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स्पैडेक्स मिशन: अंतरिक्ष अन्वेषण में क्रांति

(प्रारंभिक परीक्षा : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)

संदर्भ

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 16 जनवरी, 2025 को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (Space Docking Experiment : SpaDEX) मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया गया। 

स्पैडेक्स मिशन के बारे में 

  • लॉन्च : 30 दिसंबर, 2024
  • डॉकिंग में सफलता : 16 जनवरी 2025 
    • इससे पहले डॉकिंग को कई बार टाल दिया गया था।  
  • उद्देश्य : अंतरिक्ष यान को डॉक करने और अनडॉक करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का विकास एवं प्रदर्शन करना
  • प्रक्षेपण स्थल : सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा
  • प्रक्षेपण यान : पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV)-C 60
  • डॉकिंग कक्षा : 470 किमी. की ऊँचाई पर निम्न भू कक्षा में
  • प्रक्षेपित उपग्रह : दो उपग्रह SDX01 (चेज़र) और SDX02 (टारगेट)
    • प्रत्येक का वजन लगभग 220 किग्रा. है।
    • सौर पैनल, लिथियम-आयन बैटरी और उन्नत विद्युत प्रबंधन प्रणाली से लैस
    • एटीट्यूड एंड ऑर्बिट कंट्रोल सिस्टम (Attitude and Orbit Control System : AOCS) में स्टार सेंसर, सन सेंसर, मैग्नेटोमीटर और रिएक्शन व्हील, मैग्नेटिक टॉर्कर्स व थ्रस्टर्स जैसे सेंसर शामिल।

स्पैडेक्स मिशन के प्रमुख लक्ष्य

  • दो छोटे अंतरिक्ष यानों का उपयोग करके सम्मिलन (Rendezvous) और डॉकिंग के लिए प्रौद्योगिकी का विकास व प्रदर्शन करना
  • डॉक की गई (डॉकिंग) स्थिति में नियंत्रण क्षमता का प्रदर्शन करना
  • लक्षित अंतरिक्ष यान के जीवनकाल को बढ़ाने की क्षमता का प्रदर्शन करना
  • डॉक किए गए अंतरिक्ष यान के बीच विद्युत शक्ति हस्तांतरण का परीक्षण

स्पैडेक्स मिशन की विशेषताएँ

  • दो सैटेलाइट को अंतरिक्ष में एक-दूसरे से 3 मीटर की दूरी पर लाया गया, उनके विस्तारित वलय (Extended Rings) को एक-दूसरे से जोड़कर अंतरिक्ष में लॉक कर दिया गया।
  • इसरो ने दोनों सैटेलाइट को एक संयुक्त वस्तु के रूप में कमांड देने का भी प्रदर्शन किया।
  • दोनों सैटेलाइट के बीच विद्युत शक्ति का स्थानांतरण किया गया।
  • इसके बाद अगले चरण में दोनों के अनडॉकिंग (अलग होने) की प्रक्रिया शुरू होगी। 
  • अलग होने के बाद दोनों सैटेलाइट पर लगे पेलोड दो वर्ष तक काम करते रहेंगे।
  • यह एक लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन है।

इसे भी जानिए!

क्या होती है डॉकिंग प्रक्रिया (Docking Process)

  • डॉकिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो तीव्र गतिमान अंतरिक्ष यान को एक ही कक्षा में लाया जाता है, फिर मैन्युअल रूप से या स्वायत्त रूप से एक-दूसरे के निकट लाया जाता है और अंततः एक साथ जोड़ दिया जाता है।
    • सामान्य शब्दों में, जैसे ट्रेन के दो डिब्बों को आपस में जोड़ दिया जाता है, वैसे ही अंतरिक्ष में दो सैटेलाइट को जोड़ा गया या डॉकिंग किया गया है। 
  • इसे अत्यधिक कठिन कार्य माना जाता है क्योंकि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता है और सैटेलाइट बहुत तेज गति से चक्कर लगा रहे होते हैं।
  • डॉकिंग ऑपरेशन चालक दल, ईंधन एवं संसाधनों को स्टेशन पर ले जाने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

