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स्वयं सहायता समूह और बढ़ता एन.पी.ए.

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: विषय- भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय,निवेश मॉडल, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)

हाल ही में, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) ने राज्यों से कहा है कि वे गैर-निष्पादनकारी परिसम्पत्तियों (Non Performing Assets - एन.पी.ए.) की वर्तमान स्थिति पर ध्यान दें और स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी. ) से अतिदेय/बकाया राशि की वसूली के लिये सुधारात्मक उपाय लागू करें।

  • उल्लेखनीय है कि यह मुद्दा दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) की समीक्षा बैठक में उठाया गया।
  • जब ऋण लेने वाला व्यक्ति 90 दिनों तक ब्याज या मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण गैर निष्पादित परिसम्पत्ति (नॉन– परफॉर्मिंग एसेट) माना जाता है।

दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय आजीविका मिशन:

  • दीनदयाल अंत्योदय योजना मुख्यतः राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एन.यू.एल.एम.) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) का एकीकरण है।
  • दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डी.ए.वाई.-एन.आर.एल.एम.), ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक महत्‍वपूर्ण योजना है, जिसका उद्देश्‍य गरीबों के विकास के लिये सतत सामुदायिक संस्था‍नों की स्‍थापना करना तथा इसके माध्यम से ग्रामीण गरीबी को समाप्त करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के विविध स्रोतों को प्रोत्‍साहन देना है।
  • केंद्र द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम को राज्‍यों के सहयोग से लागू किया गया है। इस मिशन को वर्ष 2011 में लॉंच किया गया था।
  • यदि आँकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो NRLM का उद्देश्य स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से देश के 600 ज़िलों, 6000 ब्लॉकों, 2.5 लाख ग्राम पंचायतों और 6 लाख गाँवों के लगभग 7 करोड़ गरीब ग्रामीण परिवारों के लिये अगले 8-10 वर्षों की आजीविका को सुनिश्चित करना है।
  • NULM योजना शहरी सड़क विक्रेताओं की आजीविका सम्बंधी समस्याओं को देखते हुए उभरते बाज़ार के अवसरों तक उनकी पहुँच को सुनिश्चित करने के लिये उपयुक्त जगह, संस्थागत ऋण और सामाजिक सुरक्षा व कौशल प्रदान करके आजीविका को सुविधाजनक बनाने से सम्बंधित है।
  • इसके अलावा योजना का लक्ष्य शहरी गरीब परिवारों कीगरीबी और जोखिम को कम करने के लिये उन्हें लाभकारी स्वरोज़गार और कुशल मज़दूरी के अवसर का उपयोग करने में सक्षम करना, जिसके परिणाम स्वरूप ज़मीनी स्तर पर उनकी आजीविका में स्थाई सुधार हो सके।

प्रमुख बिंदु

एस.एच.जी. ऋण एन.पी.ए. के रूप में:

  • मार्च 2020 के अंत तक देश भर में लगभग 54.57 लाख एस.एच.जी.को ऋण के रूप में 91,130 करोड़ रूपए दिये गए हैं।
  • गौरतलब है कि इस राशि का लगभग लगभग 2.37% अर्थात लगभग 2,168 करोड़ रूपए एन.पी.ए. घोषित हो चुके हैं।
  • स्वयं सहायता समूहों को दिये गए बैंक ऋणों में एन.पी.ए. का अनुपात पिछले एक दशक में काफी बढ़ गया है, 2008 में यह 2.90% था जो 2018 में बढ़कर 6.12% तक पहुँच गया है।
  • वित्तीय वर्ष 2018-19 की तुलना में 2019-20 में एस.एच.जी. ऋण के समग्र एन.पी.ए. में 0.19% की वृद्धि हुई है।

राज्य वार वितरण:

