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श्री जगन्नाथ मंदिर रत्न भण्डार

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय विरासत एवं संस्कृति)

संदर्भ 

ओडिसा के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर के खजाने को खोलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो गयी है। इस मंदिर के रत्न भंडार में संग्रहीत आभूषणों और अन्य मूल्यवान वस्तुओं की सूची तैयार करने की निगरानी के लिए उड़ीसा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विश्वनाथ रथ की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई थी। 46 वर्षों बाद इस मंदिर के खजाने को पुन: खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई है।

श्री जगन्नाथ मंदिर के बारे में

  • चार धाम : यह हिंदू मंदिर भारत के चार धामों, यथा- पुरी, द्वारिका, बद्रीनाथ एवं रामेश्वर में से एक धाम है।
  • समर्पण : यह मंदिर भगवान विष्णु के एक रूप भगवान श्री जगन्नाथ, उनकी बहन देवी सुभद्रा और बड़े भाई श्री बलभद्र को समर्पित है।
  • निर्माण : गंगा राजवंश के प्रसिद्ध राजा अनंत वर्मन चोडगंगा देव (1112-1148 ईस्वी) द्वारा 12वीं शताब्दी में।
    • 'स्कंद पुराण' के अनुसार पवित्र 'श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र' को भगवान विष्णु के घर के रूप में जाना जाता है और पवित्र विग्रहों को स्वयंभू ब्रह्मा ने स्थापित किया था। 
  • आयोजन : मंदिर के प्रमुख आयोजनों में स्नान यात्रा, नेत्रोत्सव, रथ यात्रा (कार महोत्सव), सायन एकादशी, चितलागी अमावस्या, श्रीकृष्ण जन्म, दशहरा आदि शामिल हैं। 
    • सबसे महत्वपूर्ण त्योहार विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा (कार महोत्सव) है। 
  • वास्तुकला : कलिंग वास्तुकला शैली में निर्मित।
    • कलिंग शैली को मंदिर निर्माण की नागर शैली के अंतर्गत एक उपवर्ग के रूप में शामिल किया गया है। 
    • इस शैली के ज्यादातर मंदिर तत्कालीन कलिंग क्षेत्र और वर्तमान ओडिशा राज्य तक ही सीमित थे।
  • मंदिर का रखरखाव : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा।

श्री जगन्नाथ मंदिर की संरचना

  • 200 फीट से अधिक ऊँचाई वाला और लगभग दस एकड़ में फैला यह मंदिर पत्थर के एक ऊंचे मंच पर स्थापित है। संपूर्ण मंदिर परिसर दो बड़ी संकेंद्रित दीवारों से घिरा हुआ है। 
    • बाहरी दीवार को 'मेघनाद प्राचीर' और आंतरिक दीवार को 'कूर्म प्राचीर' कहा जाता है। 
  • बाहरी घेरे में चार द्वार हैं, जिसके प्रसिद्ध पूर्वी प्रवेश द्वार को 'सिंह द्वार' कहा जाता है। बाहरी घेरे के दक्षिणी, पश्चिमी व उत्तरी किनारों पर स्थित प्रवेश द्वार को क्रमशः 'अश्वद्वार' (दक्षिण द्वार), 'व्याघ्र द्वार' (पश्चिमी द्वार) एवं 'हस्तिद्वार' (उत्तर द्वार) कहा जाता है। 
  • मंदिर परिसर में अन्य निर्माण के अतिरिक्त 'कोइली बैकुंठ' एवं 'नीलाचल उपवन' नामक दो उद्यान, सात कुएं, आनंद बाजार तथा कल्पबता (बरगद का पवित्र वृक्ष) भी है।
  • मुख्य मंदिर एक विशाल मंच पर स्थित है, जिसे नीलगिरि या ब्लू हिल नामक एक छोटी पहाड़ी का आधार माना जाता है। 
    • यह पहाड़ी हिंदुओं के विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित लगभग 30 अन्य मंदिरों से घिरा हुआ है।

वर्तमान मुख्य मंदिर के चार खंड 

  • विमान (गर्भगृह) : यहं मुख्य देवता पत्थर के आसन (रत्न सिंहासन) पर विराजमान हैं और इसे मंदिर का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। 
  • जगमोहन (पोर्च) : यह भक्तों के लिए आश्रय स्थल है और इसे सभा भवन भी कहा जाता है। 
    • स्थानीय ओडिया भाषा में इसे 'मुखशाला' या 'मुखमंडप' भी कहा जाता है।
  • नट मंडप : मंदिर परिसर में स्थित यह नृत्य हॉल देवदासियों की परंपरा के समय को संदर्भित करता है।  
  • भोग मंडप : मंदिर के इस भाग में प्रसाद के लिए भोजन पकाया जाता है। 
  • हालांकि, मूल रूप से निर्मित मंदिर में एक विमान और एक जगमोहन (पोर्च) शामिल थे जो क्रमशः रेखा देउला व पीढ़ा देउला शैली में बने थे। 
    • विमान और जगमोहन 12वीं सदी में बनाए गए थे। नटमंडप एवं भोगमंडप को क्रमशः राजा पुरुषोत्तम देव (1461-1495 ई.) व राजा प्रतापरुद्र देव (1495-1532 ई.) के शासनकाल के दौरान निर्मित किया गया था।
  • मंदिर के शिखर पर स्थित 20 फुट ऊंचे चक्र को शहर के किसी भी हिस्से से देखा जा सकता है।

