(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 - बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा)
संदर्भ
- हाल के दिनों में, भारत के तापीय विद्युत संयंत्रों को कोयले की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। विभिन्न रिपोर्ट्स के माध्यम से ये सूचना सामने आई है कि इन संयंत्रों के पास कोयले का स्टॉक औसतन चार दिनों के ईंधन तक का शेष रह गया है।
- इस संबंध में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने कहा है कि कोयले की आपूर्ति में कमी से अभी तक देश में विद्युत कटौती नहीं हुई है, लेकिन आपूर्ति की स्थिति आगामी छह महीने तक ‘असामान्य’ रह सकती है।
तापीय विद्युत संयंत्रों के समक्ष विद्यमान संकट
- तापीय विद्युत संयंत्रों के पास कोयले का औसतन चार दिनों का स्टॉक शेष है, जबकि सरकार की सिफारिश है कि इन संयंत्रों के पास कम से कम 14 दिनों तक का कोयला स्टॉक होना चाहिये।
- अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में, 17,475 मेगावाट के विद्युत उत्पादन क्षमता वाले 16 तापीय विद्युत संयंत्रों में एक दिन के लिये भी कोयले का स्टॉक नहीं था, वहीं 59,790 मेगावाट के विद्युत उत्पादन क्षमता वाले अन्य 45 तापीय विद्युत संयंत्रों के पास केवल दो दिनों के उत्पादन के बराबर कोयले का स्टॉक उपलब्ध था।
- 165 गीगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता में से 132 गीगावाट (1 गीगावाट = 1,000 मेगावाट) विद्युत उत्पादन संयंत्रों के पास कोयला स्टॉक ‘सुपर क्रिटिकल’ स्तर पर है।
- ‘नॉन-पिट हेड संयंत्रों’, ऐसे संयंत्र जो कोयला खदानों के समीप स्थित नहीं हैं, में कोयले की व्यापक कमी है, इनमे से 108 में से 98 संयंत्रों के स्टॉक आठ दिनों के बराबर हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत में कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र द्वारा 208.8 गीगावाट या भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता (388 गीगावाट) का 54 प्रतिशत विद्युत उत्पादन किया जाता है।
भारत में कोयले की कमी के कारण
- कोविड -19 महामारी के पश्चात् अर्थव्यवस्था की रिकवरी से माँग में वृद्धि तथा आपूर्ति में कमी हुई है, इस कारण कोयले की उपलब्धता कम हुई है। उल्लेखनीय है कि अगस्त 2019 के 106 बिलियन यूनिट विद्युत की तुलना में अगस्त 2021 में 124 बिलियन यूनिट विद्युत का उपभोग किया गया।
- इसी अवधि के दौरान बढ़ती माँग को पूरा करने में कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, इस दौरान भारत की कुल विद्युत आपूर्ति में इन संयंत्रों की हिस्सेदारी वर्ष 2019 के 61.9 प्रतिशत से बढ़कर 66.4% हो गई है।
- इस संबंध में सरकार का कहना है कि हाल के दिनों में उसने लगभग 3 करोड़ घरों को विद्युत सुविधा से जोड़ा है तथा ये परिवार विभिन्न विद्युत उपकरणों के माध्यम से विद्युत खपत में योगदान दे रहे हैं।
- सरकार का ये भी कहना है कि कोविड-19 के कालखंड में विद्युत की माँग 200 गीगावाट तक पहुँच गई थी, जो अभी के समय में 170 से 180 गीगावाट पर स्थिर है और इसके आगामी कुछ दिनों में पुनः 200 गीगावाट पर पहुँचने की उम्मीद है।
- आपूर्ति में कमी के अन्य प्रमुख कारणों में अप्रैल-जून की अवधि में तापीय संयंत्रों द्वारा सामान्य से कम स्टॉक संचय तथा अगस्त एवं सितंबर में कोयला उत्पादन क्षेत्रों में लगातार वर्षा से भी उत्पादन प्रभावित हुआ है।
वैश्विक परिदृश्य
- प्राकृतिक गैस, कोयला तथा अन्य ऊर्जा स्रोतों की आपूर्ति कुल माँग को पूरा करने में विफल होने के कारण लगभग समूचा विश्व ही फ़िलहाल ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है। इस वर्ष यूरोप में प्राकृतिक गैस की कीमतें कई गुना बढ़ गई हैं, जबकि चीन में कई कारखाने कोयले की कम आपूर्ति के कारण बंद हो गए हैं।
