(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - सॉफ्ट ऋण, लुक ईस्ट नीति, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, गुजराल सिद्धांत)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2 - भारत एवं इसके पड़ोसी देशों के संबंध)
संदर्भ
- गौरतलब है कि पिछले आठ वर्षों में पड़ोसी देशों के लिए भारत के सॉफ्ट ऋण की मात्रा 3 अरब डॉलर से बढ़कर लगभग 15 अरब डॉलर हो गई है।
- भारत 2030 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है तथा विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है, इस दृष्टि से हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पड़ोसी भी हमारे साथ बढ़ें।
- सॉफ्ट लोन पड़ोसी देशों के साथ और उससे परे राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने के साथ-साथ विशेष रूप से इस क्षेत्र में बढ़ती चीनी उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
- भारत अपनी एक्ट ईस्ट नीति के हिस्से के रूप में, दक्षिण पूर्व एशिया के साथ आर्थिक, तकनीकी, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए बुनियादी ढांचे, रेल, दूरसंचार, बिजली और जलमार्गों को उन्नत करने के लिए इस क्षेत्र के देशों को सॉफ्ट ऋण प्रदान कर रहा है।
- भारत के विकास सहयोग के मुख्य क्षेत्र स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा (जलविद्युत) और सूचना प्रौद्योगिकी है।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत के पड़ोसी देशों के साथ भारत के व्यापार में लगभग 50% की वृद्धि हुई है।
- बांग्लादेश भारत का पांचवा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, नेपाल दसवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभर रहा है।
- भारतीय विकास और आर्थिक सहायता योजना (आईडीईएएस) के तहत एक्ज़िम बैंक के माध्यम से भारत सरकार द्वारा रियायती लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) के रूप में विकास सहायता प्रदान की जाती है।
- वित्त मंत्रालय, बहुपक्षीय सहायता का प्रबंधन करता है और एक्ज़िम बैंक द्वारा प्रदान किए गए रियायती ऋणों और ऋण श्रृंखलाओं पर प्रशासनिक निगरानी रखता है।
सॉफ्ट लोन
- सॉफ्ट लोन मूल रूप से बाजार में उपलब्ध अन्य ऋणों की तुलना में तुलनात्मक रूप से उदार नियमों और आसान शर्तों पर प्रदान किया जाने वाला ऋण है।
- यह आमतौर पर कम ब्याज दरों, ऋण चुकाने की लंबी अवधि के रूप में होता है।
- इन ऋणों के पुनर्भुगतान में ब्याज अवकाश भी शामिल होते है।
- सॉफ्ट लोन देने की प्रक्रिया को सॉफ्ट फाइनेंसिंग या रियायती फंडिंग के रूप में भी जाना जाता है।
- ये ऋण मुख्य रूप से सरकारी एजेंसियों द्वारा ही प्रदान किए जाते है।
लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC)
- लाइन ऑफ क्रेडिट कोई अनुदान नहीं है, बल्कि विकासशील देशों को रियायती ब्याज दरों पर प्रदान किया जाने वाला 'सॉफ्ट लोन' है, जिसे कर्ज लेने वाली सरकार को चुकाना होता है।
- इसके तहत, प्राप्तकर्ता किसी भी समय धन प्राप्त कर सकता है, जब तक कि वे समझौते में निर्धारित अधिकतम राशि (या क्रेडिट सीमा) से अधिक ना हों और समय पर न्यूनतम भुगतान करने जैसी अन्य आवश्यकताओं को पूरा करते हों।
- यह भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने में भी मदद करता है, क्योंकि अनुबंध के मूल्य का 75% भारत से प्राप्त किया जाना चाहिए।
- एलओसी के तहत परियोजनाएं विभिन्न क्षेत्रों (कृषि, बुनियादी ढांचा, दूरसंचार, रेलवे, पारेषण/बिजली, नवीकरणीय ऊर्जा आदि) में फैली हुई हैं।
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लुक ईस्ट (पूर्व की ओर देखो) नीति
- भारत द्वारा लुक ईस्ट नीति 1990 के दशक के शुरूआत में अपनाई गई थी।
- यह नीति, भारत द्वारा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामरिक संबंधों को विस्तार देने, भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करने और इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के उद्देश्यों से बनाई गई नीति है।
- यह दक्षिण पूर्व एशिया के पड़ोसी देशों के साथ अधिक आर्थिक जुड़ाव और दक्षिण पूर्व एशिया और सुदूर पूर्व के देशों - जैसे वियतनाम और जापान के साथ रणनीतिक साझेदारी और सुरक्षा सहयोग स्थापित करने का एक साधन है।
- इसने अधिक आर्थिक एकीकरण के लिए आसियान देशों पर ध्यान केंद्रित किया।
