(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 3- विषय : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)
संदर्भ
- वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के चलते हुए विज्ञान और विकास से जुड़े कार्यों पर नकारात्मक असर पड़ा है अतः वर्ष 2021 में भारत को विज्ञान तथा अनुसंधान के क्षेत्र में विकास व नवोन्मेष की राह पर अपने कदम और मज़बूत करने होंगें।
- इस दिशा में राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (एस.टी.आई.पी.), 2020 का मसौदा महत्त्वपूर्ण है, यह नीति वर्ष 2013 की नीति का स्थान लेगी।
- ध्यातव्य है कि यह मसौदा अनुसंधान और नवाचार क्षेत्र से संबंधित है, जिसके चलते लघु, मध्यम तथा दीर्घकालिक मिशन मोड परियोजनाओं में भी महत्त्वपूर्ण बदलाव आने की संभावना है।
मुख्य बिंदु
- देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास को प्रेरित करने के लिये शक्तियों और कमज़ोरियों की पहचान करना और उनका पता लगाना और साथ ही भारतीय एस.टी.आई.पी. पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक स्पर्धा में खड़ा करना आदि मसौदा नीति के उद्देश्यों में शामिल हैं।
- प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने, पाठ्यक्रमों में विज्ञान और तकनीक व नवाचार पर ज़ोर देने के साथ ही अकादमिक व पेशेवर संस्थाओं में लैंगिक एवं सामाजिक ऑडिट जैसे कई महत्त्वपूर्ण संदर्भ इस नीति की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने में यह मसौदा अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित होगा।
- विगत वर्षो में भारत वैश्विक अनुसंधान एवं विकास केंद्र के रूप में तेज़ी से उभरा है। भारत में बहुराष्ट्रीय अनुसंधान और विकास (Multinationational Research and Development) केंद्रों की संख्या 2010 में 721 थी जो अब 1150 तक पहुँच गई है और वैश्विक नवाचार के मामले में भारत 57वें स्थान पर है।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की नई नीति के समानता और समावेश से जुड़े प्रमुख बिंदुओं में,
- निर्णयन की प्रक्रिया को बेहतर और लोकतान्त्रिक बनाने के लिये महिलाओं को कम-से-कम 30% प्रतिनिधित्व प्रदान करना।
- लैंगिक समानता को सुदृढ़ करने के लिये लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर (एल.जी.बी.टी.) समुदाय को शामिल किये जाने को भी महत्त्व दिया गया है।
- इस नीति में महिला वैज्ञानिकों की संख्या पढ़ाने पर भी ज़ोर दिया गया है।
- नीति के प्रारूप के अनुसार सरकार दुनिया की बेहतरीन 3-4 हज़ार विज्ञान पत्रिकाओं का एकमुश्त सब्सक्रिप्शन ले कर देशवासियों को मुफ्त उपलब्ध कराए जाने पर भी विचार कर रही है, जो ‘एक नेशन, एक सब्सक्रिप्शन’ के तर्ज़ पर किया जाएगा। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की इस पहल से विज्ञान सबके लिये संभव होगा।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- 4 मार्च, 1958 को, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में, स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार, संसद ने विज्ञान नीति पर एक प्रस्ताव पारित किया था।
- इस नीति में विज्ञान द्वारा जीवन के विभिन्न पक्षों एवं मूल्यों पर पड़ने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए शैक्षिक स्वतंत्रता के वातावरण में ज्ञान के अधिग्रहण और प्रसार तथा नई राहों की खोज को प्रोत्साहित करने पर ज़ोर दिया गया था।
- तत्कालीन सरकार द्वारा विज्ञान की प्रगति के लिये गया यह संकल्प देश के वैज्ञानिक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये एक ‘स्प्रिंगबोर्ड’ साबित हुआ।
आगे की राह
- इसमें कोई दो राय नहीं कि विकास के पथ पर कोई देश तभी आगे बढ़ सकता है, जब उसकी भावी पीढ़ी के लिये सूचना, ज्ञान और शोध आधारित वातावरण बने। साथ ही, उच्च शिक्षा के स्तर में व्यापक सुधार और अनुसंधान के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों।
- इसका वर्तमान उदाहरण भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिये दो अलग-अलग टीकों के निर्माण के रूप में देखा जा सकता है।
- बावजूद इसके शोध और नवाचार के क्षेत्र में सतत विकास प्रत्येक स्थान पर एक सामान नहीं हुआ है, जिसे लेकर देश को नये सिरे से नवाचार और विज्ञान के विकास पर ध्यान देना ही होगा। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिये उक्त मसौदा नीति के महत्त्वपूर्ण साबित होगी।
निष्कर्ष
यदि भारतीय शोध क्षेत्र की बात की जाय तो दो प्रमुख प्रश्न सामने आते हैं :
- क्या वैश्विक परिदृश्य में तेज़ी से बदलते घटनाक्रम के बीच भारत में शोध और नवाचार के विभिन्न संस्थान स्थिति के अनुसार बदल रहे हैं?
- क्या अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रतिस्पर्धा के प्रभाव में हाईटेक होने का लाभ शोध क्षेत्र को मिल रहा है?
- यदि 40-50 वर्ष पूर्व की बात की जाय तो भारत में लगभग 50% वैज्ञानिक अनुसंधान विश्वविद्यालयों में ही होते थे, लेकिन धीरे-धीरे वित्त की कमी की वजह से शोध भी पिछड़ता चला गया।
- अध्ययन के अनुसार, अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत के सकल व्यय में वित्तीय वर्ष 2007-08 की तुलना में वर्ष 2017-18 तक लगभग 3 गुना वृद्धि हुई। मगर अन्य देशों की तुलना में यह कम ही है।
- ध्यातव्य है कि ब्रिक्स देशों की यदि बात की जाय तो भारत ने अपने जी.डी.पी. का लगभग 7 % ही अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है जबकि ब्राज़ील ने 1.3 %, रूस ने 1.1%, चीन ने 2.1% और दक्षिण अफीका ने लगभग 0.8 % तक खर्च किया है। दक्षिण कोरिया व इज़राइल इस मामले में लगभग 4 % से अधिक खर्च कर रहे हैं और अमेरिका लगभग 2.8 % खर्च कर रहा है।
- इन असंतोषजनक आँकड़ों के बावजूद भारत को अगले दशक में विज्ञान क्षेत्र के तीन महशक्तियों में शामिल कराना, नई नीति का लक्ष्य है। साथ ही, यह नीति स्थानीय अनुसंधान और विकास क्षमताओं को बढ़ावा देने तथा चुनिंदा क्षेत्रों जैसे घरेलू उपकरणों, रेलवे, स्वच्छ तकनीक, रक्षा आदि में बड़े स्तर पर होने वाले आयात को कम करके बुनियादी ढाँचा स्थापित करने में भी सहायक होगी।