प्रारंभिक परीक्षा
(विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन-3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
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संदर्भ
भारत 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा देश और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र तक पहुंचने वाला पहला देश बन गया। इसके उपलक्ष्य में 23 अगस्त, 2024 को भारत द्वारा प्रथम राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस (National Space Day) मनाया गया। अंतरिक्ष में इसरो की यह उपलब्धि भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण थी। इससे देश अंतरिक्ष क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित श्रेणी में शामिल हो गया है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में इसरो के कुछ प्रमुख मिशन एवं उपलब्धियां
चंद्रयान-1 मिशन
- प्रक्षेपण : अक्तूबर 2008 में PSLV-C11 से प्रक्षेपित
- यह चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की खोज करने वाला पहला भारतीय मिशन था।
चंद्रयान-2 मिशन
- प्रक्षेपण : जुलाई 2019 में GSLV-Mk III से प्रक्षेपित
- इसका लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना था। हालाँकि, अंतिम चरण के दौरान लैंडर विक्रम का संपर्क टूट गया और वह चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसके बावजूद चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने चंद्रमा का अध्ययन जारी रखा।
चंद्रयान-3 मिशन
- प्रक्षेपण : 14 जुलाई, 2023
- लैंडिंग : 23 अगस्त, 2023
- इस मिशन ने सुरक्षित लैंडिंग के साथ चंद्रमा की सतह पर एंड-टू-एंड क्षमता का प्रदर्शन किया है।
- इसमें लैंडर एवं रोवर कॉन्फ़िगरेशन शामिल हैं। इसे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से LVM3 से लॉन्च किया गया।
- उद्देश्य : चंद्रमा की सतह पर, विशेष रूप से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इसरो की क्षमता का प्रदर्शन करना
- मिशन का लक्ष्य :
- सॉफ्ट लैंडिंग
- रोवर एक्सप्लोरेशन
- वैज्ञानिक अन्वेषण
- विशिष्टताएं : चंद्रयान-3 में तीन मुख्य घटक हैं : लैंडर, रोवर और एक प्रोपल्शन मॉड्यूल।
अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS)
इसरो ने अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर के सहयोग से चंद्रमा की सतह की तात्विक संरचना के बारे में नई जानकारी प्राप्त की है। यह चंद्रमा के विकास को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती है।
APXS से प्राप्त परिणाम
- चंद्रयान-3 के आस-पास के क्षेत्र का प्रक्षेपण स्थल लगभग एक समान है।
- चंद्रमा की क्रस्ट का निर्माण परत-दर-परत हुआ है जो चंद्र मैग्मा महासागर (Lunar Magma Ocean : LMO) सिद्धांत को बल देती है।
- चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के आसपास की ऊपरी मिट्टी में अपेक्षा से अधिक खनिज मौजूद होता हैं जो चंद्रमा की क्रस्ट की निचली परतों का निर्माण करते हैं।
कैसे काम करता है APXS
- ए.पी.एक्स.एस. एक मोबाइल रासायनिक प्रयोगशाला है जिसका उपयोग तत्वों की संरचना का पता लगाने के लिए किया जाता है।
- यह अल्फा कणों (इलेक्ट्रॉनों से रहित हीलियम नाभिक) से एक नमूने पर बमबारी करता है और इससे उत्सर्जित ऊर्जा इस नमूने के परमाणुओं को कुछ समय के लिए 'उत्तेजित' करती है। ये परमाणु एक्स-रे उत्सर्जित करके स्थिर अवस्था में लौट आते हैं।
- इस नमूने से निकलने वाली एक्स-रे में एक विशेष मात्रा में ऊर्जा होती है जो उस तत्व के लिए अद्वितीय होती है जिससे यह उत्पन्न हुई है। यह नमूने की संरचना निर्धारित करने के लिए इन विशिष्ट उत्सर्जन संकेतों को पढ़ता है।
- एक्स-रे की उत्सर्जन दर नमूने में किसी विशेष तत्व की सांद्रता के बारे में सुराग प्रदान करती है। APXS पर कंप्यूटर नमूने से डाटा को संसाधित करते हैं ताकि मौजूद तत्वों की पहचान की जा सके और उनकी सांद्रता को मापा जा सके।
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इसरो की अन्य प्रमुख उपलब्धियां
आदित्य एल1
- प्रक्षेपण : 2 सितंबर, 2023
- प्रक्षेपण यान : PSLV C57
