(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - धारा 66A से संबंधित मुद्दे, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – सरकारी नीतियाँ, न्यायपालिका)
चर्चा में क्यों
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 66A को निरस्त करने के उसके फैसले के बाद भी कुछ राज्यों में इस धारा के तहत केस दर्ज होना चिंताजनक है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को अदालत द्वारा असंवैधानिक करार दिए गए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A के तहत सोशल मीडिया पर स्वतंत्र भाषण देने पर मुकदमा दर्ज ना करने का आदेश दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों के साथ-साथ, राज्यों के गृह सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों में सक्षम अधिकारियों को निर्देश दिया, कि वे अपने संबंधित राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में धारा 66A के कथित उल्लंघन के संबंध में अपराध की कोई शिकायत दर्ज ना करें।
- हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया, कि यह निर्देश केवल धारा 66A के तहत आरोप पर लागू होगें, किसी अन्य अपराधों पर नहीं।
धारा 66A
- आईटी एक्ट, 2000 में वर्ष 2008 में संसोधन के द्वारा धारा 66A को जोड़ा गया था।
- इसके अनुसार कंप्यूटर रिसोर्स (डेस्कटॉप, लैपटॉप) या संचार उपकरण (मोबाइल, स्मार्टफोन) के माध्यम से संदेश भेजने वाले उन व्यक्तियों को दंडित किया जा सकता है।
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- जो आपत्तिजनक या धमकी भरा संदेश भेजते है।
- जो कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण के जरिए जानबूझकर झूठी सूचना देते है, ताकि किसी को गुस्सा दिलाया जा सके, परेशान किया जा सके या खतरा और बाधा पैदा की जा सके।
- जो आपराधिक धमकी दे और शत्रुता, घृणा या दुर्भावना का वातावरण बनाये।
- जो किसी को इलेक्ट्रॉनिक मेल या इलेक्ट्रॉनिक मेल मेसेज भेजकर परेशान करने, धोखा देने और उससे अपनी पहचान छिपाने का प्रयास करता है।
- ऐसे अपराध के लिए तीन वर्ष तक की जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया था।
- सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस सहित दो न्यायाधीशों की बेंच ने वर्ष 2015 में श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में फ़ैसला सुनाते हुए आईटी एक्ट, 2000 की धारा 66A को रद्द कर दिया था।
धारा 66A से संबंधित मुद्दे
- सुप्रीम कोर्ट के अनुसार धारा 66A से लोगों के जानने का अधिकार भी सीधे तौर पर प्रभावित होता है।
- यह धारा संविधान के अनुच्छेद 19 (भाषण की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) दोनों में दिए गए अधिकारों के विरुद्ध थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई सामग्री या संदेश किसी एक व्यक्ति के लिए आपत्तिजनक हो सकती है, तो दूसरे के लिए नहीं।
- इस धारा के तहत मान्य अपराधों की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं की गयी थी, अपमानजनक, दुर्भावना, धमकी जैसे शब्दों की विभिन्न व्याख्यायें हो सकती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 66A का दायरा काफी व्यापक है, और ऐसे में कोई भी शख्स इंटरनेट पर कुछ भी पोस्ट करने से डरेगा।
- नागरिक अधिकारों से जुड़े संगठनों, एनजीओ की शिकायत रही है, कि सरकार लोगों की आवाज दबाने के लिए आईटी एक्ट की इस धारा का दुरुपयोग करती है।
- ऐसा देखा गया है कि कई प्रदेशों की पुलिस ने वैसे लोगों को गिरफ्तार किया है, जो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आलोचनात्मक टिप्पणियां करते हैं।
- इस कृत्य के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करती है, और तर्क देती है कि ऐसी टिप्पणियों से सामाजिक सौहार्द्र, शांति, समरसता आदि को नुकसान पहुंचता है।
- धारा 66A के विरुद्ध अन्य कानूनों की तरह कोई सुरक्षात्मक उपाय नहीं था, सरकार या स्थानीय पुलिस अपनी सुविधा के अनुसार इसका प्रयोग कर सकती थी।