अन-डॉकिंग प्रक्रिया

  • इस प्रक्रिया में अंतरिक्ष में जुड़े (डॉक) हुए दो उपग्रहों को बिना किसी व्यवधान या नुकसान के सफलतापूर्वक पृथक किया जाता है और दोनों सैटेलाइट अपनी स्वतंत्र अवस्था में आ जाते हैं।

भारतीय डॉकिंग सिस्टम के बारे में 

  • भारत द्वारा प्रयोग किया जा रहा डॉकिंग तंत्र द्विआयामी है (Androgynous) जिसका अर्थ है कि चेसर एवं टारगेट दोनों सैटेलाइट पर एक जैसे सिस्टम हैं। 
  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जाने वाले अंतरिक्ष यान अंतर्राष्ट्रीय डॉकिंग सिस्टम मानक (IDSS) का पालन करते हैं (वर्ष 2010 में पहली बार प्रयोग)।
  • यह अन्य एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले IDSS के समान है किंतु इसमें दो मोटरों का प्रयोग किया गया है जबकि IDSS में 24 मोटरों का इस्तेमाल होता है।
  • मिशन में कई नए सेंसरों का उपयोग किया गया है, जैसे- लेजर रेंज फाइंडर, रेंडेज़वस सेंसर तथा प्रॉक्सिमिटी एवं डॉकिंग सेंसर, ताकि दोनों उपग्रहों को निकट लाते समय तथा उनकी डॉकिंग के समय सटीक माप ली जा सके।
  • इसने अंतरिक्ष यान की सापेक्ष स्थिति एवं वेग निर्धारित करने के लिए सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम पर आधारित एक नए प्रोसेसर का भी प्रयोग किया।
  • यह भविष्य के मिशनों के लिए पूर्णतया स्वायत्त एक प्रणाली का अग्रदूत है जो सैटेलाइट आधारित नेविगेशन डाटा के बिना डॉकिंग करने में सक्षम होगा।

अंतरिक्ष में पहली डॉकिंग 

  • अमेरिका : वर्ष 1966 में नासा का जेमिनी VIII, लक्ष्य वाहन एजेना के साथ डॉक करने वाला पहला अंतरिक्ष यान बना
  • सोवियत संघ : सोवियत संघ ने वर्ष 1967 में कॉस्मोस 186 एवं कॉस्मोस 188 अंतरिक्ष यान की पहली चालक रहित व स्वचालित डॉकिंग किया था।
  • चीन : चीन ने वर्ष 2011 में अपनी डॉकिंग क्षमता का प्रदर्शन किया था, जब मानवरहित शेनझोउ 8 अंतरिक्ष यान तियांगोंग 1 अंतरिक्ष प्रयोगशाला से जुड़ा था।

स्पैडेक्स मिशन में शामिल स्वदेशी प्रौद्योगिकियां

  • डॉकिंग तंत्र (Docking Mechanism)
  • चार सम्मिलन (Rendezvous) एवं डॉकिंग सेंसरों का एक समूह
  • विद्युत शक्ति हस्तांतरण प्रौद्योगिकी (Power Transfer Technology)
  • स्वदेशी नवीन स्वायत्त सम्मिलन एवं डॉकिंग रणनीति (Indigenous Novel Autonomous Rendezvous and Docking Strategy)
  • अंतरिक्ष यानों के बीच स्वायत्त संचार के लिए अंतर-उपग्रह संचार लिंक
  • अन्य अंतरिक्ष यान की सापेक्ष स्थिति व वेग निर्धारण के लिए जी.एन.एस.एस.-आधारित नवीन सापेक्ष कक्षा निर्धारण एवं प्रसार प्रोसेसर
  • हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर डिज़ाइन सत्यापन एवं परीक्षण के सिमुलेशन परीक्षण बेड