- यह एक सौर मिशन है। इसने 2 जुलाई, 2024 को L1 (Lagrange Point 1) के चारों ओर अपनी पहली परिक्रमा पूरी की।
- इस दौरान इसने स्थल पर वेधशालाओं और चंद्रमा की कक्षा में अंतरिक्ष यान के साथ मिलकर एक सौर तूफान का अध्ययन किया।
गगनयान टी.वी.-डी1
- इसरो ने अपने टेस्ट व्हीकल (TV) के लिए संशोधित ‘एल-40 विकास इंजन’ का इस्तेमाल किया। इस इंजन का प्रयोग 21 अक्तूबर, 2023 को 'गगनयान' मिशन के हिस्से के रूप में पहले एबॉर्ट मिशन (First Abort Mission : TV-D1) के लिए किया गया।
- इसने क्रू एस्केप सिस्टम (CES) की टेस्ट व्हीकल से अलग होने, क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित स्थान पर ले जाने और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले क्रू मॉड्यूल की गति कम करने की क्षमता का प्रदर्शन किया।
- परीक्षण के अंत में क्रू मॉड्यूल को भारतीय नौसेना के पोत आईएनएस शक्ति द्वारा बरामद किया गया।
एक्स-रे पोलरिमीटर सैटेलाइट (XPoSat)
- प्रक्षेपण : 1 जनवरी, 2024
- यह सैटेलाइट विकिरण के ध्रुवीकृत होने और इस तरह अंतरिक्ष में विकिरण के विभिन्न स्रोतों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अध्ययन करेगा।
- यह नासा के इमेजिंग एक्स-रे पोलरिमेट्री एक्सप्लोरर (IPEX) के बाद दूसरी ऐसी अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है, जिसे वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था।
- एक्सपोसैट पर मौजूद दो उपकरणों को एक्सस्पेक्ट एवं पोलिक्स कहा जाता है।
INSAT-3DS
- इसरो ने 17 फरवरी को जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) के ज़रिए मौसम संबंधी उपग्रह INSAT-3DS लॉन्च किया।
- यह मिशन नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) मिशन से पहले वाहन की विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण था, जिसे वर्ष 2025 में लॉन्च किए जाने की उम्मीद है।
- GSLV के इस संस्करण ने पहले वर्ष 2023 में NVS-01 उपग्रह को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था।
आर.एल.वी.-टी.डी.
- पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान-प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (Reusable Launch Vehicle-Technology Demonstrator : RLV-TD) कम लागत में अंतरिक्ष तक पहुंच को सक्षम करने के लिए पूर्णतया पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों को विकसित करने की दिशा में इसरो के सबसे तकनीकी प्रयासों में से एक है।
- इन परीक्षणों की सफलता ने इसरो को ऑर्बिटल रिटर्न फ़्लाइट एक्सपेरीमेंट (OREX) पर आगे बढ़ने का मार्ग प्रदान किया।
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV)
- अगस्त में इसरो ने SSLV की तीसरी एवं अंतिम विकास उड़ान शुरू की, जिसमें EOS-08 व SR-0 डेमोसैट उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया गया। EOS-08 पर तीन पेलोड थे-
- पहला, पृथ्वी अवलोकन के लिए इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इंफ्रारेड पेलोड (EOIR)
- दूसरा, वैश्विक नेविगेशन प्रदर्शित करने के लिए ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (GNSS-R)
- तीसरा, गगनयान मिशन में क्रू मॉड्यूल व्यूपोर्ट पर UV विकिरण की निगरानी के लिए एस.आई.सी. यूवी डोसिमीटर (SiC UV Dosimeter)
- लगातार दो सफल परीक्षण उड़ानों के साथ इसरो ने SSLV के विकास को पूर्ण घोषित कर दिया।
इसरो का रोडमैप
- इसरो ने अनुसंधान को प्राथमिकता देने के लिए परिचालन संबंधी जिम्मेदारियाँ न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) को सौंप दी हैं।
- इसके अतिरिक्त इसरो ने गगनयान के लिए वर्ष 2047 तक 25 वर्षीय रोडमैप घोषित किया है।
- इसरो का प्राथमिक फोकस अपने अंतरिक्ष यात्रियों या गगनयात्रियों को अंतरिक्ष उड़ान के लिए प्रशिक्षित करना रहा है। पहला मानवरहित गगनयान मिशन वर्ष 2024 के अंत में उड़ान भर सकता है।
- वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय व्यक्ति की लैंडिंग के रूप में चंद्र अन्वेषण की भी योजना है।
