(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-3: बुनियादी ढाँचा: ऊर्जा)
चर्चा में क्यों ?
वर्तमान समय में देश की ऊर्जा मांग में लगभग 20 से 25% की गिरावट दर्ज की गई है। इस कारण विद्युत वितरण कम्पनियों (Distribution Company-DISCOM) के राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
पृष्ठभूमि
- लॉकडाउन के दौरान वाणिज्यिक व उत्पादन इकाइयों में बंदी तथा वर्क फ्रॉम होम जैसे कारणों से ऊर्जा क्षेत्र में गिरावट देखी गई है। मांग में गिरावट के साथ-साथ उपभोक्ताओं की संख्या में भी कमी आई है।
- ऊर्जा क्षेत्र में नवीकरणीय स्रोतों की कम हिस्सेदारी तथा सरकारी हस्तक्षेप के कारण उसकी क्षमताओं पर कम-से-कम प्रभाव पड़ा है।
नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य
- भारत ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य रखा है, जिसमें सौर ऊर्जा द्वारा 100 गीगावॉट के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2030 तक नवीकरणीय स्रोत से 450 गीगावॉट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
- लॉकडाउन से कुल 5 गीगावॉट की ऊर्जा परियोजनाओं के निर्माण पर रोक लग गई है। वर्तमान में सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारत की 31.5 गीगावॉट की कमीशन क्षमता तथा 5.6 गीगावॉट की रूफटॉप सौर क्षमता है।
- इसके अलावा, लगभग 29 गीगावॉट यूटीलिटी स्केल (Utility scale) की सौर परियोजना नियोजन चरण में है। जे.एम.के. रिसर्च एंड एनालिटिक्स के अनुसार, भारत में वर्ष 2020 तक लगभग 8.3 गीगावॉट की नई यूटिलिटी स्केल सौर परियोजनाएँ और 2 गीगावॉट की रूफटॉप सौर परियोजनाओं के परिचालित होने का अनुमान है।
- वर्ष 2019 में भारत ने 7.3 गीगावॉट सौर ऊर्जा में वृद्धि की है, जो वर्ष 2018 में संस्थापित किये गए 8.3 गीगावॉट से 12% कम है।
नवीकरणीय ऊर्जा की चुनौतियाँ
- ध्यातव्य है कि कोविड-19 के प्रभाव से पूर्व ही यह क्षेत्र कुछ समस्याओं से ग्रस्त था। इन चिंताओं में विद्युत वितरण कम्पनियों द्वारा भुगतान में देरी, विद्युत खरीद समझौतों में पुनः मोल भाव तथा डंपिंग-रोधी जैसी चिंताओं के साथ-साथ पारेषण सम्बंधित मुद्दे व वित्त पोषण जैसी चिंताएँ प्रमुख रूप से शामिल हैं।
- नवीकरणीय परियोजनाओं की गतिशीलता को फाइनेंशियल इको-सिस्टम भी प्रभावित कर रहा है। वर्तमान स्थिति में वित्त पोषण पर और अधिक अंकुश लग सकता है। साथ ही, यह स्थिति नई परियोजनाओं में और देरी कर सकती है।
- ऋण अदायगी में रोक आगे ऋण वितरण को प्रभावित कर सकती हैं। साथ ही, मुद्रा अवमूल्यन से निवेश रिटर्न में गिरावट की आशंका के कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों ने पीछे हटना शुरू कर दिया है, जो नवीकरणीय परियोजनाओं की पाइपलाइन को प्रभावित करेगा।
- भारत में लगभग 10 से 11 गीगावॉट की परियोजनाएँ एडवांस चरण में हैं। इनमें से लगभग 50% परियोजनाओं पर ऑन-साइट गतिविधियाँ शुरू हो चुकी हैं। लॉकडाउन से इनकी गति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के साथ ही रिकवरी में भी अधिक समय लगेगा।
- ऐसी कई परियोजनाएँ हैं जिनके इस वर्ष तीसरी तिमाही में पूरे होने की उम्मीद थी, परंतु वर्षा के कारण वे भी बाधित होंगी। इससे आगामी परियोजनाएँ भी बाधित होंगी।