स्पैडेक्स : भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण में क्रांति

  • स्पैडेक्स मिशन की सफलता के बाद भारत उन्नत डॉकिंग तकनीक प्राप्त करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। 
  • अन्य तीन देश अमेरिका, चीन एवं रूस हैं। 
  • स्पैडेक्स ऐसे मिशनों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है जिनमें साझा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई उपग्रहों को लॉन्च करने की आवश्यकता होती है।
  • यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना, चंद्रयान 4 और गगनयान सहित भविष्य के मिशनों के सुचारू संचालन का मार्ग प्रशस्त करता है। 
  • यह मिशन इन-ऑर्बिट उपग्रह मरम्मत एवं असेंबली जैसे कार्यों के लिए उन्नत रोबोटिक्स का भी उपयोग करेगा, जो अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती विशेषज्ञता को प्रदर्शित करता है।
  • स्पैडेक्स का उपयोग प्रायोगिक प्लेटफ़ॉर्म के रूप में भी किया जाएगा, जिसे POEM-4 के रूप में जाना जाता है। इससे विभिन्न माइक्रोग्रैविटी प्रयोगों के लिए क्षमता विकसित होती है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में आगामी लक्ष्य

  • जनवरी 2025 में नाविक (NAVIC) मिशन का उन्नयन 
  • फरवरी 2025 में गगनयान के लिए व्योममित्र रोबोट मिशन
  • वर्ष 2026 में पहला मानवयुक्त गगनयान मिशन
  • वर्ष 2035 तक अंतरिक्ष में भारत का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना
  • वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री का उतरना 

डॉकिंग में अंतरिक्ष मौसम की भूमिका

अंतरिक्ष मौसम परिघटना के बारे में

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, अंतरिक्ष मौसम परिघटना (Space Weather Phenomena) में प्राकृतिक अंतरिक्ष पर्यावरण की भौतिक एवं परिघटना संबंधी स्थितियां, जैसे- सौर ज्वाला, सौर वायु, चुंबकीय क्षेत्र, आयनमंडल व तापमंडल इत्यादि और पृथ्वी के साथ इनकी अंतःक्रिया को समाहित किया जाता है।

अंतरिक्ष मौसम का सैटेलाइट और अंतरिक्ष यान पर प्रभाव

  • यद्यपि पृथ्वी का वायुमंडल स्थल पर अंतरिक्ष मौसम की अनिश्चितताओं से काफी हद तक बचाता है किंतु अंतरिक्ष में स्थित सैटेलाइट और अंतरिक्ष यान इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
  • सूर्य से आने वाली तेज़ लपटों से उच्च ऊर्जा विकिरण में वृद्धि सैटेलाइट के सेंसर को नष्ट कर सकती है और इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण प्रणालियों में बाधा डाल सकती है।
  • सूर्य से आने वाले चुंबकीय तूफान या कोरोनल मास इजेक्शन अंतरिक्ष के वातावरण में विक्षोभ उत्पन्न कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संचार में समस्या व स्थिति संबंधी त्रुटियाँ हो सकती हैं।

स्पैडेक्स मिशन में भूमिका

  • सामान्य परिस्थितियों में भी सटीक डॉकिंग बहुत चुनौतीपूर्ण है और खराब अंतरिक्ष मौसम के दौरान यह और भी मुश्किल हो जाता है।
  • डॉकिंग मिशन के लिए दो अंतरिक्ष यानों के बीच नगण्य सापेक्ष वेग होना आवश्यक है और टकराव या क्षति को रोकने के लिए उनके डॉकिंग पोर्ट को ठीक से संरेखित किया जाना चाहिए। 
  • इसरो के पहले डॉकिंग मिशन में सौर संबंधित गतिविधियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया क्योंकि स्पैडेक्स डॉकिंग से पहले सूर्य पर कम सनस्पॉट और अन्य चुंबकीय संरचनाएं शिथिल थीं।
    • अंतरिक्ष में व्यवधान गतिविधियों के शांत होने से ही इसरो द्वारा डॉकिंग प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया गया। 
    • किसी भी अंतरिक्ष मिशन के लिए लॉन्चिंग साइट पर मौसम अनुकूल होने पर ही लॉन्च के लिए मंजूरी मिलती है।
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