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कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न : एक गंभीर समस्या

प्रारंभिक परीक्षा 

(समसामयिक घटनाक्रम)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन-1,2 : महिलाओं की कार्यस्थल पर संबंधित समस्याएँ और उनकी रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ

हाल ही में हुई कोलकाता के एक अस्पताल में महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की समस्या न केवल महिलाओं के सम्मान और गरिमा के खिलाफ है, बल्कि यह उनके करियर विकास में भी बाधा डालती है। यद्यपि देश ने आर्थिक और सामाजिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है, फिर भी यौन उत्पीड़न का मुद्दा कार्यस्थल पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

क्या है यौन उत्पीड़न 

  • यौन उत्पीड़न का मतलब किसी व्यक्ति के खिलाफ यौन आधारित अनुचित व्यवहार करना है। 
  • इसमें किसी की सहमति के बिना यौन टिप्पणी करना, अनुचित स्पर्श करना या किसी भी तरह से यौन संबंध की मांग करना शामिल है।
  • कार्यस्थल पर यह उत्पीड़न किसी सहकर्मी, वरिष्ठ अधिकारी या यहां तक कि ग्राहक द्वारा भी किया जा सकता है।

समस्या के कारण

  • सांस्कृतिक और सामाजिक रूढ़ि : रुढ़िवादी सामाजिक संरचना के कारण महिलाएं कठोरता से विरोध नहीं कर पाती है। कई बार महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जानकारी नहीं होती और वे उत्पीड़न को सहन करती हैं।
  • सत्ता का दुरुपयोग : वरिष्ठ अधिकारी अपनी सत्ता और पहुँच का दुरुपयोग करके महिलाओं का शोषण करते हैं।
    • सिनेमा उद्योग में कास्टिंग काउच इसका स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें महत्वाकांक्षी अभिनेत्रियों से यौन संबंधों की मांग की जाती है।
  • कानूनी जानकारी की कमी : कुछ महिलाएं कानूनी अधिकारों के बारे में अनजान होती हैं, जिससे वे अपने खिलाफ हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा पातीं।
  • पूर्वाग्रह : लैंगिक पूर्वाग्रह भी एक बड़ी चुनौती है। कई बार महिलाओं को कार्यस्थल पर उनके लिंग के आधार पर आंका जाता है, जो कि उनकी क्षमताओं और योग्यताओं का अपमान है। 
    • यह पूर्वाग्रह न केवल महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाता है, बल्कि उनके कार्यक्षेत्र में प्रगति को भी बाधित करता है।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले 

  • 'ऑक्सफेम इंडिया' और 'सोशल एंड रूरल रिसर्च इंस्टिट्यूट' की संयुक्त शोध रिपोर्ट 'भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न 2011-2012' में महानगरों में कामकाजी महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न की चर्चा की गई है। 
    • रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, लखनऊ, दुर्गापुर के 400 कामकाजी महिलाओं में से 66 महिलाओं ने यौन उत्पीड़न की कुल 121 वारदातें झेली हैं। 
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) में 2018 से हर साल कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 400 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। 
    • वर्ष 2022 में देश में 419 से अधिक मामले या लगभग 35 प्रतिमाह दर्ज किए गए।

यौन उत्पीड़न के दुष्प्रभाव

  • मानसिक और भावनात्मक तनाव : यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं में अवसाद, चिंता और आत्मसम्मान की कमी जैसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • कैरियर पर असर : उत्पीड़न के चलते महिलाएं अपने काम से मन हटा लेती हैं या नौकरी छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं।
  • सामाजिक और पारिवारिक प्रभाव : इस प्रकार के अनुभवों से महिलाएं सामाजिक रूप से अलग-थलग महसूस कर सकती हैं और इसका असर उनके पारिवारिक जीवन पर भी पड़ता है।

यौन उत्पीड़न से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय वैधानिक रूपरेखा 

  • मानवाधिकारों की सर्वभौमिक घोषणा पत्र, 1948 : सम्मान, अधिकार और स्वतंत्रता में बराबरी और सभी तरह के भेदभाव से सुरक्षा की बात करता है।
  • ILO भेदभाव {व्यवसाय और रोजगार समझौता, 1958 (111)} : इसका उद्देश्य रोजगार और व्यवसाय में लिंग, नस्ल, रंग, धर्म, राजनीतिक विचार किसी विशेष देश या समाज में जन्म के आधार पर भेदभाव से सुरक्षा देना है। 
  • महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (CEDAW), 1979  : भारत ने इस पर हस्ताक्षर और अनुसमर्थन किया है। 
  • संयुक्त राष्ट्र के बीजिंग महिला सम्मेलन, 1995 : बीजिंग कार्यवाई मंच ने महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने और महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न सहित सभी प्रकार की हिंसा को मिटाने का आह्वान किया।

