संदर्भ
- हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद आरिफ की दया याचिका खारिज कर दी है, जिसे 22 दिसंबर 2000 को लाल किले पर आतंकवादी हमला करने के अपराध के लिए मौत की सजा दी गई है।
- इससे पहले अगस्त 2011 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने हमले को “कुछ विदेशी भाड़े के सैनिकों द्वारा अघोषित युद्ध” मानते हुए अपील खारिज कर चुका है और उसके बाद दायर क्यूरेटिव याचिका भी जनवरी 2014 में खारिज हो चुकी है।
- क्यूरेटिव याचिका : ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है जब उसके फ़ैसले में कोई स्पष्ट त्रुटि हो।
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क्या है राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्तियाँ
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 की न्यायिक शक्ति के तहत अपराध के लिए दोषी करार दिए गए व्यक्ति को राष्ट्रपति क्षमा अर्थात् दंडादेश का निलंबन, प्राणदंड स्थगन, राहत और माफ़ी प्रदान कर सकता है।
- निम्नलिखित मामलों में राष्ट्रपति के पास ऐसी शक्ति होती है-
- संघीय विधि के विरुद्ध दंडित व्यक्ति के मामले में।
- सैन्य न्यायालय द्वारा दंडित व्यक्ति के मामले में।
- मृत्यदंड पाए हुए व्यक्ति के मामले में।
- राष्ट्रपति की क्षमा शक्तियों के प्रकार :
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- क्षमा (Pardon) : इसमें राष्ट्रपति अपनी क्षमा शक्ति का उपयोग कर सजा और बंदीकरण दोनों को हटा सकते हैं तथा दोषी की सजा को दंड या दंडादेशों से पूरी तरह से मुक्त कर सकते हैं।
- विराम (Respite): राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति द्वारा किसी दोषी को प्राप्त मूल सजा के प्रावधान को विशेष परिस्थितियों में बदल सकते हैं।
- उदाहरण के लिए अगर किसी गर्भावति महिला को सजा मिली है तो उसकी सजा अवधि को परिवर्तित कर सकते हैं।
- प्रविलंबन (Reprieve) : इस क्षमा शक्ति के द्वारा राष्ट्रपति अस्थायी समय के लिए किसी सजा (विशेषकर मृत्युदंड) के निष्पादन पर रोक लगा सकते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा मांगने या उसे कम करने के लिए समय देना है।
- परिहार (Remission): जब राष्ट्रपति अपनी इस क्षमा शक्ति का उपयोग करते हैं तो इसमें सजा की अवधि को कम करने का निर्णय ले सकते हैं। हालांकि इसमें सजा का चरित्र वही रहता है। उदाहरण के लिए, दो साल के कठोर कारावास की सजा को एक वर्ष के कठोर कारावास में बदला जा सकता है, लेकिन कारावास कठोर ही रहता है। इसमें सिर्फ दंड की अवधि को कम किया जाता है।
- लघुकरण (Commutation): इस क्षमा शक्ति का उपयोग कर के दंड के स्वरुप में बदलाव कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी अपराधी को कोर्ट द्वारा मृत्युदंड की सजा दी गई है तो उसे आजीवन कारावास में बदला जा सकता है। वहीं, अगर अपराधी को कठोर कारावास मिला है तो उसे साधारण कारावास में बदला जा सकता है।
मृत्युदंड के मामलों में अदालतें कौन से मानक लागू करती हैं?
बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980)
- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय भी स्थापित किए।
- कोर्ट ने कहा, "न्यायाधीशों को कभी भी खूनी नहीं होना चाहिए", और मृत्युदंड दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों को छोड़कर अन्य किसी मामले में नहीं दिया जाना चाहिए।
विधि आयोग की 262वीं रिपोर्ट (2015)
- विधि आयोग ने 2015 में प्रस्तुत अपनी 262वीं रिपोर्ट में आतंकवाद से संबंधित अपराधों और युद्ध छेड़ने के अलावा अन्य सभी अपराधों के लिए मृत्युदंड को “पूर्ण रूप से समाप्त” करने की सिफारिश की है।
- रिपोर्ट में कहा गया कि, राष्ट्रपति की ‘क्षमादान की शक्ति’ न्याय की संभावित विफलता के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसलिए, दया के अयोग्य पाए गए मामलों में मृत्युदंड दिया जाता है।
दया याचिका खारिज होने के बाद विकल्प
- राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती : प्रक्रियात्मक स्तर पर, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के आधार पर करता है, इसलिए राष्ट्रपति के निर्णय को कई आधारों पर चुनौती दी जा सकती है। जैसे :
- प्रासंगिक सामग्री पर विचार नहीं किया गया।
- शक्ति का प्रयोग राजनीतिक विचारों के आधार पर किया गया।
- निर्णय लेने में विवेक का प्रयोग नहीं किया गया।
- दया याचिकाओं पर अत्यधिक विलंब : शत्रुघ्न चौहान बनाम उत्तर प्रदेश (2014) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी को आधार बनाते हुए मौत की सजा को कम कर दिया था।
- इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2023 में दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के आधार पर एक महिला और उसकी बहन को दी गई मौत की सजा कम करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।