(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास) (मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3: भारतीय अर्थव्यवस्था, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मुंबई स्थित सी.के.पी. सहकारी बैंक का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है।
- पिछले वर्ष भी पी.एम.सी. सहकारी बैंक पर आर.बी.आई. ने वित्तीय अनियमितताओं को लेकर प्रतिबंध लगाया था।
- इन घटनाओं से सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं।
मुख्य बिंदु
- आर.बी.आई. द्वारा इस बैंक के लाइसेंस रद्द करने के पीछे के कारण इसकी आर्थिक स्थिति ख़राब होना है। दरअसल, यह बैंक अपनी वर्तमान तथा भविष्य की जमाओं और देनदारियों को चुकाने में असमर्थ है। साथ ही, अपना पूंजी पर्याप्तता अनुपात (capital Adequacy Ratio-CAR) बनाए रखने में भी असमर्थ है।
- आर.बी.आई. द्वारा महाराष्ट्र राज्य के रजिस्ट्रार ऑफ को-आपरेटिव बैंक से इस संकटग्रस्त बैंक को बंद करने एवं परिशोधन की प्रक्रिया हेतु एक परिसमापक (Liquidator) की नियुक्ति के लिये सुझाव मांगा गया है। ध्यातव्य है कि परिसमापन के समय बैंक का प्रत्येक जमाकर्त्ता 5 लाख रुपए का हकदार होगा जोकि जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation-DICGC) द्वारा दिया जाएगा।
- सितम्बर 2019 में आर.बी.आई. द्वारा पंजाब एवं महाराष्ट्र सहकारी बैंक (पी.एम.सी. बैंक) पर भी वित्तीय अनियमितताओं तथा बैंक की क्षमता से अधिक ऋण अयोग्य ग्राहकों को देने के कारण कई प्रकार की पाबंदियाँ लगाई गई थीं।
पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio):
- यह बैंक की वित्तीय स्थिति को मापने का एक उपकरण है।
- पूंजी पर्याप्तता अनुपात की गणना बैंक की पूंजी को उसकी जोखिम भारित परिसम्पत्तियों से विभाजित करके की जाती है।
- इस अनुपात को बनाए रखने का मुख्य उद्देश्य, बैंकों को दिवालियापन (Insolvency) की स्थिति से बचाना और ग्राहकों के धन को सुरक्षा प्रदान करना है।
- इसमें ‘उच्च पूंजी पर्याप्तता अनुपात’ वाले बैंक को सुरक्षित माना जाता है, जो अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने की क्षमता रखता है, जबकि निर्धारित स्तर से कम पूंजी पर्याप्तता वाले बैंक को वित्तीय देयताओं के सम्वंध में खतरे की स्थिति में रखा जाता है।
- बेसल-III मानकों के अनुसार, बैंकों को अपनी जोखिम भारित परिसम्पत्तियों का 8% रखना अनिवार्य है। हालाँकि, आर.बी.आई. के नियमों के मुताबिक यह अनुपात 9% है।
- निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (DEPOSIT INSURANCE AND CREDIT GUARANTEE CORPORATION-DICGC)
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्ण स्वामित्व वाली कम्पनी है, जिसका मुख्य उद्देश्य लघु जमाकर्त्ताओं का विशेष ध्यान रखते हुए निक्षेप बिमा के माध्यम से बैंकिंग प्रणाली में जनता का विश्वास अर्जित करके वित्तीय स्थिरता में सहयोग देना है।
- 5 फरवरी, 2020 को इसके द्वारा भारत सरकार की स्वीकृति से बीमित बैंकों में जमाकर्त्ताओं के लिये बीमा कवर की राशि को एक लाख रुपए से बढ़ाकर पाँच लाख रुपए कर दिया गया है।
सहकारी बैंक (Cooperative bank)
- ये ऐसे वित्तीय संस्थान हैं, जो शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों को कृषि एवं व्यवसाय सम्बंधी ऋण सुविधा प्रदान करते हैं।
- सहकारी बैंकों में ग्राहकों के रूप में सदस्य होते हैं, जों बैंक से विभिन्न प्रकार की सेवाएँ जैसे, ऋण लेना, धनराशि जमा और बैंक खाता पासबुक आदि प्राप्त करते हैं।
- सहकारी बैंकों का विनियमन भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 तथा सहकारी समिति अधिनियम, 1965 के अंतर्गत किया जाता है।