- यूनाइटेड किंगडम में कई स्थानों पर ईंधन आपूर्ति शून्य हो गई है, इन परिस्थितियों से जनित किसी भी हिंसा को रोकने के लिये विभिन्न स्थानों पर सेना को तैनात किया गया है।
- विश्लेषकों ने वैश्विक ऊर्जा कीमतों में वृद्धि के लिये कई कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया है। कुछ विश्लेषक मुख्यतया उपभोक्ता माँग में उछाल के कारण इस वृद्धि को संदर्भित करते हैं, क्योंकि महामारी के पश्चात् आर्थिक गतिविधियाँ सामान्य हो रही हैं।
- हालाँकि, ऐसा भी कहा जा रहा है कि महामारी के कारण बाधित आपूर्ति शृंखला अभी भी सामान्य नहीं हुई है। उदाहरणार्थ, ब्रेक्ज़िट और महामारी के कारण आरोपित प्रतिबंधों से ईंधन पहुँचाने वाले ट्रक ड्राइवरों की कमी को यू.के. के ईंधन संकट का मुख्य कारण माना जा रहा है।
- अन्य विश्लेषक पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर सरकारों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि को ‘ग्रीनफ्लेशन’ के उदाहरण के रूप में देखते हैं। गौरतलब है कि सरकारी नियामकों ने हाल के वर्षों में वैश्विक उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को प्रोत्साहित करने की दिशा में तेज़ी से काम किया है।
सरकार के कदम
- विद्युत व रेल मंत्रालय, कोल इंडिया लिमिटेड, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण तथा पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉर्पोरेशन के प्रतिनिधियों सहित एक अंतर-मंत्रालयी टीम तापीय विद्युत संयंत्रों में कोयले की आपूर्ति की निगरानी कर रही है।
- सरकार कोयला उत्पादन को बढ़ाने के लिये ‘कैप्टिव कोयला खदानों’ के साथ ताप संयंत्रों पर दबाव डाल रही है ताकि वे पर्याप्त माँग को पूरा कर सकें। साथ ही, कम स्टॉक वाले तापीय संयंत्रों के लिये कोयले की आपूर्ति को भी प्राथमिकता दी जा रही है।
- इसके अतिरिक्त, विद्युत मंत्रालय कई खदानों से उत्पादन शुरू करने में तेज़ी लाकर कोयले की आपूर्ति बढ़ाने की भी कोशिश कर रहा है, जिनके पास पहले से ही सभी आवश्यक मंजूरी प्राप्त है।
- सरकार ने कोयला खदानों से भेजे जा रहे ‘कोयला रेक’ की संख्या में बढ़ोत्तरी की है, इनकी संख्या पहले के 248 की तुलना में बढ़ाकर 263 कर दी गई है।
भावी राह
- ऊर्जा आपूर्ति कुछ समय तक बाधित रहने की आशंका है क्योंकि उच्च कीमतों के प्रत्युत्तर में उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने में समय लग सकता है। ये आशंका व्यक्त की जा रही है कि यदि शीतकाल में ऊर्जा की माँग बढ़ती है, तो संकट और गहरा सकता है।
- मूल्य नियंत्रण को संकट के समय लोकप्रिय साधन माना जाता हैं, फिर भी उत्पादकों के पास आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिये इस प्रकार का प्रोत्साहन स्थिति को और बदतर बना सकता है।
- इसकी जगह वे उपभोक्ताओं को ऊर्जा के अतिदोहन को कम करने के लिये प्रोत्साहित कर सकते हैं। कोयले की कीमतों में वृद्धि से चीन स्थित ताप संयंत्रों के बंद होने के पीछे विद्युत की मूल्य सीमा को वास्तव में एक प्रमुख कारण माना गया है।
- भारत में विद्युत कीमतों को बढ़ाने की अनिच्छा के कारण ताप संयंत्रों के पास विद्युत उत्पादन बढ़ाने के लिये बहुत कम स्पेस उपलब्ध है। वस्तुतः बढ़ती माँग के बीच देश के चार विद्युत संयंत्रों में से तीन के पास एक सप्ताह से भी कम का कोयला उपलब्ध है।
निष्कर्ष
पवन और सौर ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की कार्यक्षमता विशेष रूप से शीतकाल में कम हो जाती है, जिसके कारण देशों को पारंपरिक जीवाश्म ईंधन पर भरोसा करना मज़बूरी बन जाता है, अतः इस संबंध में सरकारों को अपनी ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।