(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : विषय- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ।)
हाल ही में, एक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि मतपत्र की गोपनीयता, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की आधारशिला है। न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र में गुप्त मतदान प्रणाली द्वारा स्वतंत्र चुनावों को सुनिश्चित किया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु :
- उच्चतम न्यायालयने माना कि मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र (Constitutional Democracy) का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है औरजन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम (Representation of People Act), 1951 की धारा 94 इस सिद्धांत की बात करतीहै।
- अक्सर यह सम्भावना होती है कि मतदाता को उसके द्वारा दिये गए मत का खुलासा करने के लिये दबाव बनाया जाता है, धारा 94 मतदाताओं के गोपनीयता के विशेषाधिकार को बनाए रखती है।
- यद्यपि मतदाता यदि अपने द्वारा दिये गए मत का स्वेच्छा से खुलासा करना चाहता है तो वह कर सकता है, न्यायालय ने भी यह स्वीकार किया है कि मतदाताओं को न तो ऐसा करने से रोका जा सकता है न तो किसी के द्वारा इसकी शिकायत की जा सकती है।
पृष्ठभूमि:
- ध्यातव्य है कि यह निर्णय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले के विरोध में दाखिल की गई याचिका पर सुनाया गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अक्तूबर 2018 को प्रयागराज ज़िला पंचायत की एक बैठक में जिला पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ पारित अविश्वास प्रस्ताव को रद्द कर दिया था।
- उच्च न्यायालय के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव में कुछ सदस्यों द्वारा मतपत्र की गोपनीयता के नियम का उल्लंघन किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने सी.सी.टी.वी. फुटेज के आधार यह निष्कर्ष निकाला कि जिला पंचायत के सदस्यों द्वारा मतपत्रों को जानबूझ कर दिखाया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत अधिनियम, 1961 की धारा 28(8) का हवाला देते हुए गुप्त मतदान प्रणाली द्वारा अगले दो महीनों के भीतर पुन: मतदान का आदेश दिया।
- इसमें यह प्रावधान है कि गुप्त मतदान द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होगा।
गुप्त मतदान की पुनर्स्थापना :
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.) की शुरुआत के बाद से मतपत्र की गोपनीयता एक राष्ट्रीय धारणा बन गई है ।
- भारत में मतदाताओं को अक्सर लगता है कि केवल वे और उनके विश्वस्त लोग ही जानते हैं कि उन्होंने किसे वोट दिया था, जो कि वास्तव में सच नहीं है क्योंकि ई.वी.एम.के द्वारा भी मतदान के पैटर्न के बारे में सटीक जानकारी मिल जाती है।
- प्रत्येक ई.वी.एम. का उपयोग लगभग 1,400 मतदाताओं के लिये किया जाता है और ई.वी.एम. में डाले गए वोट व्यक्तिगत रूप से गिने जाते हैं और उन्हें बूथ-वार एकत्रित किया जाता है।
- ई.वी.एम.की शुरुआत से पहले, मतदान के पैटर्न को सार्वजनिक होने से रोकने के लिये अक्सर मतपत्रों को मिला दिया जाता था।
- वोटिंग पैटर्न की जानकारी से राजनीतिक दलों को फायदा होता है जिसे बेअसर करने के लिये निर्वाचन क्षेत्र में वोटों की गिनती के लिये टोटलाइज़र्स का प्रयोग किया जाता है।
टोटलाइज़र :
- यह एक ऐसी युक्ति है जिससे 14 बूथों के मतों को एक साथ गिना जा सकता है।
- इसके द्वारा प्राप्त परिणाम में किसी भी प्रकार का मतदान पैटर्न नहीं दिखता है जिससे किसी उम्मीदवार द्वारा मतदाताओं को चुनाव पूर्व धमकी या चुनाव के बाद के उत्पीड़न को रोका जा सकता है।
जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम (Representation of People Act) 1951 :
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का आयोजन स्वस्थ लोकतंत्र का आधार है। स्वतंत्रऔर निष्पक्ष तरीके से चुनाव के संचालन को सुनिश्चित करने के लिये, संविधान-निर्माताओं ने संविधान में भाग XV (अनुच्छेद 324-329) को शामिल किया और चुनावी प्रक्रिया को सुदृढ़ करनेके लिये संसद को और सशक्त बनाया।
- चुनाव आयोग भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का सजग प्रहरी है और संविधान के अनुच्छेद 324 में इसकी स्थापना की बात की गई है।
- इस संदर्भ में, संसद ने जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 बनाया।
जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम’1951 के प्रमुख प्रावधान:
- यह चुनावों और उप-चुनावों के वास्तविक आचरण को नियंत्रित करता है।
- यह चुनाव कराने के लिये प्रशासनिक मशीनरी प्रदान करता है।
- यह राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिये आधार प्रदान करता है।
- यह सदनों की सदस्यता के लिये योग्यता और अयोग्यता को निर्धारित करता है।
- यह भ्रष्ट क्रियाकलापों और अन्य अपराधों को रोकने के लिये प्रावधान उपलब्ध कराता है।
- यह चुनावों से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया को पूरा करता है।
आगे की राह :
- लोकतंत्र में, चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता से ज्यादा महत्त्वपूर्ण शायद कुछ नहीं है, इसलिये चुनाव न केवल स्वतंत्र होना चाहिये, बल्कि निष्पक्ष भीहोना चाहिये।
- चुनाव आयोग को लोकतंत्र को वास्तव में जीवंत बनाने के लिये और मतदाताओं के अधिकारों को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के साथ-साथ उनके मतदान की गोपनीयता के लिये भी और ज़्यादा मुखर होने की आवश्यकता है।
(स्रोत: द हिंदू)