेदारी रही है और केंद्र सरकार ऐसे मामलों को राज्यों पर छोड़ देती है।
हालाँकि, न्यायालय के निर्णय ने जिम्मेदारी को बदल दिया है तथा केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को इन वनों के संरक्षण के लिए नीति बनाने का निर्देश दिया है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पवित्र उपवनों का राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण करने, उनके स्थानों की पहचान करने तथा उनकी सीमाओं का मानचित्रण करने का कार्य सौंपा गया है।
सर्वेक्षण के तहत वनों की कटाई, भूमि उपयोग में परिवर्तन और अवैध अतिक्रमण जैसे खतरों से इन वृक्षों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।
इसके अलावा, इन उद्यानों के उनके आकार या विस्तार के बजाय इनके सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
10 जनवरी, 2025 को मामले की समीक्षा की जाएगी, ताकि राजस्थान सरकार द्वारा निर्देशों के अनुपालन का मूल्यांकन किया जा सके, जिसमें निरीक्षण समिति का गठन और पवित्र उपवन सर्वेक्षण की प्रगति शामिल है।
पिपलांत्री गांव का उदाहरण
सामुदायिक प्रयास : बंजर भूमि को हरे-भरे वृक्षों में बदलना।
प्रमुख अभ्यास :
प्रत्येक बालिका के जन्म पर 111 पेड़ लगाना (मुख्यतः नीम, शीशम, आम, आंवला)।
परिणामस्वरूप स्थायी नौकरियाँ, कन्या भ्रूण हत्या में कमी, स्थानीय आय में वृद्धि, शिक्षा और महिला सशक्तीकरण हुआ।