- चीन से व्यापार का निलम्बन एक बड़ा मुद्दा है, इससे आपूर्ति श्रृंखला बाधित होगी। चीन सौर मॉड्यूल का सबसे बड़ा निर्माता व निर्यातक है। कोविड-19 के कारण सौर मॉड्यूल के उत्पादन व परिवहन में बाधा आई है, ऐसे में प्रमुख उपकरणों की समय पर आपूर्ति पर भी प्रभाव पड़ेगा। ध्यातव्य है कि भारत की सौर परियोजनाओं में प्रयुक्त 80% सौर मॉड्यूल चीन से आते हैं।
- इसके अलावा, फोटोवॉल्टिक मॉड्यूल के मूल्यों में वृद्धि के कारण सौर टैरिफ में भी वृद्धि हुई है। ध्यातव्य है कि भारत अधिकांशत: सौर मॉड्यूल असेंबल करता है; साथ ही, भारत की सेल निर्माण क्षमता भी सीमित है।
- ऊर्जा उत्पादन की मांग में कमी के कारण डिस्कॉम कम्पनियाँ नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं, यह भी एक गम्भीर मुद्दा है।
- पूंजी की उपलब्धता में कमी के साथ ऋण व इक्विटी में तरलता की कमी इस क्षेत्र को और अधिक प्रभावित करेगी।
- भूमि अधिग्रहण में विद्यमान चुनौतियों के चलते भी विगत 2 वर्षों से परियोजनाओं के निविदा आमंत्रण में देरी हो रही है। अंत:क्षेत्रीय माल उपलब्धता तथा पत्तनों पर आवागमन बाधा के कारण भी लॉजिस्टिक्स में देरी हो रही है।
निवारक उपाय
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने कुछ कोशिशें की हैं, जिसके तहत सौर संयंत्र पर ऊर्जा उत्पादन को आवश्यक सेवाओं के अंतर्गत लाया गया है। हालाँकि, इस अधिसूचना में सौर संयंत्र में जारी निर्माण कार्य को भी इसके अंतर्गत लाया जाना चाहिये।
- इसके अलावा, मंत्रालय ने डिस्कॉम कम्पनियों को नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों के बिलों को मंज़ूरी देने का भी निर्देश दिया है। आपूर्ति श्रृंखला में बाधा के कारण सौर परियोजनाओं के परिचालन की समय-सीमा में भी विस्तार किया गया है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, लोड के पूर्वानुमान और सतत् वृद्धि हेतु एकीकृत दृष्टिकोण, नई तकनीक और अंतर्राज्यीय पारेषण गलियारा (Transmission corridor) की आवश्यकता है।
- वित्तपोषण की सुविधा और लम्बी अवधि की नीति में स्पष्टता प्रदान करके ऋणदाता व निवेशकों के विश्वास को पुनः जीतना होगा। इस चुनौती से बेहतर ढंग से निपटने हेतु भारत को अपने सौर विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करना होगा।
- आपूर्ति जोखिम को कम करने हेतु लम्बी अवधि के लिये वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला की पहचान भी आवश्यक है।
- भारत में ऊर्जा की समस्या लम्बे समय से चली आ रही है। गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों में भी आयात पर अत्यधिक निर्भरता है, वहीं नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भी तकनीकी व यांत्रिक रूप से दूसरों पर निर्भरता अधिक है। निर्भरता कम करने के तरीकों पर विचार करने के साथ ही सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ाते हुए घरेलू स्तर पर उत्पादकों को अधिक ऋण, छूट व सहायता प्रदान करनी होगी।
- उच्च सीमा-शुल्क को कम करके अन्य निर्यातक देशों को भी आगे आने का अवसर देने के साथ ही घरेलू उत्पादकों को भी प्रोत्साहन प्रदान करना होगा।