(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।) |
संदर्भ
दक्षिण कोरिया के सांसदों ने बुधवार (4 दिसंबर) को राष्ट्रपति यूक सुक सियोल से पद छोड़ने या महाभियोग का सामना करने का आह्वान किया है। यह उनके द्वारा "आपातकालीन मार्शल लॉ" की आश्चर्यजनक घोषणा के एक दिन बाद आया है, जिसे कुछ घंटों बाद ही वापस ले लिया गया था।
मार्शल लॉ के तहत प्रावधान
- मार्शल लॉ का अर्थ है नागरिक सरकार की जगह सैन्य शासन तथा नागरिक कानूनी प्रक्रियाओं के स्थान पर सैन्य प्रक्रियाओं को लागू करना।
- मार्शल लॉ के जारी रहने तक मानक नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित किया जा सकता है।
- कोरिया गणराज्य के संविधान के अनुच्छेद 77 में देश में मार्शल लॉ की घोषणा से संबंधित प्रावधान हैं।
- इसके अनुसार जब युद्ध, सशस्त्र संघर्ष या इसी तरह की राष्ट्रीय आपात स्थिति के समय सैन्य बलों को किसी सैन्य आवश्यकता से निपटने या सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने की आवश्यकता होती है, तो राष्ट्रपति कानून द्वारा निर्धारित मार्शल लॉ की घोषणा कर सकते हैं।
- दक्षिण कोरियाई कानून के अनुसार, अगर नेशनल असेंबली का बहुमत इसके निरसन के पक्ष में मतदान करती है तो सरकार को मार्शल लॉ हटाना होगा।
- अनुच्छेद 77 के अनुसार असाधारण मार्शल लॉ के तहत, वारंट की आवश्यकता, भाषण की स्वतंत्रता, प्रेस, सभा एवं संघ तथा कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों के संबंध में विशेष उपाय किए जा सकते हैं।
- कोरिया गणराज्य की स्थापना के बाद से अब तक 16 बार मार्शल लॉ घोषित किया जा चुका है। इसे आखिरी बार 1980 में घोषित किया गया था।
भारत में मार्शल लॉ संबंधी प्रावधान
- मार्शल लॉ का अर्थ मूल रूप से किसी भी राज्य या पूरे देश में सामान्य नागरिक कानून के स्थान पर सैन्य कानून लागू करना है। मार्शल लॉ की अवधारणा अंग्रेजों और उनके अंग्रेजी कॉमन लॉ की देन है।
- भारत के संविधान अथवा किसी अधिनियम में स्पष्ट रूप से मार्शल लॉ के प्रावधानों की की चर्चा नहीं की गई है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 34 नागरिकों के उन अधिकारों की चर्चा करता है जिनका मार्शल लॉ के लागू होने पर उल्लंघन किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 34 संसद को मार्शल लॉ के कार्यान्वयन के दौरान नागरिक व्यवस्था को बनाए रखने या बहाल करने के लिए किए गए कार्यों के लिए संघ के किसी भी व्यक्ति या सेवाओं को कानूनी रूप से क्षतिपूर्ति प्रदान करने की अनुमति देता है।
- यह संसद को मार्शल लॉ के तहत किए गए कार्यों के लिए किसी व्यक्ति या सेवाओं को क्षतिपूर्ति के लिए नए अधिनियम बनाने की भी अनुमति देता है।
- इस अनुच्छेद के तहत केवल दो शर्तें पूरी होनी चाहिए:
- नागरिक व्यवस्था को बहाल करने के लिए किए गए कार्य
- राज्य या देश मार्शल लॉ के अधीन होना चाहिए।
मार्शल लॉ के लागू होने की परिस्थितियाँ एवं नियम
- मार्शल लॉ को तीन स्थितियों में लागू किया जा सकता है :
- बाह्य आक्रमण
- सशस्त्र विद्रोह
- युद्ध
- यदि युद्ध या विद्रोह की स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो देश का राष्ट्रपति या प्रभावित राज्य का राज्यपाल मार्शल लॉ लागू कर सकता है।
- मार्शल लॉ लागू करने के लिए, एक आपातकालीन स्थिति होनी चाहिए जिसे बल के बिना नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
- मार्शल लॉ लागू होने के बाद, सैन्य बल प्रभावित क्षेत्रों का प्रशासन अपने हाथ में ले लेंगे।
- सेना के कमांडर के पास कोई भी निर्णय लेने का अधिकार होगा जो वह प्रभावित क्षेत्र की आम जनता के लिए सबसे उपयुक्त समझे।
- इसके लागू होने से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा।
भारतीय इतिहास में मार्शल लॉ
- स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, देश में कभी भी मार्शल लॉ लागू नहीं किया गया। हालाँकि, ब्रिटिश राज के दौरान, भारत में कई बार मार्शल लॉ लागू हुआ ।
- अमृतसर नरसंहार या जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद भड़के विद्रोह को रोकने के लिए वर्ष 1919 में मार्शल लॉ लागू किया गया था।
- ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1915 में भारत रक्षा अधिनियम भी पारित किया, जिसके कारण मार्शल लॉ लागू हुआ।
मार्शल लॉ का प्रभाव
- मार्शल लॉ का उद्देश्य विद्रोह को रोकना और नागरिक व्यवस्था को बहाल करना है, इसलिए मार्शल लॉ के लागू होने से सबसे पहले नागरिकों के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं।
- इससे प्रभावित क्षेत्रों की सत्तारूढ़ सरकार को निलंबित कर दिया जाता है।
- इसे विद्रोह से प्रभावित क्षेत्रों पर लगाया जा सकता है।
- जब मार्शल लॉ लागू किया जाता है, तो सेना मौजूदा सरकार की जगह ले लेती है और उसे व्यवस्था बहाल करने के लिए व्यापक शक्तियाँ दी जाती हैं।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, मार्शल लॉ के लागू होने से बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का निलंबन नहीं होता है।
मार्शल लॉ और राष्ट्रीय आपातकाल में अंतर
मार्शल लॉ
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राष्ट्रीय आपातकाल
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इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है।
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इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होने के साथ ही केंद्र-राज्य संबंधों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
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यह वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार और अन्य सामान्य कानूनी न्यायालयों को निलंबित कर देता है।
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यह वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार और अन्य सामान्य कानूनी न्यायालयों के अस्तित्व को जारी रखने की अनुमति देता है।
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इसे नागरिक व्यवस्था बहाल करने के लिए क्रियान्वित किया जाता है।
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इसका क्रियान्वयन युद्ध या बाह्य आक्रमण की स्थिति से निपटने के लिए किया जाता है
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इसे प्रभावित क्षेत्र में लागू किया जा सकता है।
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इसे देश के कुछ हिस्सों या पूरे देश में लागू किया जा सकता है।
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संविधान में इसके संबंध में स्पष्ट प्रावधानों का अभाव है।
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अनुच्छेद 352 के तहत इसके संबंध में विस्तृत वर्णन किया गया है।
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