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  • उत्तर प्रदेश में 71,907 एस.एच.जी. समूहों द्वारा लिये गए ऋण में से 36.02% मार्च 2020 के अंत तक एन.पी.ए. घोषित हो गया था,जबकि 2018-19 में यह 22.16% था।
  • अरुणाचल प्रदेश में एन.पी.ए. अनुपातमें 43% वृद्धि चौंकाने वाली थी जबकि यहाँ स्वयं सहायता समूहों की संख्या सिर्फ 209 है।
  • ध्यातव्य है कि राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एस आर एल एम) को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा निर्देशित किया गया था कि एन.पी.ए.की ज़िलेवार निगरानी की जाएऔर जहाँ भी एन.पी.ए. या अतिदेय के उदाहरण दिखें वहाँ तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई की जाए।
  • बढ़ते एन.पी.ए. के कारण: वर्ष 2019 में, राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान और पंचायती राज (NIRDPR) ने एस.एच.जी. द्वारा लिये गए ऋणों के एन.पी.ए.पर एक शोध साझा किया था।
  • इसमें पाया गया कि खराब आर्थिक स्थिति, सहयोग का ना होना, प्रशिक्षण की कमी, विवाह और सामाजिक समारोहों के लिये खर्च और आपात चिकित्सा स्थिति आदि एस.एच.जी. द्वारा ऋण का भुगतान न कर पाने के मुख्य कारण हैं।
  • सरकार से ऋण माफी की उम्मीदें रखना भीएस.एच.जी.के खराब वित्तीय प्रबंधन का एक प्रमुख कारण माना गया।

एस.एच.जी. को बढ़ावा देने के लिये केंद्र सरकार द्वारा पहल:

  • कृषि अवसंरचना निधि
  • माइक्रो फ़ूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइज़ेस
  • प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY)
  • आंबेडकर स्वास्थ्य विकास योजना (AHSY)
  • उत्तर पूर्व ग्रामीण आजीविका परियोजना

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान और पंचायती राज (NIRD & PR)

  • यह केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन है जो कि ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के क्षेत्र में एक शीर्ष राष्ट्रीय उत्कृष्ट केंद्र है।
  • इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यू.एन.-एस्कैप के उत्कृष्ट केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त है
  • यह संस्थान प्रशिक्षण अनुसंधान और परामर्श के परस्पर क्रियाकलापों द्वारा, ग्रामीण विकास के पदाधिकारियों, पंचायती राज के निर्वाचित प्रतिनिधियों, बैंकरों, गैर सरकारी संगठनों की ग्रामीण विकास की क्षमता को बढ़ाता है। यह संस्थान, तेलंगाना राज्य में हैदराबाद शहर में स्थित है।
  • एन.आई.आर.डी. एवं पी.आर. ने 2008 में अपने स्थापना वर्ष की स्वर्ण जयंती मनाई।
  • हैदराबाद में मुख्य परिसर के अतिरिक्त, उत्तरपूर्वी-क्षेत्र की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये गुवाहाटी, असम में भी इस संस्थान का एकउत्तर-पूर्वी क्षेत्रीय केंद्र स्थित है।

सुझाव:

  • एस.एच.जी. को विधिवत प्रशिक्षित करना और उन्हें उत्पादों / सेवाओं के लिये बाज़ार लिंकेज प्रदान करना ताकि वे आय सृजन गतिविधि के लिये धन का सही उपयोग कर सकें एवं सरकार द्वारा दी गई ऋण राशि का भुगतान करने में कोई समस्या न उत्पन्न हो। इसके अलावा, ऋण के साथ ही कम ब्याज दर या कम लागत पर स्वास्थ्य व जीवन बीमा प्रदान करने से सदस्यों को सहायता मिलेगी।
  • यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि स्वयं सहायता समूह की ग्रेडिंग सही तरीके से की जाए और ऋण तभी दिये जाएँ जब वह समूह ऋण लेने के लिये उपयुक्त हो। इसके लिये इन समूहों की निरंतर निगरानी ज़रूरी है।
  • ऋण की मात्रा का निर्धारण सही ढंग से होना चाहिये, यह ऋण कितना बड़ा होगा या कितने भागों में दिया जाएगा या इस ऋण के लिये क्या मनाक होने चाहियें यह सब निर्धारित किया जाना बहुत ज़रूरी है।

आगे की राह:

  • एस.एच.जी.के मामले में एन.पी.ए.का बढ़ना चिंता का प्रमुख विषय है, लेकिन सरकार को एस.एच.जी. का समर्थन करने से पीछे नहीं हटना चाहिये। लॉकडाउन के बाद आर्थिक पुनरुद्धार और पुनर्निर्माण बहुत आवश्यक है और ये स्वयं सहायता समूह उसमें सबसे महत्त्वपूर्ण किरदार निभाएंगे।
  • सरकार को विभिन्न माध्यमों से यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि किस प्रकार स्वयं सहायता समूहों की ऋण के प्रति प्रतिबद्धता निर्धारित की जा सके साथ ही इसकी वजह से उनके कार्यों पर कोई असर न पड़े।
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