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भारत में बेघर वृद्धजनों की स्थिति

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ

वर्तमान में भारत में बेघर वृद्धजनों (बुजुर्गों) की संख्या उच्चतम स्तर पर है। इनकी स्थिति गंभीर एवं चिंताजनक है। देश में बेघर वृद्धजनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और उनकी जीवन गुणवत्ता प्राय: अत्यंत खराब होती है। यह भारत में एक नई सामाजिक समस्या बनती जा रही है अत: इसका विश्लेषण आवश्यक हैं।

भारत में वृद्धजनों की स्थिति

  • भारत में विगत 50 वर्षों में नाटकीय रूप से जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ है, जिससे 60 वर्ष से अधिक आयु की आबादी में लगभग तीन गुना वृद्धि हुई है। 
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में वरिष्ठ नागरिकों की आबादी 10.38 करोड़ है, जो देश की कुल आबादी का लगभग 8.6% है।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की भारत एजिंग रिपोर्ट-2023 के अनुसार, भारत में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और वर्ष 2036 तक 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या कुल आबादी का 15% (22.7 करोड़) हो जाएगी।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 में वरिष्ठ नागरिकों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का लगभग 20% (34.7 करोड़) हो जाएगी।

भारतीय परिवेश में वृद्धजनों का महत्त्व

  • ज्ञान एवं जीवन की चुनौतियों के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि से युवा वर्ग को जीवन की चुनौतियों से निपटने में मदद 
  • युवा वर्ग द्वारा बुजुर्गों के साथ समय बिताने से वृद्धावस्था के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास 
    • इससे युवा अंतर-पीढ़ी संबंधों को अधिक महत्व देते हैं।
  • पुरानी पीढ़ी से परंपराओं, संस्कृतियों एवं प्रथाओं का ज्ञान प्राप्त होना 
    • भारत की विभिन्न परंपराएँ जलवायु परिवर्तन, अति भौतिकतावादी परिवेश एवं प्रदूषण से बचाव के साथ-साथ सामाजिक व भावनात्मक संबंधों के महत्त्व को रेखांकित करती हैं।  
  • परिवार के सदस्यों के बीच विवादों को सुलझाने और पारिवारिक संबंधों के संचालन में महत्वपूर्ण  
  • पेशेवर एवं शहरी जीवन में एकल बच्चों के लिए शिशु देखभाल में सहायक 
    • वृद्ध या अनुभवी संरक्षकों के अभाव में बच्चों को ‘क्रेच सुविधा’ में रखना पड़ता है।  

वर्तमान में वृद्धजनों के बेघर होने के कारण 

  • आर्थिक तंगी : यह एक प्रमुख कारण है। बहुत से वृद्धजनों के पास जीवन के अंतिम समय में पर्याप्त वित्तीय सुरक्षा नहीं होती है। 
    • पेंशन एवं बचत का न होना, सेवानिवृति के बाद आय का स्रोत न होना और अत्यधिक चिकित्सा व्यय उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर बना देते हैं। साथ ही, मजदूरी एवं कृषि कार्यों में संलग्न वृद्धजनों की स्थिति अधिक संवेदनशील होती है। 
  • सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव : 
    • वैश्वीकरण एवं पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण व भौतिकवादी मानसिकता 
    • संयुक्त परिवारों का बिखराव 
    • पारिवारिक संबंधों में समय तथा परस्पर प्रेम का अभाव 
    • वर्तमान में नवयुवकों में कर्त्तव्य एवं दायित्त्वबोध की कमी 
    • मूल्यविहीन जीवन शैली की बढती प्रवृति  
    • नई एवं पुरानी पीढ़ी के मध्य बढ़ती दूरी 
    • पारिवारिक दायित्त्व को बोझ समझना और इससे मुक्ति की इच्छा 
    • व्यक्तिगत स्वार्थ एवं अवसरवादिता के कारण सेवाभावना व सामंजस्य का अभाव
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं : वृद्धावस्था में होने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं (जैसे- डिमेंशिया, अल्जाइमर एवं अन्य मानसिक विकार) के अनुरूप देखभाल का अभाव होता हैं। इसके कारण घर को छोड़ देने या परिवार से बिछड़ने की समस्या होती हैं।
  • भेद्यता एवं आवास की समस्या : बुजुर्गों को उनकी बढ़ती आयु, आर्थिक असुरक्षा एवं स्थिर आवास की कमी के कारण अत्यधिक भेद्यता का सामना करना पड़ता है। उनके पास प्राय: किफायती आवास विकल्प, पर्याप्त सामाजिक सहायता प्रणाली और आय के स्रोत नहीं होते हैं, जिससे वे बेघर हो जाते हैं।
  • अपर्याप्त सहायता और पुनर्वास सेवाएं : विशेष रूप से बेघर बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, परामर्श, व्यावसायिक प्रशिक्षण व सामाजिक एकीकरण पहल प्रदान करने वाले विशेष कार्यक्रमों की कमी है।
  • नीति एवं कानूनी ढाँचे : बेघर बुजुर्गों की समस्या नीति व कानूनी ढाँचे में कमियों से प्रभावित है। बुजुर्गों की आवश्यकताओं को संबोधित करने वाली कोई विशिष्ट नीतियाँ नहीं हैं। ये कमियाँ इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए प्रभावी रणनीतियों के विकास व कार्यान्वयन में बाधा डालती हैं।
  • अंतर्विषयक कारक : बेघर बुजुर्गों की समस्या अंतर्विषयक कारकों से भी प्रभावित होती है, जिसमें लिंग, जातीयता व प्रवासन स्थिति शामिल है। कुछ उपसमूहों (जैसे- बुजुर्ग महिलाएं, अल्पसंख्यक या प्रवासी) को जटिल संवेदनशीलता का सामना करना पड़ता है और सहायता एवं संसाधनों तक पहुँचने में अतिरिक्त बाधाओं का सामना कर सकते हैं।