- लुक ईस्ट पॉलिसी में भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास का मंत्र निहित है, भौगोलिक महत्व को देखते हुए, पूर्वोत्तर, भारत और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच की भौगोलिक दूरी को काम करने की भूमिका निभाता है।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी, लुक ईस्ट नीति का ही अगला चरण है।
- लुक ईस्ट के विपरीत, जो आसियान देशों के साथ आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है, एक्ट ईस्ट एशिया-प्रशांत में विस्तारित पड़ोस पर केंद्रित है और इसमें सुरक्षा सहयोग भी शामिल है।
- इसका उद्देश्य आर्थिक सहयोग, कनेक्टिविटी, व्यापार सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना और एक सक्रिय और व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ भारत-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ एक रणनीतिक संबंध विकसित करना है और इस तरह उत्तर पूर्वी क्षेत्र के आर्थिक विकास में सुधार करना है।
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, South Asian Association for Regional Cooperation (SAARC)
- यह दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है।
- इसकी स्थापना 8 दिसम्बर 1985 को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और भूटान द्वारा मिलकर की गई थी।
- अप्रैल 2007 में SAARC के 14वें शिखर सम्मेलन में अफ़गानिस्तान इसका आठवाँ सदस्य बन गया।
- इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य है -
- दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना।
- क्षेत्र में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास में तेजी लाने और सभी व्यक्तियों को स्वाभिमान के साथ रहने और अपनी पूरी क्षमता का एहसास करने का अवसर प्रदान करना।
- दक्षिण एशिया के देशों के बीच सामूहिक आत्म निर्भरता को बढ़ावा देना और मजबूती प्रदान करना।
- आपसी विश्वास, एक दूसरे की समस्याओं के प्रति समझ बढ़ाना।
- आर्थिक, सांस्कृतिक, तकनीकी, सामाजिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
- अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
- साझा हित के मामलों पर अन्तरराष्ट्रीय मंचों में सहयोग को मजबूत करना।
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गुजराल सिद्धांत
- भारत के पूर्व विदेश मंत्री आईके गुजराल द्वारा 1996-1997 में गुजराल सिद्धांत को प्रतिपादित किया गया था।
- यह भारत और पड़ोसी देशों के बीच विश्वास बनाने, द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से द्विपक्षीय मुद्दों के समाधान करने तथा भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच राजनयिक संबंधों को मजबूत बनाने से संबंधित है।
- इस सिद्धांत में भारत के पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए एकतरफा रियायतों के महत्व पर बल दिया गया।
- इस सिद्धांत के महत्वपूर्ण बिन्दु हैं -
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- भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव और श्रीलंका जैसे पड़ोसियों के साथ, भारत पारस्परिकता की तलाश नहीं करता है, लेकिन सद्भावना और भरोसे के साथ जो कुछ वह दे सकता है उसे प्रदान करता है और समायोजित करता है।
- किसी भी दक्षिण एशियाई देश को किसी अन्य दक्षिण एशियाई राष्ट्र के हित के विरुद्ध अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
- सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए।
- देशों को एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए, तथा उन्हें अपने सभी विवादों को शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से सुलझाना चाहिए।
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भारत का पड़ोसी देशों के साथ सहयोग
- भारत और बांग्लादेश के बीच अगरतला-अखौरा रेल लिंक।
- बांग्लादेश के माध्यम से इंटरमोडल परिवहन लिंकेज और अंतर्देशीय जलमार्ग।
- कालादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट।
- पूर्वोत्तर को म्यांमार और थाईलैंड से जोड़ने वाली त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना।
- कोविड महामारी के दौरान आसियान देशों को दवाओं/चिकित्सा आपूर्ति के रूप में सहायता।
- भारत द्वारा, शिक्षा, जल संसाधन, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्रों में जमीनी स्तर के समुदायों को विकास सहायता प्रदान करने के लिए कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम में त्वरित प्रभाव परियोजनाओं को भी लागू किया रहा है।