(प्रारम्भिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र – 3 : पर्यावरण संरक्षण तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
संदर्भ
हाल ही के कुछ वर्षों में शहरी भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन एक व्यापक चुनौती बनकर उभरा है। ठोस अपशिष्ट का अनुचित प्रबंधन तथा निपटान के कारण भूक्षरण तथा खतरनाक गैसों के रिसाव से पर्यावरण और सार्वजानिक स्वास्थ्य के लिये गम्भीर खतरा उत्पन्न होता है। संविधान की 12वीं अनुसूची के अनुसार शहरों तथा कस्बों की साफ़-सफाई का उत्तरदायित्व शहरी स्थानीय निकाय का होता है।
समस्याएँ
- सम्पूर्ण भारत में, ठोस कचरे के संग्रहण, परिवहन और निपटान हेतु मौजूदा प्रणालियाँ कई समस्याओं का सामना कर रही हैं; यह समस्या भारत के शहरी क्षेत्रों में काफी गम्भीर है। शहरी आबादी द्वारा बहुत बड़ी मात्रा में तथा तेज़ी से ठोस कचरा उत्पन्न किया जा रहा है, शहरी स्थानीय निकाय इस ठोस कचरे का प्रबंधन तथा निपटान करने में असमर्थ हैं।
- अधिकांश शहरी स्थानीय निकाय बुनयादी ढाँचे की कमी से जूझ रहे हैं, जैसे- अकुशलता तथा संस्थागत क्षमता, वित्तीय समस्याएँ और इच्छाशक्ति की कमी आदि। इस प्रकार ये संस्थाएँ नवीन और उपयुक्त प्रौद्योगिकी को अपनाने में असमर्थ हैं।
- अपशिष्ट निपटान के तरीके को विनियमित करने हेतु विभिन्न कानून पारित किये गए हैं। पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) और आवास तथा शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) द्वारा ठोस अपशिष्ट तथा इससे सम्बंधित मुद्दों को हल करने हेतु विभिन्न नीतियाँ और कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। लेकिन इनमें से अधिकाँश नीतियों को लेकर हितधारकों के मध्य स्पष्टता तथा जागरूकता का अभाव है। साथ ही, नियामकों के ख़राब प्रदर्शन के कारण नीतियों के उद्देश्य सफलतापूर्वक हासिल नहीं हो पाते हैं।
- भारत में मुख्य रूप से अपशिष्ट निपटान के दो तरीके; अपशिष्ट डम्पिंग और ओपन बर्निंग हैं। इसमें ज़्यादातर शहर और कस्बों के बाहर के इलाकों में अपशिष्ट जमा करके निपटान किया जाता है, इससे स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सरकार के प्रयास
- पर्यावरण मंत्रालय ने अप्रैल, 2016 में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को अधिसूचित किया। अपशिष्ट के ये नियम नगरपालिका क्षेत्राधिकार से बाहर भी लागू होते हैं। इसमें अपशिष्ट के पुनः उपयोग तथा पुनः चक्रण हेतु विस्तृत तथा स्पष्ट रूप से प्रावधान किये गए हैं। साथ ही इन नए नियमों में खुले सार्वजानिक स्थानों, बाहरी परिसर, नालियों तथा जल निकायों में कूड़ा फेकने या जलाने पर कार्यवाही का प्रावधान किया गया है।
- पर्यावरण मंत्रालय ने वर्ष 2016 में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, 2011 के नियमों को संशोधित किया। नए संशोधनों में ग़ैर पुनर्चक्रण बहुपरती प्लास्टिक, कैरी बैग तथा एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पोंसिबिलिटी (EPR) से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण प्रावधान किये गए हैं। प्लास्टिक कैरी बैग कूड़े-कचरे का सबसे बड़ा घटक है।
- सरकार द्वारा वर्ष 2014 में पाँच वर्ष की अवधि के लिये स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य वर्ष 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्ति दिलाना था। इस मिशन के परिणाम संतोषजनक रहे हैं। साथ ही, मिशन के अंतर्गत लगातार नए तथा प्रभावशील कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे स्वच्छता सर्वेक्षण, कचरा मुक्त शहरों की स्टार रेटिंग, कम्पोस्ट बनाओ-कम्पोस्ट अपनाओ आदि।
सुझाव
- शहरों ने अपनी भौगोलिक सीमा के अन्दर कचरे के विकेंद्रीकृत निपटान तथा उपचार हेतु योजनाओं पर कार्य करना शुरू कर दिया है। थ्री आर (रिड्यूस, रियूज़ तथा रिसाइकिल) और बायोमैथेनेशन प्लांटों के माध्यम से लैंडफिल साईटों पर दबाव कम किया जा सकता है।
- अपशिष्ट कचरे के पुनर्चक्रण हेतु व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली तकनीक वेस्ट टू एनर्जी (WtE) है। इसमें दहन के ज़रिये बिजली का उत्पादन किया जाता है लेकिन अधिकांश डब्ल्यू.टी.ई. सयंत्र परिचालन और डिज़ाइन सम्बंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। तकनीक तथा निवेश के माध्यम से इन सयंत्रों का कुशल तथा प्रभावी परिचालन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- भारत में अपशिष्ट संग्रहण क्षमता में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है। साथ ही, संग्रहण प्रणाली में एकरूपता लाने तथा दक्षता बढ़ाने हेतु निजी भागीदारी तथा ग़ैर-सरकारी संगठनों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- भारत में समुचित नियोजन तथा परिष्कृत प्रक्रिया सुविधाओं के स्वदेशीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- दक्षिण कोरिया में खाद्य कचरे का अलग से पुनर्चक्रण करने का प्रावधान है। साथ ही, इस देश ने ‘नानजिदो रिकवरी प्रोजेक्ट’ की शुरुआत भी की है, जिसने खतरनाक अपशिष्ट स्थलों को सफलतापूर्वक आकर्षक स्थलों में परिवर्तित किया है।
निष्कर्ष
वर्तमान में तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण के कारण शहरों व कस्बों में ठोस अपशिष्ट की समस्या बढ़ती जा रही है, जो मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण दोनों के लिये ही चुनौती उत्पन्न कर रही है। इस चुनौती से निपटने के लिये आवश्यक है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की ऐसी प्रणाली को अपनाया जाए जो बेहतर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सहायक होने के साथ-साथ पर्यावरण के भी अनुकूल हो।