(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, निवेश मॉडल) |
संदर्भ
वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही (Q2) की तुलना में तीसरी तिमाही (Q3) में घरेलू निजी निवेश में 1.4% की गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट इनपुट लागत उच्च होने और वृद्धि दर धीमी होने की आशंकाओं को दर्शाता है। हालांकि, राज्य सरकारों ने सार्वजनिक निवेश में वृद्धि को बढ़ावा दिया है।
भारत में निजी निवेश की प्रवृत्ति
- 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में आर्थिक सुधारों के बाद भारत में निजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- उदारीकरण से पहले सार्वजनिक निवेश अधिक था। हालाँकि, आर्थिक सुधारों के बाद निजी निवेश ने सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) में वृद्धि हासिल कर ली।
सकल स्थायी पूंजी निर्माण
सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) का तात्पर्य किसी अर्थव्यवस्था में स्थाई पूंजी (इमारत एवं मशीनरी जैसी पूंजी) के आकार में वृद्धि से है। स्थाई पूंजी अर्थव्यवस्था के समग्र उत्पादन को काफी हद तक निर्धारित करती है। समग्र GFCF में सरकार द्वारा निवेश के परिणामस्वरूप पूंजी निर्माण भी शामिल है।
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- आर्थिक उदारीकरण से पहले निजी निवेश जी.डी.पी. का लगभग 10% था जो वर्ष 2007-08 तक लगभग 27% तक हो गया।
- वर्ष 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद निजी निवेश में गिरावट शुरू हुई और वर्ष 2020-21 में जी.डी.पी. के 19.6% के स्तर पर पहुँच गया।
निवेश निर्णयों को प्रभावित करने वाले कारक
- निजी उपभोग में कमी : व्यवसाय या व्यवसायिक समूहों में निवेश के प्रति आत्मविश्वास में कमी का कारण निजी उपभोग व्यय में कमी आना है।
- उपभोग में वृद्धि के बिना व्यवसायिक प्रतिष्ठान नई परियोजनाओं में निवेश करने से बचते हैं क्योंकि वे भविष्य की मांग के बारे में अनिश्चित होते हैं।
- कमज़ोर तिमाही परिणाम : पिछली तिमाहियों में खराब वित्तीय प्रदर्शन भविष्य के निवेश को हतोत्साहित करता है।
- वैश्विक अनिश्चितताएँ : आर्थिक अस्थिरता, भू-राजनीतिक जोखिम और वैश्विक बाज़ार में उतार-चढ़ाव नए निवेश के प्रति संशय उत्पन्न करते हैं।
- नीतिगत मुद्दे : प्रतिकूल सरकारी नीतियाँ और नीति अनिश्चितता निजी निवेश को हतोत्साहित करती हैं।
- 1990 के दशक में सुधारों ने निवेश को बढ़ावा दिया, किंतु पिछले दो दशकों में सुधारों में कमी निजी निवेश में गिरावट का एक प्रमुख कारण रही है।
- नीति अनिश्चितता : निजी निवेशक सरकारी नीतियों में स्थिरता व स्पष्टता चाहते हैं तथा इन क्षेत्रों में अनिश्चितता दीर्घकालिक निवेश को बाधित कर सकती है।
निजी निवेश में कमी के प्रभाव
- निजी सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) में कमी
- धीमी आर्थिक रिकवरी: निजी निवेश का निम्न दर समग्र आर्थिक रिकवरी में बाधा डालता है और विकास को सीमित करता है।
- रोजगार सृजन में कमी : निवेश में कमी से, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे एवं नई परियोजनाओं में कम रोजगार सृजन होता है, जिससे बेरोजगारी व अल्परोजगार में वृद्धि होती है।
- सीमित क्षमता विस्तार : निजी निवेश की कमी के परिणामस्वरूप कंपनियों की उत्पादन क्षमता का विस्तार सीमित हो सकता है।
- नवाचार में कमी : नए उद्यमों एवं अनुसंधान में निवेश में कमी से तकनीकी प्रगति, प्रक्रियागत सुधार एवं नए उत्पाद के विकास में ठहराव आता है।
