(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव-विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन) |
संदर्भ
आईआईटी मद्रास ने एशिया की सबसे बड़ी शैलो वेव बेसिन रिसर्च फ़ैसिलिटी (Shallow Wave Basin Research Facility) की शुरूआत की है।
शैलो वेव बेसिन रिसर्च फ़ैसिलिटी के बारे में
- क्या है : जटिल तरंग एवं धारा अंतर्क्रियाओं को नियंत्रित कर सकने वाली एक बहु-दिशात्मक (Multi-Directional) उथली तरंग बेसिन
- अवस्थिति : आईआईटी मद्रास से कुछ दूर थाईयूर में ‘डिस्कवरी’ सैटेलाइट परिसर में
- स्थापना : राष्ट्रीय बंदरगाह, जलमार्ग एवं तट प्रौद्योगिकी केंद्र (NTCPWC) के माध्यम से स्थापित
- यह केंद्र भारत सरकार के जहाजरानी मंत्रालय की प्रौद्योगिकी शाखा है और बंदरगाहों, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण एवं अन्य संस्थानों को आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान करता है। यह केंद्र बंदरगाह एवं समुद्री क्षेत्र में तकनीकी नवाचारों व नए विचारों के विकास के लिए समर्पित है।
- इसे स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है तथा इसके अधिकांश भाग का निर्माण आईआईटी मद्रास में ही किया गया है।
- इसकी परिकल्पना नए बंदरगाहों और तटीय इंजीनियरिंग के साथ-साथ अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजनाओं के लिए भारत सरकार की भावी पहलों को ध्यान में रखते हुए की गई थी।
शैलो वेव बेसिन रिसर्च फ़ैसिलिटी का उपयोग
- मौलिक समझ के साथ-साथ 3D तरंगों के प्रभाव से संबंधित परियोजनाओं के लिए
- बंदरगाह, तटीय, अपतटीय, अंतर्देशीय जलमार्ग एवं उथले जल संचालन संबंधी परियोजनाओं के लिए
- तलछट परिवहन, मोबाइल बेड मॉडलिंग, कवच इकाइयों की स्थिरता, हाइड्रोलिक एवं हाइड्रोडायनामिक प्रदर्शन, तरंग प्रभाव लोडिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण प्रासंगिक डिज़ाइन पहलुओं के निर्धारण में
शैलो वेव बेसिन रिसर्च फ़ैसिलिटी का महत्व
- भारतीय बंदरगाहों, जलमार्गों एवं तटीय इंजीनियरिंग में चुनौतीपूर्ण समस्याओं का समाधान करने में महत्वपूर्ण
- प्रयोगशाला में तरंगों के उत्पादन के लिए अन्य देशों की प्रौद्योगिकी पर निर्भर रहने की आवश्यकता समाप्त
- भारतीय अनुसंधान एवं उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करना
- तटीय संरचनाओं की किस्मों का परीक्षण
- तटीय संरचनाओं, बड़े सौर फ़्लोटिंग प्लांट, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का विश्लेषण