चर्चा में क्यों
हाल ही में, सिटाग्लिप्टिन नामक मधुमेह की दवा को पेटेंट के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इसी के साथ ही कई दवा कंपनियों द्वारा इसके जेनेरिक संस्करण को बाजार में उतारने की संभावना बढ़ गई है, जिससे भारत के 77 मिलियन मधुमेह रोगियों के लिये किफायती कीमत पर दवा उपलब्ध हो सकेगी।
सिटाग्लिप्टिन दवा
- यह दवा रक्त में शर्करा की मात्रा को कम करती है। यह ग्लिप्टिन नामक श्रेणी की पहली दवा थी जिसके द्वारा डाइपेप्टिडाइल पेप्टिडेज़-4 (DPP-4) नामक एक प्रोटीन को नियंत्रित किया जाता है।
- यह प्रोटीन चयापचय प्रणाली को प्रभावित करती है जिससे अग्न्याशय को इंसुलिन स्राव को बढ़ाने और रक्त में शर्करा को नियंत्रित करने के लिये प्रेरित किया जा सके।
- इसी श्रेणी की एक अन्य दवा विल्डाग्लिप्टिन (Vildagliptin) का विकास फार्मास्युटिकल कंपनी नोवार्टिस द्वारा किया गया। विदित है कि इस दवा की पेटेंट अवधि विगत वर्ष के अंत में समाप्त हो चुकी है।
- मधुमेह की कुछ अन्य दवाओं में एसजीएलटी -2 इनहिबिटर या ग्लिफ्लोज़िन एवं टेनेलिग्लिप्टिन शामिल है।
सिटाग्लिप्टिन के लाभ
- इस दवा को युवा व्यक्तियों के साथ-साथ बुजुर्गों को भी दिया जा सकता है क्योंकि यह हाइपोग्लाइकेमिया (शर्करा का स्तर बहुत कम होना) की स्थिति उत्पन्न नहीं करती है। हाइपोग्लाइकेमिया बुजुर्गों के लिये अत्यधिक हानिकारक स्थिति होती है।
- इस दवा का हृदय पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।
- यह टाइप -2 मधुमेह के इलाज के लिये एक प्रमुख दवा है, जहाँ शरीर रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित नहीं कर पाता है क्योंकि यह या तो पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता है या इंसुलिन के प्रभाव का प्रतिरोध करता है।