[ प्रारंभिक परीक्षा के लिए – सित्तनवासल गुफा , पल्लव काल , संगम काल ]
[ मुख्य परीक्षा के लिए – भारतीय विरासत और संस्कृति]
- सित्तनवासल गुफायें ( अरिवर कोइल ) तमिलनाडु में कावेरी नदी के किनारे पुदुकोट्टई जिले में चट्टान को काटकर बनाई गई गुफायें है।
- सित्तनवासल नाम सित-तन-ना-वा-यिल का विकृत रूप है , यह तमिल भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है "महान संतों का निवास"।
- सित्तनवासल गुफा गांव में एक पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। पहाड़ी के पूर्वी हिस्से में प्राकृतिक गुफाएं हैं, जिन्हें एलादिपट्टम के नाम से जाना जाता है।
- एलादिपट्टम में चट्टान को तराश कर बनाये गये लगभग सत्रह बिस्तर है। परिसर में सबसे बड़े बिस्तर पर पहली शताब्दी (ई.पू.) का तमिल-ब्राह्मी लिपि में लिखा एक शिला -लेख है।
- देश भर की अधिकांश गुफाओं की तरह यह गुफा भी प्राचीन व्यापारिक मार्गों में से एक पर है ।
- इस गुफा के बारे में पहली बार उल्लेख सन 1916 ईस्वी में इतिहासकार एस राधाकृष्ण अय्यर की “ए जनरल हिस्ट्री ऑफ़ पुदुक्कोट्टई स्टेट” नामक किताब में मिला था।
- ये गुफा मन्दिर उत्कृष्ट भिति चित्रण के लिए प्रसिद्ध हैं। इसमें 7वीं शताब्दी के उल्लेखनीय भित्तिचित्रों के अवशेष है।
- सित्तनवासल के चित्र पल्लव वंश के शासक राजा महेंद्र वर्मा(600-625 ई०) के द्वारा बनवाये गए है।
- भित्ति चित्रों को “ फ्रेस्को-सेको” तकनीक में चित्रित किया गया है तथा वनस्पति और खनिज रंगों से काले, हरे, पीले, नारंगी, नीले और सफेद रंग में रंगा गया है।
- सित्तानवासल की चित्रकलाएं जैन-विषयों और प्रतीकों से घनिष्ठ रूप से संबद्ध हैं।
- भित्तिचित्रों में अजन्ता के ही समान मानदण्डों एवं तकनीक का प्रयोग किया गया है।
- इन चित्रकलाओं की रूपरेखाओं को हल्की लाल पृष्ठभूमि पर गाढ़े रंग से चित्रित किया गया है । बरामदे की छत पर महान सौन्दर्य, पक्षियों सहित कमल के पुष्प तालाब, हाथियों, भैंसों और फूल तोड़ते हुए एक युवक के एक विशाल सजावटी दृश्य को चित्रित किया गया है ।
- सित्तनवासल में एक गर्दन फुलाए मोर का चित्र भी पाया गया है।
- यहाँ शिव का अर्धनारीश्वर चित्र प्राप्त हुआ है, जिसके आधार पर इन्हें शैव धर्म से सम्बन्धित गुफायें कहा जा सकता है।
- सित्तनवासल गुफा के अंदर पांड्य राजा और रानी के चित्र भी है। सित्तनवासल तमिलनाडु का एकमात्र स्थान है जहाँ पांड्य चित्र देखे जा सकते है।
सित्तनवासल गुफा का जैन मंदिर
- सित्तनवासल गुफा में चट्टान को तराश कर बनाया गया एक जैन मंदिर भी है।
- 8वीं शताब्दी में जैन धर्म तमिलनाडु में ख़ूब फल-फूल रहा था, और इसी समय के आसपास सित्तनवासल भी एक जैन केंद्र के रुप में प्रसिद्ध हो चुका था।
- यह दक्षिण भारत में प्रारंभिक जैन भित्तिचित्रों का बचा हुआ एकमात्र उदाहरण है।
- कुछ विद्वानों का मानना था कि ये मंदिर पल्लव राजा महेंद्रवर्मन-प्रथम (शासनकाल सन 580-630 ईस्वी) ने जैन धर्म से शैव धर्म अपनाने के पहले बनवाया था।
- लेकिन मंदिर में मिले एक शिलालेख के अनुसार विद्वानों का मानना है, कि मंदिर का निर्माण पांड्य राजा श्री वल्लभ (शासनकाल 815-862 ईस्वी) के शासनकाल में हुआ था।
- मंदिर में एक गर्भगृह और एक अर्ध-मंडप है। इन दोनों स्थानों की दीवारों पर तीर्थंकरों की छवियाँ बनी है। गर्भगृह के पिछले भाग पर एक आचार्य की छवि के साथ दो तीर्थंकरों की छवियाँ हैं। गर्भगृह की छत पर एक सुंदर नक़्क़ाशीदार धर्म-चक्र या विधि-चक्र बना हुआ है।
- सित्तनवासल में पत्थर के घेरों और ताबूतों के साथ महापाषणकालीन कब्रगाहें भी पायी गयीं है , जो इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक मनुष्यों के अस्तित्व का प्रमाण देती है ।
- ऐसा माना जाता है कि तमिलनाडु में शवाधान के इस तरीके का अभ्यास , संगम काल के दौरान किया जाता था।