- कराधान का प्रभाव : सार्वजनिक निवेश को वित्तपोषित करने के लिए सरकारें प्राय: उच्च कर लगाती हैं, जो डिस्पोजेबल आय को कम कर सकते हैं। इससे आर्थिक गतिविधियाँ कम हो सकती हैं।
डिस्पोजेबल आय
- डिस्पोजेबल आय वह राशि है जो सभी करों व कटौतियों के बाद आय अर्जित करने वाले के पास बचती है। इसे डिस्पोज़ेबल व्यक्तिगत आय या खर्च योग्य आय भी माना जाता है।
- इसका उपयोग विश्लेषकों द्वारा उपभोक्ता खर्च, भुगतान क्षमता, भविष्य की संभावित बचत और किसी देश की अर्थव्यवस्था के समग्र स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए किया जाता है।
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- आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान : बुनियादी ढांचे एवं रसद में निजी निवेश के बिना आपूर्ति श्रृंखलाएँ अक्षम होने के साथ-साथ व्यवधानों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं।
- सरकारी निवेश बनाम निजी निवेश : विकास को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक निवेश व्यय पर निर्भरता सरकारी वित्त पर अतिरिक्त दबाव डालती है। यह निजी निवेशकों के अपने फंड को निवेश करने के लिए प्रोत्साहन में कमी का कारण भी बनती है।
- मुद्रास्फीति के दबाव में वृद्धि : निजी निवेश द्वारा प्राप्त की जा सकने वाली वृद्धि के बिना अर्थव्यवस्थाओं को आपूर्ति की कमी एवं बढ़ती लागतों के कारण मुद्रास्फीति के दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
नीतिगत सिफारिशें
- आर्थिक सुधारों में तेज़ी : अधिक निवेशक-अनुकूल वातावरण बनाने के लिए विनियमनों को सरल बनाना, व्यापार में सुगमता लाना और पारदर्शिता बढ़ाना आवश्यक है।
- कर सुधार : कर प्रणाली सरल बनाई जानी चाहिए। निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कर प्रोत्साहन प्रदान किया जा सकता है, विशेष रूप से बुनियादी ढाँचे व नवाचार क्षेत्रों में।
- बुनियादी ढाँचे में सुधार : निजी क्षेत्र के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाने के लिए प्रमुख बुनियादी ढाँचा क्षेत्रों (जैसे- सड़क, बंदरगाह, ऊर्जा) में निवेश किया जाना आवश्यक है।
- नीति स्थिरता पर बल : अनिश्चितता को कम करने और निवेशकों में विश्वास बहाली के लिए सुसंगत व पूर्वानुमानित नीतियाँ सुनिश्चित की जानी चाहिए।
- निजी उपभोग को बढ़ावा : मांग को बढ़ाने के लिए लक्षित राजकोषीय उपायों के माध्यम से डिस्पोजेबल आय को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना व्यावहारिक कदम है। इससे व्यवसायों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) : उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में संयुक्त रूप से निवेश करने के लिए सरकार एवं निजी क्षेत्र के मध्य सहयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- वित्तीय पहुँच : निवेश के लिए पूंजी की लागत को कम करने के उद्देश्य से व्यवसायों, विशेष रूप से SMEs के लिए किफायती वित्तपोषण तक पहुँच में सुधार जरूरी है।
- नवाचार एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा : अनुसंधान एवं विकास के लिए प्रोत्साहन व स्टार्टअप का समर्थन करके नवाचार के वातावरण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- श्रम बाजार में लचीलापन : श्रम सुधारों को प्रभावी रूप में लागू किया जाना चाहिए, जो व्यवसायों को बाजार की स्थितियों के अनुकूल ढलने और आत्मविश्वास के साथ निवेश की सुविधा प्रदान करते हैं।
- दीर्घकालिक विकास क्षेत्रों पर ध्यान : निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए हरित ऊर्जा, प्रौद्योगिकी एवं विनिर्माण जैसे विकास क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए।