संदर्भ
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की धारा 32 A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।
दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता कोड (IBC) की धारा 32 A
- आई.बी.सी. की धारा 32 A में यह प्रावधान किया गया है कि कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया शुरू होने से पहले कॉर्पोरेट देनदारों पर अपराधों के लिये न्यायिक प्राधिकरण द्वारा मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और न हीं उनकी संपत्ति पर कार्रवाई की जाएगी।
- ध्यातव्य है कि संसद द्वारा आर्थिक सुधारों की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था। इसके तहत विफल हो चुके या घाटे में चल रहे व्यवसायों के लिये एक तीव्र और उचित समाधान प्रक्रिया का प्रावधान किया था।
- दिवालिया वह व्यक्ति या संस्था होती है, जिसे ऋण या वित्तीय दायित्वों को ना चुकाने की स्थिति मेंकोर्ट द्वारा दिवालिया घोषित किया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान निर्णय और इसका महत्त्व
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि आई.बी.सी. के तहत कॉर्पोरेट देनदार के लिये सफल बोलीदाता को किसी भी जाँच एजेंसी,जैसे- प्रवर्तन निदेशालय (ED) या अन्य वैधानिक निकायों (सेबी) से सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
- आई.बी.सी. की धारा 32 A की वैधता को बरकरार रखने का उद्देश्य ऐसे बोलीदाताओं को आकर्षित करना है जो कॉर्पोरेट देनदार को उचित मूल्य प्रदान करें ताकि कॉर्पोरेट इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस (CIRP) को समय पर पूरा किया जा सके।
- हालाँकि, न्यायिक सुरक्षा ‘अनुमोदित संकल्प योजना’ और कॉर्पोरेट देनदार के प्रबंधन नियंत्रण में बदलाव होने पर ही लागू होगी।
- आई.बी.सी. के लागू होने से लेकर अब तक अनेक समाधान योजनाएँ बाधित हुई हैं क्योंकि इसमें अनेक एजेंसियों और नियामकों द्वारा चुनौती प्रस्तुत की जाती रही है। अतः धारा 32 A की वैधता को बरकरार रखने से इन समाधान योजनाओं के शीघ्र पूरा किया जा सकेगा।
- सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय बोलीदाताओं को कंपनी का सही मूल्यांकन करने और निष्पक्ष बोली लगाने में मदद करेगा, जिससे बैंक अपने खाते से दबावग्रस्त ऋणों को हटा सकेंगे।
- इससे बोलीदाता बिना किसी अड़चन के तथा अधिक विश्वास के साथ विवादित कंपनियों और उनकी परिसंपत्तियों के लिए बोली लगाने के लिये प्रेरित होंगे।