(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन) (मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान।)
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संदर्भ
13 अप्रैल, 2025 को प्रधानमंत्री मोदी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के पीड़ितों की 105वीं वर्षगांठ पर श्रद्धांजलि अर्पित की और सर शंकरन नायर का स्मरण किया।
सर चेत्तूर शंकरन नायर : एक महान न्यायविद् और सुधारक
परिचय
सर चेत्तूर शंकरन नायर (Sir Chettur Sankaran Nair) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक साहसी, निष्पक्ष, उच्चकोटि के वकील, न्यायाधीश, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी नेता थे।
जीवन परिचय
- जन्म : 11 जुलाई 1857 मणकरा गांव, पलक्कड़ जिला (केरल)
- निधन : 24 अप्रैल 1934
- पिता: चेत्तूर कृष्णन नायर
- माता: पूर्णम्मा अम्मा
- प्रारंभिक जीवन : वे एक मेधावी छात्र थे और मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद कानून की पढ़ाई की। जल्द ही वे एक प्रसिद्ध वकील बन गए और मद्रास हाई कोर्ट में वकालत शुरू की।
प्रमुख उपलब्धियाँ और योगदान
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ाव
- वर्ष 1897 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने।
- उन्होंने कांग्रेस में सामाजिक सुधारों और ब्रिटिश सरकार की आलोचना का एजेंडा मजबूती से उठाया।
न्यायिक सेवाएँ और समाज सुधार
- वर्ष 1908 में मद्रास उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए।
- प्रमुख ऐतिहासिक फैसले
- बुदासना बनाम फातिमा (1914) : हिंदू धर्म में दोबारा दीक्षा लेने वालों को अछूत नहीं माना जा सकता।
- उन्होंने अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाहों के समर्थन में फैसले दिए, जो उस समय बहुत साहसी कदम माना जाता था।
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कदम
- वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में उन्होंने वायसराय की कार्यकारी परिषद से इस्तीफा दे दिया।
- यह कदम एक उच्च सरकारी पद पर रहते हुए ब्रिटिश सरकार के अत्याचार के विरुद्ध साहसी और ऐतिहासिक निर्णय था।
जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद उनकी भूमिका
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा किए गए नरसंहार के बाद सर शंकरन नायर ने इस हत्याकांड के लिए पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ड्वायर को जिम्मेदार ठहराया।
मानहानि मुकदमा
- माइकल ओ’ड्वायर ने इंग्लैंड की अदालत में शंकरन नायर पर मानहानि का मुकदमा किया।
- यह मुकदमा ‘The Case That Shook the Empire’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- साढ़े पांच सप्ताह तक चला यह मुकदमा उस समय का सबसे लंबा सिविल केस था।
- 12 सदस्यीय जूरी ने 11-1 से ओ’ड्वायर के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन नायर ने माफी मांगने से मना कर दिया।
अन्य उल्लेखनीय कार्य
- उन्होंने मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों में भी हिस्सा लिया, जिससे भारत में शासन में भारतीयों की भागीदारी बढ़ी।
- वर्ष 1922 में उन्होंने ‘Gandhi and Anarchy’ नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने गांधी के अहिंसा, सविनय अवज्ञा और असहयोग के तरीकों की आलोचना की।
- उनका जीवन न्याय, सामाजिक समानता और स्वतंत्रता की भावना से भरा हुआ था। उन्होंने अंग्रेजों की नीतियों की खुलकर आलोचना की और हमेशा भारत की स्वराज की मांग का समर्थन किया।
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जलियांवाला बाग नरसंहार
- घटना के बारे में : 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन, अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर द्वारा निहत्थे और निर्दोष लोगों पर गोलियां चलाई गईं।
- इस नरसंहार के परिणामस्वरूप सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हो गए, जो ब्रिटिश उत्पीड़न का एक स्पष्ट प्रतीक बन गया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा दिया।
- कारण : रौलट एक्ट के विरोध में पंजाब में बढ़ते जन आंदोलन को कुचलने के लिए
- प्रभाव
- इस घटना ने पूरे भारत में आक्रोश और दुख की लहर पैदा की।
- राष्ट्रवादियों को ब्रिटिश राज की क्रूरता का वास्तविक रूप सामने आया।
- इसी घटना के बाद शंकरन नायर ने विरोध स्वरूप वायसराय की परिषद से इस्तीफा दे दिया।
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