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दक्षिणी चीन सागर और चीन द्वारा क्षेत्रीय प्रसार की कोशिश

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत एवं विश्व का भूगोल)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-2: भारत और उसके पड़ोसी सम्बंध, भारत से सम्बंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

चर्चा में क्यों?

चीन के प्राकृतिक संसाधन तथा नागरिक मामलों के मंत्रालय द्वारा यह जानकारी दी गई है कि पेरासेल (Paracel) और स्प्रैटली (Spratly) द्वीप-समूहों के भौगोलिक स्थलाकृतियों का नामकरण करने के साथ-साथ प्रशासनिक जिला बनाने का निर्णय लिया गया है।

पृष्ठभूमि

दक्षिणी चीन सागर, चीन व इसके पड़ोसी देशों के मध्य विवाद का केंद्र रहा है। चीन कोविड-19 महामारी के दौरान दक्षिणी चीन सागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में व्यस्त है। चीन ने जिन 80 भौगोलिक आकृतियों का नामकरण किया है, उनमें 25 द्वीप, सोल (Shoals), व भित्ति तथा 55 समुद्री पर्वत व कटक (Ridge) शामिल है। मार्च माह में वियतनाम ने दक्षिणी चीन सागर में सम्प्रभुता के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में चीन के विरुद्ध विरोध दर्ज कराया था। इससे पूर्व वर्ष 1983 में चीन ने दक्षिणी चीन सागर में 287 भौगोलिक आकृतियों का नामकरण किया था।

विवाद

  • पिछले कुछ वर्षों में चीन ने इस क्षेत्र में सैन्य आक्रामकता में वृद्धि की है। उसने दक्षिणी चीन सागर में सैन्य और आर्थिक उद्देश्यों के लिये कृत्रिम द्वीपों व हवाई पट्टियों का निर्माण किया है। चीन की इन गतिविधियों की पड़ोसी देशों सहित पश्चिमी शक्तियों ने आलोचना की है।
  • चीन के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियाई युद्धपोत ने भी इस क्षेत्र में गतिविधि बढ़ा दी है। इस क्षेत्र में अमेरिकी युद्धपोत के प्रवेश से क्षेत्रीय अशांति का खतरा बढ़ गया है। क्षेत्रीय पर्यवेक्षकों के अनुसार, अमेरिका की उपस्थिति इस क्षेत्र में केवल तनाव में वृद्धि का कारण बनेगी।
  • हालाँकि दक्षिणी चीन सागर में अमेरिका कोई क्षेत्रीय दावा नहीं करता है, परंतु चीन को रोकने के लिये वह अपने नौसैनिक बलों को भेजता रहता है। इससे वर्तमान तनाव में वृद्धि की आशंका है।
  • इसके अलावा, कुछ माह पूर्व ही चीन ने इंडोनेशिया के दावे वाले नतना द्वीप पर भी गतिविधि बढ़ा दी थी, परिणामस्वरूप दोनों देशों के मध्य अनन्य आर्थिक क्षेत्र सम्बंधी विवाद हुआ था।

चीन का द्वीप सम्बंधी वर्तमान कदम

  • पिछले सप्ताह चीन ने एकपक्षीय कार्यवाही करते हुए दक्षिणी चीन सागर में स्थित 80 द्वीपों और अन्य भौगोलिक विशेषताओं वाली आकृतियों का नाम बदल दिया था। अतः इस क्षेत्र में दावा करने वाले पड़ोसी देशों व चीन के मध्य तनाव में वृद्धि हुई है।
  • इस बार चीन ने मुख्यतः दक्षिणी चीन सागर के मध्य में स्थित दो विवादित द्वीपसमूहों पेरासेल और स्प्रैटली के अधिग्रहण पर ध्यान केंद्रित किया है। ये दोनों द्वीपसमूह वियतनाम और फिलीपींस के क्षेत्र के मध्य में स्थित हैं।
  • पेरासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह को प्रशासित करने के उद्देश्य से चीन ने क्सिषा (Xisha) और नांशु (Nanshu) नामक दो प्रशासनिक जिले बनाने की भी घोषणा की है।
  • ऐसी स्थिति में यदि विवाद बढ़ता है तो एशिया-प्रशांत क्षेत्रों के शोधकर्ताओं का मानना है कि इस क्षेत्र में राजनयिक सम्बंधों और स्थिरता के लिये गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।
  • यह क्षेत्र मछली पालन के साथ-साथ तेल और गैस के लिये महत्त्वपूर्ण होने के कारण काफी विवादित हो गया है। इस विवाद में चीन की भूमिका सर्वाधिक है। चीन के बढ़ते समुद्री खाद्य (Seafood) की मांग को पूरा करने में भी यह सहायक है।
  • इसके अतिरिक्त यह क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापर के लिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि दुनिया का एक तिहाई समुद्री व्यापार प्रवाह यहीं से होता है। भारत का 55% व्यापार मलक्का जलमार्ग से गुजरता है।
  • इसके अलावा, वियतनाम में ओ.एन.जी.सी. विदेश तेल और गैस उत्पादन का कार्य करती है। इस क्षेत्र में अशांति का भारत पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। इन कारणों से भारत इन मामलों में लगभग उदासीन रवैया अपनाते हुए सभी पक्षों से बातचीत की अपील करता है।

