मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3; बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।)
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संदर्भ
कृषि में सौर ऊर्जा के बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के लिए 34,000 करोड़ रुपयेकी लागत से प्रारंभ की गई पीएम-कुसुम कार्यक्रम में देरी के कारण राज्यों ने इसे अपनाने के लिए वैकल्पिक तरीकों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया है।
पीएम-कुसुम कार्यक्रम
- केंद्र सरकार ने किसानों को ऊर्जा और जल सुरक्षा प्रदान करने, उनकी आय बढ़ाने, कृषि क्षेत्र में डीजल के उपयोग को कम करने और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए यह योजना शुरू की थी।
- इस योजना के तहत, सरकार स्टैंडअलोन सोलर पंप की स्थापना और मौजूदा ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों को सौर ऊर्जा में बदलने के लिए कुल परियोजना लागत का 30% या 50% तक सब्सिडी प्रदान करती है।
उद्देश्य
- इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 30,800 मेगावाट की सौर क्षमता जोड़ना है।
- जिसमें कार्यान्वयन एजेंसियों के लिए सेवा शुल्क सहित कुल 34,422 करोड़ रुपये की केंद्रीय वित्तीय सहायता शामिल है।
- इस योजना में तीन घटक शामिल हैं:
- घटक ए: 2 मेगावाट तक की क्षमता वाले व्यक्तिगत संयंत्रों के छोटे सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के माध्यम से 10,000 मेगावाट सौर क्षमता।
- घटक बी: 20 लाख एकल सौर ऊर्जा संचालित कृषि पंपों की स्थापना।
- घटक सी: 15 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सौरीकरण।
केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) / राज्य सरकार सहायता
- घटक-ए :
- किसानों/डेवलपर्स से बिजली खरीदने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा डिस्कॉम को पहले पाँच वर्षों के लिए 40 पैसे/किलोवाट घंटा या 6.60 लाख रुपये/मेगावाट/वर्ष की दर से खरीद आधारित प्रोत्साहन (PBI) प्रदान किया जाएगा।
- घटक-बी और सी :
- बेंचमार्क लागत या टेंडर लागत का 30% केंद्रीय वित्तीय सहायता (Central Financial Assistance : CFA),राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी 30%, शेष 40% किसान द्वारा वहन की जाएगी।
- पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में सी.एफ..ए 50%, राज्य सरकार सब्सिडी 30%, शेष 20% किसान द्वारा वहन किया जाएगा
- प्रधानमंत्री-किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) में किसानों के स्वामित्व वाली भूमि पर 100 गीगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने, 14 लाख सौर पंप लगाने और 35 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों को सौर ऊर्जा से जोड़ने की परिकल्पना की गई है।
- जून 2024 तक केवल 256 मेगावाट बिजली संयंत्र, 3.97 लाख सौर पंप और 13,500 सौर पंप स्थापित किए गए हैं।
- जिसके कारण सरकार ने योजना की समय सीमा को 2026 तक बढ़ा दिया है।
सौर ऊर्जा स्थापना में चुनौतियाँ
- भूमि अनुपलब्धता - एक मुख्य बाधा उपयुक्त भूमि की अनुपलब्धता है। भारत में सौर ऊर्जा का विकास गुजरात और राजस्थान में स्थापित बिजली परियोजनाओं के कारण हुआ है , जहाँ रेगिस्तान और बंजर भूमि के विशाल क्षेत्र बिजली संयंत्रों की स्थापना के लिए उपयुक्त हैं।
- संस्थागत क्षमता की कमी – प्राय: परियोजनाओं को वास्तव में क्रियान्वित करने के लिए संस्थागत क्षमता बहुत कम होती है।
- राजस्थान सरकार के साथ मिलकर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म विकसित किये जा रहे हैं जो भूमि के टुकड़ों का मानचित्रण करने के लिए ड्रोन तकनीक का उपयोग करता है।
- लेकिन ऐसी जानकारियां केवल सरकार के पास उपलब्ध है।
- सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार इस योजना ने अपने लक्ष्यों का केवल 30 %ही हासिल किया है, जिससे 2026 की समयसीमा को पूरा करने की इसकी क्षमता पर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- एक महत्वपूर्ण बाधा सस्ती बिजली की उपलब्धता है, जो किसानों के लिए सौर पंपों पर स्विच करने के लिए प्रोत्साहन को कम करती है।
- किसानों को प्राय: ज़रूरत से ज़्यादा बड़े पंप चुनने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनका वित्तीय बोझ बढ़ जाता है।
- कार्यान्वयन मॉडल का केंद्रीकरण एक और चुनौती पेश करता है। पंजाब में, पंजाब अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी इस योजना की देखरेख करती है, जबकि राजस्थान में, विभिन्न घटकों का प्रबंधन विभिन्न एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
आगे की राह
- विकेंद्रीकरण: जमीनी जानकारी रखने वाली स्थानीय कार्यान्वयन एजेंसियों को किसानों की आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा करने के लिए योजना का प्रबंधन करना चाहिए।
- वित्तीय व्यवहार्यता: किसानों को किश्तों में अग्रिम लागत का भुगतान करने का विकल्प प्रदान करने से योजना अधिक सुलभ हो सकती है।
- केंद्रीय सहायता में वृद्धि: राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं और सौर मॉड्यूलों की अस्थिर कीमतों के अनुरूप केंद्र से वित्तीय सहायता बढ़ाने से किसानों पर वित्तीय बोझ कम होगा।