वृद्धजनों से संबंधित कानूनी प्रावधान 

  • नीति निदेशक तत्त्व : अनुच्छेद 41 एवं अनुच्छेद 46 में वृद्धजनों के लिये संवैधानिक प्रावधान हैं।  
    • अनुच्छेद 41: बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी एवं विकलांगता के मामलों में कार्य करने, शिक्षा पाने और सार्वजनिक सहायता पाने का अधिकार सुरक्षित करना।
    • अनुच्छेद 46: राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs) और अन्य कमज़ोर वर्गों के शैक्षिक व आर्थिक हितों को बढ़ावा देना।
  • हिंदू विवाह एवं दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 :  इसमें वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण का प्रावधान बाध्यकारी बनाया गया है।
  • माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) : इसके अंतर्गत माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्थापना, चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था, जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

भारत सरकार व राज्य सरकारें बेघर वृद्धजनों की स्थिति में सुधार लाने के लिए विभिन्न योजनाएँ एवं नीतियाँ लागू कर रही हैं :

  • राष्ट्रीय वृद्धजन नीति, 2011 : इस नीति का उद्देश्य वृद्धजनों के लिए सामाजिक सुरक्षा व आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इसके तहत वृद्धजनों के लिए पेंशन योजनाएं एवं स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) : इस योजना के तहत 60 वर्ष से अधिक आयु के गरीब वृद्धजनों को मासिक पेंशन प्रदान की जाती है। यह योजना विशेष रूप से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले वृद्धजनों के लिए है।
  • ओल्ड एज होम्स (वृद्धाश्रम) : सरकार द्वारा विभिन्न शहरों और कस्बों में वृद्धाश्रम स्थापित किए गए हैं, जहाँ बेघर वृद्धजन निवास कर सकते हैं और उन्हें बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
  • आश्रय गृह योजना : इस योजना के तहत बेघर वृद्धजनों के लिए आश्रय गृह (शेल्टर होम्स) बनाए जाते हैं, जहां उन्हें भोजन, कपड़े व चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
  • पेंशन योजनाएं एवं स्वास्थ्य बीमा : सरकार द्वारा वृद्धजनों के लिए विभिन्न पेंशन योजनाएं और स्वास्थ्य बीमा योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जो उनकी वित्तीय सुरक्षा व स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करती हैं।
  • उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री वय वंदना योजना। 
  • SACRED पोर्टल : यह वरिष्ठ सक्षम नागरिकों को सम्मानपूर्वक पुनः रोजगार के लिए पोर्टल है।  
  • सेज या SAGE (Seniorcare Aging Growth Engine) : इसका उद्देश्य हितधारकों को सीधे उत्पादों, समाधानों, सेवाओं की पहचान, मूल्यांकन, सत्यापन, एकीकरण व वितरण करना है, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
  • एल्डर लाइन (Elder Line) : वरिष्ठ नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 'एल्डर लाइन' 14567 सेवा शुरू की गई है जिसका उद्देश्य वृद्ध निराश्रित लोगों को बचाने और उन्हें वृद्धाश्रमों में आश्रय दिलाने में मदद करना है।
  • असम कर्मचारियों के माता-पिता के भरण-पोषण एवं संरक्षण अधिनियम को लागू करने वाला देश का पहला राज्य है।

बेघर वृद्धजनों की स्थिति में सुधार के लिए सुझाव 

  • परिवार, समाज व राष्ट्रीय विकास में वृद्धजनों के अनुभवों की साझेदारी और उनकी उपयोगिता को स्थापित करना
  • वृद्धजनों के लिए समुदाय आधारित देखभाल प्रणाली विकसित करना 
    • स्थानीय समुदाय एवं गैर-सरकारी संगठन इनकी देखभाल में सहयोग कर सकें।
  • वृद्धजनों के लिए बेहतर पेंशन योजनाएं और वित्तीय सहायता प्रदान करना  
  • वृद्धजनों के लिए विशेष स्वास्थ्य सेवाओं और मानसिक स्वास्थ्य समर्थन के लिए विशेष केंद्र बनाना 
  • समाज में वृद्धजनों के प्रति सम्मान एवं संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए जनजागरूकता अभियानों की आवश्यकता पर बल देना 
  • परिवारों को वृद्धजनों के साथ रहने और उनकी देखभाल करने के लिए प्रेरित करना 
  • इसके लिए सरकार कुछ प्रोत्साहन योजनाएं भी लागू कर सकती है।
  • शिक्षित तथा विभिन्न सेवाओं से अवकाश प्राप्त बुजुर्गों को सोशल मीडिया का प्रशिक्षण देने का अभियान चलाकर उनके अकेलेपन को दूर करना और आत्मनिर्भर बनाना। 
  • शिक्षण संस्थानों में प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा तक के पाठ्यक्रम में वृद्धावस्था को अध्ययन-अध्यापन में स्थान देकर उनकी प्रकृति, विशेषताओं तथा समस्याओं के प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता उत्पन्न करना।
    • वृद्धावस्था संबंधी विभिन्न कार्यशालाएँ, विचार गोष्ठियाँ और सम्मेलन का आयोजन कर उनके सामाजिक, आर्थिक व मनोवैज्ञानिक मुद्दों पर वैचारिक मंथन के द्वारा उनकी बेहतर स्थिति की संभावनाएँ खोजना। 
  • विभिन्न शैक्षिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से वृद्धजनों एवं युवाओं के मध्य समन्वय स्थापित कर उनके मध्य पारस्परिक जुड़ाव की भावनाएँ स्थापित करना। 
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