संदर्भ
हाल ही में, प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद् (TIFAC) ने अपनी स्थापना की 34वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘सी-वीड’ मिशन की शुरुआत की है।
उद्देश्य व लाभ
- इसका उद्देश्य समुद्री शैवाल की व्यावसायिक कृषि व प्रसंस्करण के माध्यम से मूल्य संवर्धन के द्वारा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
- देश के 10 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र या 5% विशेष आर्थिक क्षेत्र में शैवालों की व्यावसायिक खेती से 5 करोड़ लोगों को रोज़गार प्राप्त होने का अनुमान है। इससे समुद्री शैवाल उद्योग स्थापित करने में मदद मिलेगी, जिसका जी.डी.पी. में महत्त्वपूर्ण योगदान होगा।
- शैवाल की व्यावसायिक खेती के कई लाभ होने के बावजूद भारत में अभी भी इसकी व्यावसायिक खेती उपयुक्त पैमाने पर नहीं की जाती जैसे की दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में की जाती है। अत: इसको बड़े पैमाने पर शुरू करने में सहायता प्राप्त होगी।
- समुद्री उत्पादों में वृद्धि कर जल क्षेत्रों में शैवालों की अनावश्यक प्रसार को कम करने में मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त यह कार्बन डाइ आक्साइड को अवशोषित कर समुद्री पर्यावरण को बेहतर बनाने के साथ-साथ 6.6 अरब टन जैव ईंधन का उत्पादन करने में सक्षम होगा।
समुद्री शैवाल की स्थिति
- वैश्विक स्तर पर समुद्री शैवाल का उत्पादन लगभग 32 मिलियन टन है। कुल वैश्विक उत्पादन में चीन का योगदान 57% और इंडोनेशिया का 28% है, जबकि भारत में इसका उत्पादन मात्र 0.01-0.02% होता है।
- उल्लेखनीय है कि भारत में समुद्री शैवाल की अपार क्षमता को ध्यान में रखते हुए टाइफैक ने वर्ष 2018 में एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में इस क्षेत्र से संबंधित संभावनाओं पर ध्यान आकर्षित करने के साथ-साथ इससे सबंधित सुझावों को लागू करने के लिये रोड मैप भी तैयार किया गया था।
- शैवालों की कृषि के लिये गुजरात, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक में कुछ स्थानों का प्रस्ताव किया गया है।