( प्रारंभिक परीक्षा के लिये - संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950, आरक्षण )
( मुख्य परीक्षा के लिये, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय )
सन्दर्भ
- हाल ही में सर्वोच्च न्यायलय ने केंद्र सरकार से संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार से स्थिति स्पष्ट करने मांग की है।
- संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 केवल हिन्दू, सिख तथा बौद्ध धर्म से संबंध रखने वाले समुदायों को ही अनुसूचित जाति की मान्यता प्रदान करता है।
अनुसूचित जाति
- अंग्रेजी शासनकाल के दौरान वर्ष 1931 में साइमन कमीशन ने भारत में अछूत जातियों के सर्वे का आदेश जारी किया। इसके तहत जेएच हट्टन को जनजातीय जीवन एवं प्रणाली के पूर्ण सर्वेक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई।
- हट्टन कमेटी ने देश की जातियों का सर्वे किया, और 68 जातियों को अछूत की श्रेणी में रखा।
- अंग्रेजी सरकार ने इस रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट के तहत 68 जातियों को विशेष दर्जा दिया। ये जातियां स्पेशल कास्ट यानी एससी कहलायी।
- संविधान के निर्माण के बाद समाज के निचले तबके को मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण का प्रस्ताव किया गया। इसके तहत छुआछूत की शिकार जातियों को आरक्षण के दायरे में लाया गया। चूंकि ये जातियां संविधान के दायरे में आईं, इसलिए अनुसूचित जातियाँ(शेड्यूल कास्ट) कहलाईं।
- संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 केवल उन्ही समुदायों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता देता है, जो हिन्दू धर्म से सम्बंधित है।
- 1956 में काका कालेलकर आयोग की सिफारिश पर संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 में संसोधन करने के बाद सिख धर्म से सम्बंधित समुदायों को भी अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर लिया गया।
- संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 में, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर उच्चाधिकार प्राप्त पैनल की रिपोर्ट पर 1990 में एक बार फिर संसोधन किया गया, और बौद्ध धर्म से सम्बंधित समुदायों को भी अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर लिया गया।
अनुसूचित जाति में शामिल करने की प्रक्रिया
- किसी भी समुदाय को अनुसूचीत जाति की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया की शुरुआत राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
- राज्य सरकार किसी समुदाय को अनुसूचित जाती में शामिल करने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेज देती है।
- जिसके बाद इस प्रस्ताव पर भारत के महापंजीयक तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की मंजूरी ली जाती है।
- इसके बाद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय संसद में संसोधन विधेयक पेश करता है।
- संसद से प्रस्ताव पास किए जाने के बाद तथा राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद प्रस्ताव में वर्णित समुदाय अनुसूचित जाति की सूची में शामिल हो जाते है।
- अनुसूचित जाति की मान्यता राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश विशिष्ट होती है। मतलब अनुसूचित जाति की सूची प्रत्येक राज्य के लिये अलग-अलग होती है।
- कोई समुदाय जो एक राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत है, आवश्यक नहीं है, की वो किसी अन्य राज्य में भी अनुसूचित जाति ही माना जाये।
अनुसूचित जातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 15(4) पिछड़े वर्गों (एससी सहित) की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता की प्रथा को समाप्त करता है।
- अनुच्छेद 46 अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा समाज के कमज़ोर वर्गों के शैक्षणिक व आर्थिक हितों को प्रोत्साहन और सामाजिक अन्याय एवं शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है।
- पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX और नगर पालिकाओं से संबंधित भाग IXA में SC तथा ST के सदस्यों को आरक्षण दिया गया है।
- अनुच्छेद 330 अनुसूचित जातियों के लिये लोकसभा में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 332 राज्य विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 335 केंद्र और राज्यों की सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्तियां करने के लिए एससी और एसटी के दावों पर विचार करने का प्रावधान करता है।
अनुसुचित जातियों से संबंधित वैधानिक प्रावधान
- संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950
- अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
- अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015