(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन, गरीबी एवं भूख से संबंधित विषय)
संदर्भ
हाल ही में, नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य से संबंधित ‘एस.डी.जी. इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड’ का तीसरा संस्करण जारी किया।
एस.डी.जी. इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड
- नीति आयोग ने इस वर्ष के इंडेक्स को ‘एस.डी.जी. इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड 2020-21: पार्टनरशिप्स इन द डिकेड ऑफ एक्शन’ शीर्षक से जारी किया गया। इसे सर्वप्रथम वर्ष 2018 में जारी किया गया था।
- यह सूचकांक व्यापक रूप से सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने की दिशा में राज्यों एवं केंद्र-शासित प्रदेशों द्वारा की गई प्रगति का आकलन करके उनकी रैंकिंग निर्धारित करता है। इसने राज्यों और केंद्र- शासित प्रदेशों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है।
- नीति आयोग द्वारा परिकल्पित एवं विकसित, इस सूचकांक को प्राथमिक हितधारकों- राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों; भारत में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों; सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के साथ-साथ अन्य प्रमुख केंद्रीय मंत्रालयों के साथ व्यापक परामर्श के बाद तैयार किया गया है।
शामिल संकेतक
- वर्ष 2018 में इस रिपोर्ट के पहले संस्करण में 62 संकेतकों के साथ 13 लक्ष्यों को कवर करने से लेकर इसके तीसरे संस्करण में 115 मात्रात्मक संकेतकों के साथ 16 लक्ष्यों को शामिल किया गया है। राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क (NIF) के साथ अपेक्षाकृत अधिक साम्य रखते हुए एस.डी.जी. इंडिया इंडेक्स 2020-21 लक्ष्यों और संकेतकों के व्यापक कवरेज की वजह से पिछले संस्करणों की तुलना में अधिक मज़बूत है।
- इस रिपोर्ट का यह संस्करण एक विषय के रूप में साझेदारी के महत्त्व पर केंद्रित है। इसके विवरण इस पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे सहयोग से जुड़े पहलों के परिणाम बेहतर और अधिक प्रभावी हो सकते हैं। यह सूचकांक राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से जुड़े होने के साथ–साथ 2030 एजेंडा के तहत वैश्विक लक्ष्यों की व्यापक प्रकृति को अभिव्यक्त करता है।
- इस सूचकांक की मॉड्यूलर प्रकृति स्वास्थ्य, शिक्षा, लिंग, आर्थिक विकास, संस्थानों, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण सहित निर्धारित लक्ष्यों की विस्तृत प्रकृति पर राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों की प्रगति का आकलन करने का एक नीतिगत उपकरण है।
गणना
- एस.डी.जी. इंडिया इंडेक्स प्रत्येक राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश के लिये 16 एस.डी.जी. पर लक्ष्य-वार स्कोर की गणना करता है। ये स्कोर 0 से 100 के बीच होते हैं।
- यदि कोई राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश 100 का स्कोर प्राप्त करता है, तो यह दर्शाता है कि उसने 2030 के लक्ष्य हासिल कर लिये हैं। किसी राज्य/केंद्र- शासित प्रदेश का स्कोर जितना अधिक होगा, उतनी ही अधिक दूरी तक उसने लक्ष्य प्राप्त कर लिया होगा।
- राज्यों और केंद्र- शासित प्रदेशों को उनके एस.डी.जी. इंडिया इंडेक्स स्कोर के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है :
- प्रतियोगी (एस्पीरेंट) : 0 से 49 के बीच स्कोर
- प्रदर्शन करने वाला (परफ़ॉर्मर) : 50 से 64 के बीच स्कोर
- सबसे आगे चलने वाला (फ्रंट-रनर) : 65 से 99 के बीच स्कोर
- लक्ष्य प्राप्त करने वाले (एचीवर) : 100
परिणाम और निष्कर्ष
- देश के समग्र एस.डी.जी. स्कोर में 6 अंकों का सुधार हुआ है। वर्ष 2019 में 60 से बढ़कर वर्ष 2020-21 में यह 66 हो गया हैं। लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में यह कदम बड़े पैमाने पर लक्ष्य-6 (साफ पानी और स्वच्छता) और लक्ष्य-7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) में बेहतरीन देशव्यापी प्रदर्शन से प्रेरित है, जिसके समग्र लक्ष्य स्कोर क्रमशः 83 और 92 हैं।
- इस इंडेक्स में केरल पिछली बार की तरह इस बार भी शीर्ष पर है, जबकि राज्यों में बिहार सबसे निचले पायदान पर हैं।
- वर्ष 2019 के स्कोर में सुधार के मामले में मिज़ोरम, हरियाणा और उत्तराखंड 2020-21 में क्रमशः 12, 10 और 8 अंकों की वृद्धि के साथ शीर्ष पर हैं। जहाँ वर्ष 2019 में दस राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश फ्रंट-रनर की श्रेणी में थे, वहीं वर्ष 2020-21 में बारह अन्य राज्य/केंद्र- शासित प्रदेश इस श्रेणी में पहुँच गए हैं।
- उत्तराखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, मिजोरम, पंजाब, हरियाणा, त्रिपुरा, दिल्ली, लक्षद्वीप, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख फ्रंट-रनर की श्रेणी में पहुँच गए हैं। एस्पीरेंट और एचीवर की श्रेणी में कोई भी राज्य नहीं है।
चुनौतियाँ
- भारत में वर्ष 2020 में स्वच्छ ऊर्जा, शहरी विकास और स्वास्थ्य से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है, हालाँकि, उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचे के साथ आर्थिक विकास के क्षेत्रों में बड़ी गिरावट देखी गई है।
- एक ओर दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों तथा दूसरी ओर उत्तर-मध्य और पूर्वी राज्यों के बीच एस.डी.जी. पर उनके प्रदर्शन में भारी अंतर लगातार सामाजिक-आर्थिक और शासन संबंधी असमानताओं की ओर इशारा करता है।
- असमानता (Inequality) से संबंधित एस.डी.जी. में वर्ष 2019 की तुलना में सुधार दिखता है। हालाँकि, इसको मापने के लिये प्रयोग किये जाने वाले संकेतक बदल गए हैं। इस वर्ष के सूचकांक में कई आर्थिक संकेतकों को छोड़ दिया गया है और सामाजिक समानता के संकेतकों को अधिक महत्त्व दिया गया है।
- इसमें विधायिका और स्थानीय स्व-शासन संस्थानों में महिलाओं व हाशिए के समुदायों के लोगों का प्रतिनिधित्व एवं अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के खिलाफ अपराध जैसे संकेतकों को शामिल किया गया है।
- आर्थिक संकेतकों को छोड़ना एक महत्त्वपूर्ण चूक हो सकती है क्योंकि कोविड-19 के प्रभाव संबंधी संयुक्त राष्ट्र के आकलन में कहा गया है कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में असमानता बढ़ सकती है।
सहकारी संघवाद को बढ़ावा
- एस.डी.जी. को अपनाने, लागू करने और निगरानी करने में भारत की सफलता सहकारी संघवाद के सिद्धांत के लिये एक अच्छा संकेत है, जिसे भारत सरकार द्वारा परिकल्पित और नीति आयोग द्वारा प्रचारित किया गया है।
- नीति आयोग के पास देश में एस.डी.जी. को अपनाने और उसकी निगरानी करने तथा राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों के बीच प्रतिस्पर्धी और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने का दोहरा अधिकार है।