यौन उत्पीड़न से संबंधित राष्ट्रीय वैधानिक रूपरेखा

  • विशाखा गाइडलाइन्स :1997 में विशाखा निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने CEDAW रुपरेखा का प्रयोग किया तथा कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश निर्धारित जारी किए।
    • विशाखा दिशा-निर्देशों में यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया गया है तथा नियोक्ताओं द्वारा अपनाए जाने वाले निवारक उपायों और निवारण तंत्रों को संहिताबद्ध किया गया है।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संरक्षण अधिनियम (POSH Act): वर्ष 2013 के इस अधिनियम का उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं को सुरक्षित माहौल प्रदान करना है।
    • इसमें शिकायत समितियों का गठन, शिकायतों की जांच और उचित कार्रवाई का प्रावधान है।
  • शी-बॉक्स (Sexual Harassment electronic–Box : SHe-Box) : यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा जुलाई 2017 में शुरू की गई एक ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली है। 
    • इसका उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना है।
  • निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ (2018) :  सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 228A में अनिवार्य रूप से यौन अपराधों के पीड़ितों के नाम और पहचान के प्रकटीकरण के दंड के महत्व को समझाया, जिसे अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 72 और 73 में दोहराया गया है। 
    • इस प्रावधान का उद्देश्य पीड़ितों को शत्रुतापूर्ण भेदभाव और भविष्य के उत्पीड़न से बचाना है।

मी टू कैंपेन : सोशल मीडिया पर #MeToo का पहला इस्तेमाल वर्ष 2006 में अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता तराना बर्क ने माईस्पेस नामक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किया था। यह महिलाओं पर होने वाले यौन उत्पीड़न, शोषण और बलात्कार के खिलाफ आंदोलन है। भारत में वर्ष 2018 के बाद यह प्रचलन में है।

सुझाव

  • सशक्तिकरण और जागरूकता : महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों और सुरक्षा उपायों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है।
  • कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल का निर्माण : संगठनों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका कार्यस्थल महिलाओं के लिए सुरक्षित हो। इसके लिए POSH समितियों का गठन और कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है।
  • समानता की संस्कृति का विकास : संगठनों को एक ऐसी कार्यसंस्कृति का निर्माण करना चाहिए जहां सभी कर्मचारियों को समान रूप से सम्मानित किया जाए और यौन उत्पीड़न के प्रति जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए।
  • सख्त नीतियाँ और कानूनी कार्रवाई : कार्यस्थल पर हमले के संदर्भ में, विशाखा  गाइडलाइन्स, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013  और हेमा समिति के सुझावों को सरकार को प्रभावी रूप से लागू करने पर बल देना चाहिए। 
    • यौन उत्पीड़न के मामलों में तेज और प्रभावी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि अपराधियों को दंड मिले।

बदलाव के उत्प्रेरक : मलयालम फिल्म उद्योग पर हेमा समिति की रिपोर्ट

  • केरल सरकार द्वारा 19 अगस्त, 2024 को जारी की गई जस्टिस के. हेमा समिति की रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के सामने आने वाले मुद्दों को उजागर किया है। 
  • 2017 में गठित इस समिति ने 2019 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट के संशोधित संस्करण को हाल ही में सार्वजनिक किया गया है।
  • रिपोर्ट में दो तरह के मुद्दों को उल्लेखित किया गया है :
  • पहला : सिनेमा में महिलाओं का यौन शोषण और उन पर हमला
  • महिलाओं को अक्सर यौन एहसानों का आदान-प्रदान करना पड़ता है और जो महिलाएं 'सहयोग' करने से इनकार करती हैं, उन्हें ऊँची पहुँच पुरुषों के इशारे पर इंडस्ट्री से बाहर कर दिया जाता है। 
  • दूसरा : महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण व्यवहार और महिला अनुकूल बुनियादी सुविधाओं की कमी
  • हेमा समिति की रिपोर्ट में निष्कर्ष :
    • संरचनात्मक सुधारों का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए जिसके लिए सरकार को प्रभावी नेतृत्व करना चाहिए। 
    • उद्योग में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाइयाँ, विशेष रूप से मुख्य अभिनेत्रियों के विपरीत निचले तबके की महिलाओं को स्वीकार किया जाना चाहिए। 
    • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की धारा 2(o) में 'कार्यस्थल' की परिभाषा में फिल्म उद्योग को भी शामिल किया जा सकता है।
    • यह रिपोर्ट भारतीय महिलाओं को कार्यस्थल पर भेदभाव के खिलाफ़ संघर्ष को बढ़ावा देगी और उन्हें एक साहसिक जागरूकता से लैस करेगी।

निष्कर्ष

भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक गंभीर मुद्दा है, जिसे केवल कानूनी उपायों से ही नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता में बदलाव लाकर भी हल किया जा सकता है। महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना और संगठनों को एक सुरक्षित और समानता आधारित कार्यस्थल का निर्माण करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। यह जरूरी है कि हम मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जहां महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा के साथ काम करने का अधिकार मिले।

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