प्रारम्भिक परीक्षा – शनि ग्रह मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-1 |
चर्चा में क्यों
- Earth.com के अनुसार, शनि ग्रह के छल्ले वर्ष 2025 में पृथ्वी से कुछ समय के लिए अदृश्य हो जाएंगे और उसके बाद फिर से दिखाई देंगे।
शनि के छल्लों का अस्थायी रूप से अदृश्य होने का कारण-
- शनि के छल्लों का अस्थायी रूप से पृथ्वी से अदृश्य होने और फिर से बाद में दिखाई देने का प्रमुख कारण शनि के घूर्णन अक्ष का झुकाव तथा एक ऑप्टिकल भ्रम है।
- इस घटना को सैटर्नियन विषुव कहा जाता है। आखिरी बार यह खगोलीय घटना सितंबर 2009 में हुई थी । यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, अगला विषुव मार्च या मई, 2025 में होने की उम्मीद है।
प्रमुख बिंदु
- पृथ्वी का घूर्णन अक्ष 23.5 डिग्री झुका हुआ है तथा शनि के घूर्णन अक्ष का झुकाव 26.7 डिग्री है जिससे इसकी विशाल वलय प्रणाली भी कक्ष तल पर झुकी हुई है।
- जब शनि सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता है, तो पृथ्वी से देखने पर वह ऊपर-नीचे घुमता हुआ प्रतीत होता है जिससे उसके छल्लों का दृश्य भी बदलता रहता है।
- पृथ्वी से शनि ग्रह की दूरी अत्यधिक होने के कारण इसके छल्ले बहुत पतले प्रतीत होते हैं, जिससे उन्हें देख पाना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए ये छल्ले जब पृथ्वी से संरेखित होते हैं तब ये अनिवार्य रूप से अदृश्य हो जाते हैं।
- उदहारण- किसी स्टेडियम के विपरीत छोर से पतले कागज की एक शीट को पकड़कर घुमाने पर उसका किनारा हमें अदृश्य दिखाई प्रतीत होता है ठीक उसी प्रकार से ये घटना घटित होती है।
- प्रत्येक 13 से 15 वर्ष में, इसके छल्लों का किनारा सीधे पृथ्वी के साथ संरेखित होता है तब शनि के छल्ले अदृश्य हो जाते हैं।
- शनि को सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा पूरी करने में 29.5 वर्ष लगते हैं।
- मार्च 2025 में शनि के छल्ले पृथ्वी से दिखाई नहीं देंगे क्योंकि वे हमारी दृष्टि रेखा के साथ पूरी तरह से संरेखित होंगे।
- शनि ग्रह जैसे-जैसे सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता रहेगा, छल्ले धीरे-धीरे वर्ष 2032 में फिर से दिखाई देने लगेंगे।
भविष्य में शनि के छल्ले गायब हो जायेंगे-
- नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, अगले 300 मिलियन वर्षों में या उससे भी पहले शनि ग्रह के छल्ले पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे।
शनि के वलय:
- नासा के अनुसार शनि के छल्ले विशाल और जटिल संरचनाएँ बनाते हैं। शनि के छल्लों में अधिकांश कण पानी के बर्फ से बने हैं। इनका आकार माइक्रोन से लेकर 10 मीटर तक है।
- ये छल्ले शनि तथा उसके चंद्रमाओं के गुरुत्वाकर्षण के कारण जुड़े हैं।
शनि (Saturn) :
- यह आकार में बृहस्पति के बाद सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
- यह सूर्य की परिक्रमा 29.5 वर्ष में पूरी करता है। इस ग्रह की सबसे बड़ी विशेषता या रहस्य इसके मध्यरेखा के चारों ओर पूर्ण विकसित 7 वलयों का होना है।
- यह वलय अत्यंत छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने हैं, जो सामूहिक रूप से गुरूत्वाकर्षण के कारण इसकी परिक्रमा करते हैं।
- शनि ग्रह को 'गैसों का गोला (Globe of Gases) एवं गैलेक्सी समान ग्रह (Galaxy Like Planet) भी कहा जाता है।
- आकाश में यह ग्रह पीले तारे के समान दृष्टिगत होता है।
- इसके वायुमंडल में भी बृहस्पति की तरह हाइड्रोजन, होलियम, मीथेन और अमोनिया गैसे मिलती हैं।
- उपग्रह : इसके 62 उपग्रह हैं। टाइटन शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है, जो आकार में बुध ग्रह के लगभग बराबर है। यह उपग्रह मंगल ग्रह के समान नारंगी रंग का है।
- टाइटन पर वायुमंडल और गुरुत्वाकर्षण दोनों बराबर हैं। इसके अन्य प्रमुख उपग्रह मीमास, डायोन, और फोबे आदि हैं।
- फोबे उपग्रह शनि के कक्षा के विपरीत दिशा में परिक्रमा करता है।
- शनि अंतिम ग्रह है जिसे पृथ्वी से आँखों द्वारा देखा जा सकता है।
प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न:- निम्नलिखित में से सौरमंडल में स्थित किस ग्रह का छल्ला वर्ष 2025 में अदृश्य हो जायेगा?
(a) अरुण (Uranus)
(b) वरुण (Neptune)
(c) शनि (Saturn)
(d) बृहस्पति (Jupiter)
उत्तर: (c)
मुख्य परीक्षा प्रश्न:- सैटर्नियन विषुव क्या है? इसके घटित होने के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।
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