प्रारंभिक परीक्षा
(सामान्य विज्ञान)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय, गरीबी एवं भूख से संबंधित विषय)
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संदर्भ
विगत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के शहडोल से वर्ष 2047 तक सिकल सेल रोग को पूर्णत: समाप्त करने के लिए ‘राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन’ की शुरुआत की थी।
क्या है सिकल सेल एनीमिया
- सिकल सेल एनीमिया एक प्रकार का वंशानुगत विकार है जो शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाने वाली लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) के आकार को प्रभावित करता है।
- इससे पीड़ित व्यक्ति की कुछ लाल रक्त कोशिकाएँ दरांती या अर्धचंद्राकार आकार की हो जाती हैं।
- सामान्यत: लाल रक्त कोशिकाएँ गोल एवं लचीली होती हैं, इसलिए वे रक्त वाहिकाओं के माध्यम से आसानी से आगे बढ़ती हैं।
- सिकल कोशिकाएँ कठोर एवं चिपचिपी भी हो जाती हैं, जो रक्त प्रवाह को धीमा या अवरुद्ध कर सकती हैं।
- यदि माता-पिता दोनों में सिकल सेल के लक्षण है, तो शिशु के इस बीमारी के साथ जन्म लेने की संभावना बहुत अधिक होती है।
- इन रोगियों का जीवनकाल काफ़ी कम हो जाता है (लगभग 40 वर्ष तक) और सिकल सेल के कारण होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की वजह से उनके जीवन की गुणवत्ता भी कम हो जाती है।
सिकल सेल एनीमिया के लक्षण
- सामान्य लक्षणों में एनीमिया, पीलिया, यकृत एवं प्लीहा में वृद्धि शामिल है।
- गंभीर मामलों में रोगियों में दुर्बल करने वाली आर्थोपेडिक स्थितियां शामिल हैं जिन्हें फीमर का एवैस्कुलर नेक्रोसिस कहा जाता है।
- इसके अलावा हाथ-पैर में सूजन व दर्द होना, बारम्बार संक्रमण होना, शारीरिक विकास का मंद होना और दृष्टि संबंधी समस्याएँ होती हैं।
भारत में सिकल सेल एनीमिया की चुनौती
- सिकल सेल रोग से प्रभावित दस लाख से अधिक लोगों के साथ भारत दुनिया में इस बीमारी से पीड़ित देशों में दूसरे स्थान पर है। सहारा आफ्रिका पहले स्थान पर है।
- भारत में इससे पीड़ित अधिकांश रोगी ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में रहते हैं।
सामाजिक बहिष्करण
- एक स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित रोगी इससे जुड़े सामाजिक कलंक से भी पीड़ित होते हैं।
- उन्हें ‘आनुवंशिक रूप से कमतर’ समझकर बहिष्कृत किया जाता है।
- सिकल सेल रोग की वंशानुगत प्रकृति के कारण रोगियों को वैवाहिक और सामाजिक संभावनाओं में भी समस्या का सामना करना पड़ता है।
उपचारों तक पर्याप्त पहुँच का अभाव
- भारत में सिकल सेल रोग से प्रभावित केवल 18% लोग ही निरंतर उपचार प्राप्त कर रहे हैं क्योंकि रोगी उपचार के दौरान ही उसे बीच में ही छोड़ देते हैं।
- उपचार में सबसे बड़ी गिरावट निदान एवं उपचार अनुपालन के चरणों में होती है।
- दवाओं की नियमित एवं सुविधाजनक आपूर्ति एक चुनौती है। प्रमुख दवाएँ कभी-कभी स्टॉक से बाहर हो जाती हैं और दवाओं के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।
पारंपरिक चिकित्सों द्वारा अप्रभावी उपचार
इस रोग में सही निदान एक चुनौती है क्योंकि कई लोग इस स्थिति से जुड़े कलंक के कारण सहायता लेने में संकोच करते हैं। वे प्राय: पारंपरिक चिकित्सकों से सलाह लेते हैं, जो बीमारी का गलत/अपर्याप्त निदान करते हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में अविश्वास
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सिकल सेल रोग के लिए मजबूत निदान क्षमता है किंतु आदिवासी क्षेत्रों में इसके बारे में ऐतिहासिक रूप से अविश्वास व्याप्त है। ऐसे में बहुत कम मरीज जांच करवाते हैं।
स्थायी एवं वहनीय उपचार का अभाव
सिकल सेल रोग के लिए कोई स्थायी उपचार उपलब्ध नहीं है। जीन थेरेपी में चल रहे शोध आशाजनक हैं किंतु इसके उपलब्ध होने के बाद भी यह अधिकांश प्रभावित आबादी के लिए वहनीय नहीं होगा। देश के विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त टीकाकरण कवरेज का भी अभाव है।
राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन
