केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक द्वारा समकालिक गिद्ध सर्वेक्षण/h1>
प्रारंभिक परीक्षा - भारत में गिद्धों के संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयास, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 – पर्यावरण संरक्षण
सन्दर्भ
केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक द्वारा संयुक्त रूप से24, 25 और 26 फरवरी को पश्चिमी घाट के क्षेत्रों में पहला समकालिक गिद्ध सर्वेक्षण आयोजित किया जायेगा।
अब तक तीनों राज्य अलग-अलग सर्वेक्षण करते थे, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर डेटा का दोहराव होता था, क्योंकि सर्वेक्षण अलग-अलग समय अवधि में किये जाते थे।
भारत में गिद्ध
भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां पाई जाती है –
ओरिएंटल व्हाइट बैकड (Oriental White Backed) गिद्ध
लॉन्ग बिल्ड (Long Billed) गिद्ध
स्लेंडर-बिल्ड (Slender Billed) गिद्ध
हिमालयन (Himalayan) गिद्ध
रेड हेडेड (Red Headed) गिद्ध
मिस्र देशीय (Egyptian) गिद्ध
बियरडेड (Bearded) गिद्ध
सिनेरियस (Cinereous) गिद्ध
यूरेशियन ग्रिफॉन (Eurasian Griffon) गिद्ध
गिद्ध शव फीडर हैं और संक्रमण नियंत्रण के प्राकृतिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संक्रमित शवों को खाने के बावजूद गिद्ध संक्रमित नहीं होते हैं, क्योंकि इनके पेट में मौजूद एसिड, पैथोजन को मारने के लिए काफी ताकतवर होता है।
गिद्ध जल स्रोतों को दूषित होने से भी रोकते हैं।
गिद्ध को लेकर हुए अध्ययनों से उनके हीमोग्लोबिन और ह्दय की संरचना से संबंधित कई ऐसी विशेषताओं के बारे में पता चला, जिनके चलते वो असाधारण वातावरण में भी सांस ले सकते हैं।
भारत में इनकी संख्या में 1990के बाद से ही लगातार गिरावट देखी गई है।
संरक्षण स्थिति
भारत में गिद्ध की तीन प्रजातियाँ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act), 1972 की अनुसूची-1 में संरक्षित हैं। - बियरडेड, लॉन्ग बिल्ड और ओरिएंटल व्हाइट बैकड।
तथा अन्य 6 प्रजातियाँ, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम अनुसूची IVके में संरक्षित हैं। - सिनेरियस, यूरेशियन ग्रिफॉन, हिमालयन, रेड हेडेड, मिस्र देशीय तथा स्लेंडर बिल्ड।
संकट
इनकी संख्या में कमी आने का मूल कारण पशु दवाई, डाइक्लोफिनॅक (diclofenac)है, जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है।
जब डाइक्लोफिनॅक खाने के बाद कोई पशु मर जाता है और यदि उस पशु को गिद्ध खा लेते हैं, तब गुर्दे बंद हो जाने के कारण वह मर जाते हैं।
वातावरण में ऑर्गेनोक्लोरिन कीटनाशक, पॉलीक्लोरिनेटेड बाइफेनिल, पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन जैसी कीटनाशकों और भारी धातुओं की उपस्थिति भी गिद्धों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।
बिजली के तारों से टकराने के बाद होने वाली मृत्यु भी इनकी कम होती जनसंख्या का एक प्रमुख कारण है।
पेड़ों की कटाई के कारण प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना।
विषाक्त भोजन के परिणामस्वरूप पक्षियों के रक्त में यूरिक एसिड जमा हो जाता है और उनके आंतरिक अंगों के चारों ओर क्रिस्टलीकरण होता है, जिससे इनकी मृत्यु होने की संभावना बाद जाती है।
संरक्षण के प्रयास
1993 से 2003 के बीच भारत की गिद्ध आबादी में 96% की गिरावट से चिंतित होकर केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर गिद्धों की रक्षा के लिए दो कार्य योजनाएं बनाईं-
पहली 2006 में।
दूसरी 2020-25 के लिए।
2008 में डाइक्लोफिनॅक के पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
गिद्धों की आबादी वाले क्षेत्रों में 8 स्थानों पर गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र कार्यक्रम को लागू किया गया।
किसी क्षेत्र को गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र तभी घोषित किया जा सकता है, जब मवेशियों के शवों के सर्वेक्षण में लगातार दो साल तक कोई जहरीली दवाएं न मिले और गिद्ध आबादी स्थिर हो और घटती न हो।
2001 में हरियाणा के पिंजौर में एक गिद्ध देखभाल केंद्र (Vulture Care Centre-VCC)की स्थापना की गयी।
देश में 9 गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र हैं, जिनमें से 3 का संचालन प्रत्यक्ष तौर पर बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी के द्वारा किया जाता है।
इन केन्द्रों में गिद्धों की 3 प्रजातियों व्हाइट बैक्ड, लॉन्ग बिल्ड, स्लेंडर बिल्ड का संरक्षण किया जा रहा है।