स्प्रैटली द्वीपसमूह विवाद

  • स्प्रैटली द्वीप समूह और आसपास की भौगोलिक विशेषताओं जैसे- प्रवाल भित्ति और काईज (Cays-एक वियतनामी शब्द, जिसका अर्थ है प्रवाल मालाएँ) आदि के स्वामित्व को लेकर चीन व पड़ोसी देशों ताइवान, वियतनाम, फिलिपींस और मलेशिया के बीच एक क्षेत्रीय विवाद लम्बे समय से चल रहा है।
  • चीन के मानचित्र पर बनी नाइन-डैश लाइन (Nine-Dash Line) के अंतर्गत आने वाले जलीय क्षेत्र को ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम, ब्रूनेई व मलेशिया के जलीय क्षेत्र ओवरलैप करते हैं। नाइन-डैश लाइन के अंतर्गत आने वाले दक्षिणी चीन सागर के क्षेत्र को चीन अपना पारम्परिक क्षेत्र मानते हुए अपना दावा करता है।
  • नाइन-डैश लाइन नौ चिन्हों की एक वक्राकार रेखा है, जिसके अंतर्गत दक्षिणी चीन सागर का लगभग 90% क्षेत्र सम्मिलित हो जाता है।
  • वर्ष 2016 में अंतर्राष्ट्रीय अधिकरण ने नाइन डैश लाइन को विधिक रुप से आधारहीन घोषित कर दिया था, परंतु चीन ने इस निर्णय को मानने से इंकार कर दिया था।
  • वर्ष 1968 से ब्रूनेई को छोड़कर ये देश द्वीप और आस-पास के जलीय क्षेत्र के कब्जे को लेकर विभिन्न प्रकार की सैन्य गतिविधियों में संलग्न हैं। इसका कारण इस समुद्री क्षेत्र में वाणिज्यिक रूप से मछली पकड़ने के लिये अपने-अपने दावे व आपत्तियाँ हैं।
  • गौरतलब है की स्प्रैटली द्वीप समूह लगभग निर्जन है, परंतु उसके आस-पास प्राकृतिक संसाधनों के समृद्ध व अप्रयुक्त विस्तृत भंडार की सम्भावना अत्यधिक है।
  • इन सभी विवादों के बीच इन भंडारों की मात्र का पता लगाने के लिये कुछ पहल हुई है। अमेरिकी सरकार की एजेंसियों ने दावा किया था कि इन द्वीपों में तेल और प्राकृतिक गैस न के बराबर है, परंतु इन रिपोर्टों से भी इस क्षेत्रीय विवाद को कम करने में कोई व्यापक असर नहीं पड़ा है।
  • 1970 के दशक में कुछ पड़ोसी द्वीपों, विशेषकर पालावान (Palawan) के तटों पर तेल की खोज की गई थी । इस खोज ने इन देशों द्वारा किये जा रहे क्षेत्रीय दावों में वृद्धि की है।

पेरासेल द्वीप विवाद

  • पेरासेल द्वीप समूह विवाद अपेक्षाकृत अधिक जटिल है। यह द्वीप समूह दक्षिणी चीन सागर में स्थित लगभग 130 द्वीपों और प्रवाल भित्तियों का एक समूह है। यह द्वीप समूह चीन और वियतनाम से लगभग समान दूरी पर स्थित है।
  • चीन पेरासेल द्वीप समूह पर परम्परागत रूप से दावा करता है। उसके अनुसार, 14वीं शताब्दी के सॉंग (Song) राजवंश के अंतर्गत लेखों में चीन के सम्प्रभु क्षेत्र के रूप में इसका उल्लेख किया गया है।
  • दूसरी और वियतनाम का कहना है कि 15वीं शताब्दी तक ऐतिहासिक ग्रंथों से पता चलता है कि यह द्वीप उसके राज्य क्षेत्र का एक अंग था।
  • 16 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में पूर्व की ओर होने वाले खोज अभियानों का नेतृत्व करने वाले खोजकर्ताओं द्वारा इन द्वीपों का उल्लेख मिलता है।
  • फ्रांसीसी-इंडोचाइना की औपनिवेशिक शक्तियों ने बीसवीं शताब्दी में अपनी नीतियों के कारण पेरासेल द्वीप समूह से सम्बंधित तनावों में और वृद्धि की है। वर्ष 1954 तक इस द्वीप समूह पर दावे को लेकर चीन और वियतनाम के मध्य तनाव में नाटकीय रूप से वृद्धि देखी गई है।

क्या हो आगे की राह?

वर्ष 2016 में नाइन-डैश लाइन सम्बंधी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय को भी मानने से चीन ने इंकार कर दिया था। इसकी वर्तमान गतिविधि भी अंतर्राष्ट्रीय  कानूनों का उल्लंघन है। विवादित जल क्षेत्र के लिये चीन और आसियान देश एक नियमावली बनाने की कोशिश कर रहे है। चीन के इस कदम से इसमें रुकावट की भी उम्मीद है। चीन इस कदम को सामान्य मानता है। क्षेत्रीय शांति के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और समझौते का पालन किया जाना ज़रूरी है।

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