- 1 जुलाई, 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के शहडोल से राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (NSCEM) की शुरुआत की।
- इसकी घोषणा केंद्रीय बजट 2023 में की गई थी। वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2025-26 तक तीन वर्षों की अवधि में इस कार्यक्रम का लक्ष्य लगभग 7.0 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग करना है।
- इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को समाप्त करना है।
- यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के हिस्से के रूप में एक मिशन मोड में क्रियान्वित किया जाता है।
- यह विशेष रूप से देश की आदिवासी आबादी के बीच सिकल सेल रोग से उत्पन्न महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान पर केंद्रित है।
- देश भर के 17 उच्च-फोकस राज्यों में कार्यान्वित इस कार्यक्रम का उद्देश्य रोग की व्यापकता को कम करते हुए सभी सिकल सेल रोगियों की देखभाल में सुधार करना है।
- ये 17 राज्य हैं : गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, असम, उत्तर प्रदेश, केरल, बिहार और उत्तराखंड।
- एन.एस.सी.ई.एम. स्क्रीनिंग और जागरूकता रणनीतियों दोनों को शामिल करता है ताकि रोग के बारे में शिक्षा को बढ़ावा देते हुए प्रारंभिक पहचान एवं उपचार सुनिश्चित किया जा सके।
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सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन के लिए प्रयास
- वर्ष 2023 में सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन के शुभारंभ के साथ देश भर में बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग कार्यक्रम चल रहा है।
- सिकल सेल रोग के उपचार के लिए एक महत्वपूर्ण दवा हाइड्रोक्सीयूरिया को आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया है। इससे इस दवा तक पहुँच में वृद्धि हुई है।
- वर्तमान में हाइड्रोक्सीयूरिया जैसी अपेक्षाकृत सस्ती दवाएँ अधिकांश रोगियों के लिए प्रभावी हैं यदि उन्हें सही खुराक एवं समय के साथ दिया जाए।
आगे की राह
समाजिक धारणा में बदलाव
- सिकल सेल एनीमिया से जुड़े कलंक को कम करने के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में विश्वास उत्पन्न करना महत्वपूर्ण है।
- विशिष्ट मिथकों (जो क्षेत्र एवं जनजाति के अनुसार अलग-अलग होते हैं) को तोड़ने के लिए लक्षित मीडिया अभियानों के माध्यम से जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए।
- इसके लिए, भारत द्वारा पोलियो एवं एच.आई.वी. से निपटने में अपने अनुभव का लाभ उठाया जा सकता है।
- इस रोग के लिए समाजिक कलंक जैसी स्थिति समाप्त होने से सिकल सेल लक्षण वाहकों द्वारा अपनी वाहक स्थिति को छिपाने की संभावना में कमी हो सकती है।
- इसके परिणामस्वरूप सिकल सेल की समस्या से ग्रस्त शिशुओं के जन्म में कमी आएगी।
नवजात शिशुओं की स्क्रीनिंग
नवजात शिशुओं की स्क्रीनिंग बढ़ाई जा सकती है। इस रणनीति की लागत कम होने के साथ ही इसके लाभ भी अधिक हैं। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में प्रभावी होगी जहाँ यह रोग स्थानिक है।
स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में सुधार
- दवाओं के साथ-साथ अनुपालन सहायता रोगियों के निकटतम स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में उपलब्ध होनी चाहिए।
- सभी ज्ञात रोगियों को स्वीकृत टीके सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण रणनीति हो सकती है। इसके लिए कैच-अप टीकाकरण कार्यक्रमों की आवश्यकता हो सकती है।
- आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा को इन क्षेत्रों की अनूठी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए मजबूत किया जाना चाहिए।
- इसके लिए स्वास्थ्य सेवा को पर्याप्त रूप से वित्त पोषित किया जाना चाहिए।
नए उपचार एवं शोध पर बल
- भारत में इस बीमारी एवं उसके मार्गों को बेहतर ढंग से समझने और नए उपचार विकसित करने के लिए शोध किया जाना चाहिए।
- परोपकारी लोगों व नागरिक समाज के सदस्यों को उत्प्रेरक की भूमिका निभाने के साथ ही केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।