- सहकारी बैंकों का प्राथमिक उद्देश्य अपने सदस्यों को सेवाएँ प्रदान करना है, न कि अधिक से अधिक लाभ अर्जित करना।
- सहकारी बैंकों का प्रबंधन इनके सदस्यों द्वारा ही किया जाता है, जिसमें निदेशक मंडल का चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होता है।
सहकारी बैंकों के उद्देश्य
- लोगों को साहूकारों और ब्याजखोरों के चंगुल से मुक्ति दिलाना।
- ग्रामीण वित्तपोषण तथा सूक्ष्म वित्तपोषण की सुविधाएँ प्रदान करना।
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लोगों को लघु उद्योग और स्वरोज़गार सम्बंधी गतिविधियों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- किसानों को सामाजिक-आर्थिक सहायता हेतु ऋण सुविधा प्रदान करना।
- देश में वित्तीय समावेशन की अवधारणा को प्रोत्साहित करना।
सहकारी बैंकों की चुनौतियाँ
- सहकारी बैंक आज भी अपनी सदस्य पूंजी पर निर्भर न होकर अधिकांशतः वित्तपोषण के लिये सरकार, आर.बी.आई. और नाबार्ड पर निर्भर होते हैं।
- सहकारी बैंकों में राजनितिक हस्तक्षेप होने से इनमें कुप्रबंधन एवं भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के कारण अनुचित तरीके एवं अयोग्य व्यक्तियों को ऋण वितरित किये जाते हैं।
- अधिकतर सहकारी बैंकों में समुउचित कार्य-संस्कृति का अभाव है।
- सहकारी बैंकों के ऊपर दोहरा नियंत्रण होने के कारण प्रबंधन एवं संचालन में कई प्रकार की अस्पष्टताएँ और अनियमितताएँ उत्पन्न होती हैं। ध्यातव्य है कि ये बैंक आर.बी.आई. और राज्य सरकार द्वारा विनियमित और प्रबंधित किये जाते हैं।
- अधिकतर सहकारी बैंकों में पेशेवर प्रबंधन और कर्मचारियों की कमी है, जिससे कार्य की गुणवत्ता और दक्षता प्रभावित होती है, फलस्वरूप ये बैंक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं।
सहकारी एवं वाणिज्यिक बैंकों में अंतर
- वाणिज्यिक बैंकों का गठन संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत हुआ है, जबकि सहकारी बैंकों की स्थापना अलग-अलग राज्यों की सहकारी समितियों के अधिनियमों के आधार पर की गई है।
- वाणिज्यिक बैंक प्राथमिक रूप से मुनाफा अर्जित करने के लिये कार्य करते हैं, जबकि सहकारी बैंक सहकारिता के सिद्धांत पर कार्य करते हुए अपने सदस्यों को बेहतर सेवाएँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कार्य करते हैं।
- भारत में सहकारी बैंकों में तीन स्तरीय प्रणाली कार्य करती है, जिसमें राज्य स्तर पर सहकारी समिति, मध्य स्तर पर ज़िला सहकारी बैंक तथा निचले स्तर पर प्राथमिक सहकारी बैंक कार्य करते हैं; वहीं वाणिज्यिक बैंकों में इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं है।
- वाणिज्यिक बैंकों को आर.बी.आई. से ऋण प्राप्त करने का अधिकार है, जबकि सहकारी बैंकों में केवल राज्य सहकारी बैंक ही इस सुविधा के तहत ऋण प्राप्त कर सकते हैं।
- वाणिज्यिक बैंक विदेशों में अपनी शाखा खोल सकते हैं लेकिन सहकारी बैंकों को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।
- अंततः यह कहा जा सकता है कि सहकारी बैंकों की अपेक्षा वाणिज्यिक बैंकों को ज़्यादा स्वंत्रता, अधिकार और संसाधन प्राप्त हैं।
भविष्य की राह
- सहकारी बैंकों के विनियमन का कार्य किसी एक संस्था के अंतर्गत लाया जाना चाहिये, जिससे शक्तियों, अधिकारों और जवाबदेही में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
- सहकारी बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करके, इन्हें संचालन में और अधिक स्वायत्ता प्रदान की जानी चाहिये।
- सहकारी बैंकों को पूंजीकरण की आवश्यकता है, ताकि वे संसाधनों में वृद्धि के साथ-साथ अपने कार्यक्षेत्रों का भी विस्तार कर सकें।
- सहकारी बैंकों में पेशेवर कर्मचारियों की नियुक्तियाँ की जानी चाहिये, ताकि ये बैंक पेशेवर कार्य-संस्कृति को अपना सकें।