- इसमें चंद्रमा पर भारतीय व्यक्ति की लैंडिंग के अतिरिक्त एक चंद्रमा नमूना-वापसी मिशन (Lunar sample-return Missions), चंद्र सतह पर एक लंबी अवधि का मिशन, नासा के लूनर गेटवे (आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत) के साथ डॉकिंग और चंद्रमा की सतह पर आवास का निर्माण शामिल है।
- इस रोडमैप में वर्ष 2035 तक 'भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन' (BAS) नामक एक अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की योजना भी शामिल है।
अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) और पूर्ण चंद्र कार्यक्रम (Full-fledged Lunar Programme) के लिए भारत को एक नए लॉन्च वाहन की आवश्यकता है जो पी.एस.एल.वी. या जी.एस.एल.वी. रॉकेट की तुलना में भारी पेलोड ले जा सके। यह आवश्यकता इसरो के नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) से पूर्ण होगी।
- इसरो ने एन.जी.एल.वी. को तीन चरणों वाला लॉन्च व्हीकल बनाने की योजना बनाई है, जो सेमी-क्रायोजेनिक इंजन, लिक्विड इंजन और क्रायोजेनिक इंजन द्वारा संचालित होगा।
न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) मिशन
- इसरो अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, इसलिए मई में इसरो ने भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह डाटा और उत्पादों से संबंधित सभी वाणिज्यिक गतिविधियों को एन.एस.आई.एल. को सौंप दिया।
- NSIL ने GSAT-20/GSAT-N2 उपग्रह को लॉन्च करने के लिए स्पेसएक्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो इसका दूसरा मांग-संचालित उपग्रह है।
- वर्तमान में LVM-3 इस 4,700 टन की मशीन को लॉन्च करने में सक्षम नहीं है।
- स्पेसएक्स द्वारा अगस्त 2024 में फ्लोरिडा के केप कैनावेरल से इसे लॉन्च करने की उम्मीद है।
- एनएसआईएल ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से LVM-3 के उत्पादन के लिए अर्हता हेतु अनुरोध भी जारी किया और एसएसएलवी को प्रक्षेपित करने के लिए एक ऑस्ट्रेलियाई निजी अंतरिक्ष कंपनी के साथ एक समर्पित प्रक्षेपण सेवा समझौते पर हस्ताक्षर किए।
इन-स्पेस
- पिछले साल भारत के नए अंतरिक्ष नियामक IN-SPACe ने कई उल्लेखनीय नीतिगत अपडेट और लाइसेंस जारी किए हैं।
- इसने 'अंतरिक्ष गतिविधियों के प्राधिकरण के लिए मानदंड, दिशा-निर्देश और प्रक्रियाएं' जारी कीं।
- इसने 21 नवंबर, 2023 को यूटेलसैट वनवेब को देश का पहला उपग्रह ब्रॉडबैंड लाइसेंस भी प्रदान किया तथा 15 जुलाई को ध्रुव स्पेस द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा के रूप में ग्राउंड स्टेशन के लिए पहला लाइसेंस भी प्रदान किया।
निजी अंतरिक्ष मिशन
- निजी कंपनी अग्निकुल कॉसमॉस ने 21 मार्च को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र स्थित अपने लॉन्च पैड से अपने SoRTeD-01 यान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया।
- यह भारत से पहले चरण के रूप में अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन द्वारा संचालित यान का पहला प्रक्षेपण था।
- ध्रुव स्पेस और बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस ने जनवरी 2024 को पीएसएलवी-सी58 मिशन के चौथे और अंतिम चरण पर अपने प्रयोग किए।
अंतरिक्ष क्षेत्र का योगदान
- भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र ने पिछले दशक में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 24 बिलियन डॉलर (₹20,000 करोड़) का प्रत्यक्ष योगदान दिया है। इसने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में 96,000 नौकरियों को सीधे तौर पर बढ़ावा दिया है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र द्वारा उत्पादित प्रत्येक डॉलर के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था पर $2.54 का गुणक प्रभाव पड़ा और भारत का अंतरिक्ष बल देश के व्यापक औद्योगिक कार्यबल की तुलना में 2.5 गुना अधिक उत्पादक था।
निष्कर्ष
अंततः 21 फरवरी को भारत सरकार ने अपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में संशोधन कर दिया, जिसके तहत उपग्रह निर्माण और संचालन में 74% की सीमा तथा प्रक्षेपण अवसंरचना में 49% की सीमा को छोड़कर सभी अंतरिक्ष और अंतरिक्ष उड़ान क्षेत्रों में 100% प्रत्यक्ष एफ.डी.आई. की अनुमति दे दी गई।