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स्टारलिंक : लाभ, उपयोगिता एवं चुनौतियां

(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3; अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।)

संदर्भ

भारती एयरटेल और रिलायंस जियो ने भारत में सैटेलाइट इंटरनेट एक्सेस लाने के लिए स्पेसएक्स कॉर्प की स्टारलिंक सेवा के साथ वितरण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

स्टारलिंक के बारे में

  • स्टारलिंक 7,000 से ज़्यादा निम्न भू-कक्षीय (Low Earth Orbit : LEO) उपग्रहों का एक  समूह है जो ग्राउंड टर्मिनल वाले उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट एक्सेस प्रदान करता है।
    • उपग्रहों का यह नेटवर्क एल.ई.ओ. में पृथ्वी की सतह से 550 किमी. ऊपर संचालित होता है।
    • इसके विपरीत पारंपरिक रूप से इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने वाले उपग्रह पृथ्वी की सतह से लगभग 35,000 किमी. की ऊँचाई पर स्थित होते हैं।
  • एलन मस्क के स्वामित्व वाली स्पेस एक्स वर्तमान में लगभग 40 देशों में अपनी सेवाएँ दे रही है।
  • स्पेस एक्स का पहला स्टारलिंक मिशन 24 मई, 2019 को लॉन्च किया गया था, जिसमें 60 उपग्रह शामिल थे।
  • प्रत्येक उपग्रह का वजन लगभग 260 किलोग्राम है। 
    • यह फोर-फेज्ड ऐरे एंटीना (Four-Phased Array Antennas), एकल सौर ऐरे (Single Solar Array), आयन प्रणोदन प्रणाली (Ion Propulsion System), नेविगेशन सेंसर और मलबा ट्रैकिंग प्रणाली से सुसज्जित है।

स्टारलिंक की कार्य प्रणाली

  • जब किसी इंटरनेट सिग्नल को पृथ्वी से भेजा जाता है, तो स्टारलिंक समूह में से एक उपग्रह इसे रिसीव कर नेटवर्क में शामिल अन्य उपग्रहों के साथ साझा करता है।
  • इसके बाद सिग्नल जब सबसे आदर्श उपग्रह तक पहुँच जाता है, तो इसे एक ग्राउंड रिसीवर तक रिले कर दिया जाता है।
  • स्टारलिंक उपग्रह लेज़र प्रकाश का उपयोग करते हुए एक दूसरे से संचार करते हैं।
  • फोर-फेज्ड ऐरे एंटीना से उपग्रह कम समय में ही बड़ी मात्रा में डाटा का स्थानांतरण कर सकते हैं, जबकि इन-बिल्ट नेविगेशन सेंसर सटीक इंटरनेट डाटा ट्रांसफर के लिये उपग्रहों को ऊँचाई की जानकारी प्रदान करते हैं।
  • आयन प्रणोदक, उपग्रहों को कक्षा में ले जाने, संचालित करने और उसके जीवन काल की समाप्ति पर डी-ऑर्बिट करने में मदद करते हैं।

स्टारलिंक के लाभ

  • संपूर्ण पृथ्वी कवरेज : अंतरिक्ष में स्थित उपग्रह लगातार पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं, और व्यावहारिक रूप से पृथ्वी की संपूर्ण सतह को कवर करते हैं।
  • तीव्र गति : स्टारलिंक उपग्रह की कक्षा एल.ई.ओ. में स्थित होने के कारण वे सतह पर स्थित रिसीवर के बहुत निकट होते हैं, जो डाटा ट्रांसफर प्रक्रिया के समय को काफी कम कर देता है।
    • यह सेवा लगभग 100 मेगाबिट प्रति सेकंड की गति प्रदान करती है, जो कई घरेलू ब्रॉडबैंड कनेक्शनों के बराबर है।
    • हालाँकि, विलंबता (Latency), (किसी दिए गए डाटा पैकेट को उपयोगकर्ता और स्थलीय इंटरनेट नेटवर्क के बीच यात्रा करने में लगने वाला समय) कार्यालयों और घरों में वायर्ड ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की तुलना में अधिक है।

