चर्चा में क्यों-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 (A) के तहत अधिवक्ताओं द्वारा आत्मसम्मान विवाह कराने पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
प्रमुख बिंदु-
- सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के 2014 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अधिवक्ताओं द्वारा कराई गई शादियां वैध नहीं हैं और ‘सुयमरियाथाई’ या ‘आत्म-सम्मान’ विवाह को संपन्न नहीं किया जा सकता है।
- हिंदू विवाह (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 1967 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और यह कानून बन गया। इस संशोधन ने 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम में धारा 7-ए डालकर इसे संशोधित किया।(इसका विस्तार केवल तमिलनाडु राज्य तक था।)
- संशोधन करने के पीछे का तर्क अनिवार्य ब्राह्मण पुजारियों, पवित्र अग्नि और सप्तपदी (सात चरण) जैसे अनुष्ठानों की आवश्यकता को त्यागकर शादियों को मौलिक रूप से सरल बनाना था।
- धारा 7-ए आत्म-सम्मान पर विशेष प्रावधान से संबंधित है। यह कानूनी रूप से किन्हीं दो हिंदुओं के बीच किसी भी विवाह को मान्यता देता है, जिसे ‘सुयमरियाथाई’ या ‘सेरथिरुथा विवाह’ या किसी अन्य नाम से संदर्भित किया जा सकता है।
- आत्मसम्मान विवाह (Self-respect marriages)-
- इस तरह के विवाह रिश्तेदारों, दोस्तों या अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति में संपन्न होते हैं।
- दोनों पक्ष एक-दूसरे को उनकी समझ में आने वाली भाषा में पति या पत्नी घोषित करते हैं।
- विवाह में मंगल सूत्र,माला या अंगूठी पहनाते हैं। हालाँकि ऐसे विवाहों को कानून के अनुसार पंजीकृत करना भी आवश्यक है।
प्रश्न- निम्नलिखित में से ‘सुयमरियाथाई’ का सम्बन्ध है-
(a) शिक्षा
(b) विवाह
(c) भाषा
(d) स्वास्थ्य
उत्तर - (b)
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