रेखा देउला

DEULA

  • मंदिर निर्माण की इस शैली में आमतौर पर गर्भगृह के ऊपर का शिखर होता है और इसे ‘वक्रीय मंदिर’ भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ शिखर वक्रीय है, जिसका निचला भाग कम घनत्व वाला है लेकिन ऊपरी भाग अत्यधिक सघन है। 
  • रेखा देउला में शिखर के चारों ओर की रेखाएँ मंदिर के आधार से लेकर अधिरचना के सबसे ऊपरी भाग तक जाती हैं। 
  • भुवनेश्वर स्थित लिंगराज का प्रसिद्ध मंदिर और पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर रेखा देउल के दो प्रमुख उदाहरण हैं।

पीढ़ा देउला

MANDIR

  • पीढ़ा देउला को ‘चपटी सीट वाला मंदिर’ भी कहा जाता है क्योंकि इसका शिखर सीढ़ीदार किंतु संकुचित पिरामिड जैसा होता है और अंत में इसके ऊपर ‘आमलक’ होता है।
  • भुवनेश्वर का भास्करेश्वर मंदिर पीढ़ा देउला शैली का एकमात्र ज्ञात स्वतंत्र नमूना है।

श्री जगन्नाथ मंदिर रथ यात्रा 

  • इस रथ यात्रा को श्री गुंडिचा यात्रा के रूप में भी जाना जाता है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मानव जाति के समग्र कल्याण के लिए इसे आयोजित किया जाता है। यह 'चार देवताओं' (भगवान सुदर्शन, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा एवं भगवान श्री जगन्नाथ) को समर्पित है। 
    • भगवान श्री जगन्नाथ का कोई भी उत्सव श्री गुंडिचा यात्रा से अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, श्री जगन्नाथ की बारह यात्राओं में से रथ यात्रा सबसे प्रसिद्ध मानी जाती है।
  • रथ को श्री गुंडिचा मंदिर की ओर खींचा जाता है, जो तीन किमी. दूर स्थित है।
    • यह रथ ‘संधिनी शक्ति’ का प्रतीक है, अत: रथ को स्पर्श करना अत्यंत पवित्र माना जाता है। 
  • इसके बाद भगवान सुदर्शन, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान श्री जगन्नाथ जैसे देवताओं को दैतापतियों द्वारा गुंडिचा मंदिर के अंदर सिंहासन पर क्रमिक रूप से ले जाया जाता है। सात दिनों के प्रवास के दौरान श्रीमंदिर के समान सभी अनुष्ठान किए जाते हैं।
  • बामदेव संहिता के अनुसार, गुंडिचा मंदिर के सिंहासन (पवित्र सीट) पर एक सप्ताह तक चार देवताओं के दर्शन करने से व्यक्ति को पूर्वजों सहित हमेशा के लिए स्वर्ग में स्थान की प्राप्ति होती है।
  • आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को ‘नीलाद्रि बिजे’ नामक विशेष आयोजन श्री गुंडिचा यात्रा का अंतिम चरण होता है। 

श्री जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार के बारे में

संरचना 

  • यह रत्न भंडार श्री जगन्नाथ मंदिर के जगमोहन के उत्तरी भाग में स्थित है। इसमें दो कक्ष हैं : बहरा भंडार (बाहरी कक्ष) और भीतरा भंडार (आंतरिक कक्ष)। 
  • इसमें देवताओं के रत्न रखे हुए हैं। इस रत्न भंडार का निर्माण मंदिर निर्माण के पश्चात हुआ था। हालांकि, इसकी कोई निश्चित तिथि ज्ञात नहीं है।

स्वतंत्रता पूर्व विनियमन 

  • ओडिशा में ब्रिटिश शासन के दौरान रत्न भंडार का पहला विस्तृत आधिकारिक विवरण ‘जगन्नाथ मंदिर रिपोर्ट’ में दर्ज किया गया था। इसे पुरी के तत्कालीन कलेक्टर चार्ल्स ग्रोम ने तैयार किया था और 10 जून, 1805 ई. को प्रकाशित किया गया था।  
  • इसके बाद वर्ष 1926 में पुरी के राजा द्वारा स्वीकार किए गए आभूषणों की एक सूची पुरी कलेक्टरेट के रिकॉर्ड रूम में रखी गई थी।

स्वतंत्रता पश्चात विनियमन 

  • वर्ष 1952 में भारत सरकार ने मंदिर प्रशासन संचालन के लिए श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन अधिनियम और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन नियम लागू किया। 
  • साथ ही, अधिकारों का रिकॉर्ड (RoR) तैयार किया गया, जिसमें अन्य चीजों के अलावा देवताओं के आभूषणों की सूची भी शामिल थी।

रत्नों को नियंत्रित करने वाले कानून

  • श्री जगन्नाथ मंदिर नियम, 1960 के अनुसार रत्न भंडार की अभिरक्षा श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति के पास है। 
    • इसे ओडिसा सरकार ने श्री जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1954 की धारा 35 के तहत बनाया था।

खजाने में रखी वस्तुओं का तीन श्रेणियों में विभाजन  

  • श्रेणी 1 : इसमें वे आभूषण और गहने शामिल हैं जिनका कभी उपयोग नहीं हुआ है और जिन्हें भीतरा भंडार में रखा जाता है। 
  • श्रेणी 2 : इसमें वे आभूषण शामिल हैं जिनका उपयोग केवल समारोहों या उत्सव के अवसरों पर किया जाता है। 
  • श्रेणी 3 : इसमें देवताओं द्वारा दैनिक उपयोग में लाए जाने वाले आभूषण शामिल हैं।

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