भारत में उपयोगिता

  • भारत में, 5G कनेक्टिविटी या वायर्ड ब्रॉडबैंड की  अच्छी कवरेज वाले शहरों और कस्बों के विपरीत  स्टारलिंक उन ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में, स्टारलिंक अच्छी कनेक्टिविटी प्रदान कर सकता है जहाँ स्थलीय नेटवर्क की पहुँच अच्छी नहीं है।
  • स्टारलिंक द्वारा भारत में लद्दाख, राजस्थान से लेकर उत्तर पूर्व के दुर्गम क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों को इन्टरनेट एवं संचार की सुविधाएँ प्रदान की जाएंगी।

स्टारलिंक की कीमत

  • स्टारलिंक से जुड़ी दो लागतें हैं: सैटेलाइट नेटवर्क तक पहुँचने के लिए ज़रूरी यूजर टर्मिनल और कनेक्टेड रहने के लिए मासिक एक्सेस शुल्क।
    • वर्तमान में, अमेरिका के कुछ हिस्सों में एक आवासीय किट की कीमत $149 है, जबकि एक पोर्टेबल रोमिंग किट की कीमत $349 है।
  • यह तय नहीं है कि भारत में यह कीमत कम होगी, क्योंकि स्टारलिंक सेवा प्रदान करने की लागत प्रौद्योगिकी की प्रकृति के कारण पृथ्वी पर हर जगह समान है।
  • भूटान में इसकी कीमत 4,200 से 8,400 नगल्त्रुम है।

भारत में स्टारलिंक के समक्ष चुनौतियाँ

  • विनियामकीय चुनौती : स्टारलिंक को कई विनियामक बाधाओं का सामना करना पड़ा है, उनमें से सबसे बड़ी बाधा भारत सरकार द्वारा सामान्य रूप से इंटरनेट सेवाओं और विशेष रूप से देश में कहीं भी पहुँच  प्रदान करने वाली तकनीक की गहन जाँच  है।
    • स्पेसएक्स को दूरसंचार अधिनियम, 2023 के तहत ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशंस बाय सैटेलाइट (जी.एम.पी.सी.एस.) प्राधिकरण प्राप्त करने की आवश्यकता है।
  • सुरक्षा चिंता : कंपनी को अभी गृह मंत्रालय से भी सुरक्षा मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता है। यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसी मंजूरी प्राप्त हुई है या नहीं।
  • ग्राउंड नेटवर्क की कमी : यह भी अनिश्चित है कि क्या भारत में कंपनी के ग्राउंड स्टेशन बनाए जाएंगे या नहीं।
    • यह स्टेशन दूरसंचार अधिनियम के तहत कानून प्रवर्तन अधिकारियों को नेटवर्क तक पहुँच प्रदान करने के लिए साइट पर स्थापित उपकरणों की टैपिंग के लिए आवश्यकता होते हैं।

स्पेक्ट्रम नीलामी का मुद्दा

  • स्टारलिंक को वायरलेस स्पेक्ट्रम भी आवंटित किया जाना चाहिए जिसके माध्यम से वह अपनी सेवाएँ दे सके।
  • टेलीकॉम कंपनियों ने इस वर्ष स्टारलिंक के साथ गठजोड़ करने से पहले मांग की थी कि इस स्पेक्ट्रम की नीलामी की जाए।
  • स्टारलिंक द्वारा वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप नीलामी के स्थान पर सरकार द्वारा सभी कंपनियों को आवंटन की नीति का पालन करने की मांग की गई थी।
  • इसके बाद सरकार ने नीलामी के स्थान पर प्रशासनिक आवंटन की नीति अपनाने का निर्णय लिया।
    • भारतीय टेलिकॉम कंपनियों का मत है, नीलामी ही सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का एक मात्र आधार है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2012 के फैसले के अनुसार, दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों को आवंटित करने का एकमात्र तरीका नीलामी होना चाहिए।
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