प्रारंभिक परीक्षा
(समसामयिक घटनाक्रम)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: गरीबी एवं भूख से संबंधित विषय; स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)
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संदर्भ
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) द्वारा विश्व बाल दिवस के अवसर पर 20 नवंबर, 2024 को ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024’ रिपोर्ट नई दिल्ली में जारी की गई।
स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024 रिपोर्ट के बारे में
- शीर्षक : ‘बदलती दुनिया में बच्चों का भविष्य’
- उद्देश्य : 3 दीर्घकालिक वैश्विक शक्तियों (Megatrends) के वर्ष 2050 तक बच्चों के जीवन पर प्रभाव की जांच करना।
- ये वैश्विक शक्तियां हैं :
- जनसांख्यिकीय बदलाव
- जलवायु और पर्यावरणीय संकट
- अग्रणी प्रौद्योगिकियां
2050 के दशक के लिए रिपोर्ट में प्रस्तुत विश्लेषण अनुमान
- विश्व स्तर पर नवजात शिशुओं की जीवित रहने की दर 2000 के दशक की तुलना में लगभग 4% बढ़कर 98% से अधिक हो जाएगी।
- किसी बच्चे के 5 वर्ष की आयु तक जीवित रहने की संभावना 2000 के दशक के 1% से बढ़कर 99.5% हो गई है।
- 2000 के दशक में जन्मी बालिकाओं की जीवन प्रत्याशा 70 वर्ष और बालकों की 66 वर्ष से बढ़कर क्रमशः 81 वर्ष एवं 76 वर्ष हो गई है।
- अनुमान है कि 2050 तक 2000 के दशक की तुलना में काफी अधिक संख्या में बच्चे चरम जलवायु खतरों के संपर्क में आएंगे।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
जलवायु एवं पर्यावरणीय संकट
- रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में लगभग आधे बच्चे (लगभग 1 बिलियन) ऐसे देशों में रह रहे हैं जो जलवायु और पर्यावरणीय खतरों के उच्च जोखिम का सामना कर रहे हैं।
- बच्चों के जलवायु जोखिम सूचकांक में भारत 163 देशों में 26वें स्थान पर है।
- रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है, कि वर्तमान में बच्चे किसी भी पिछली पीढ़ी की तुलना में अधिक अप्रत्याशित एवं खतरनाक वातावरण का सामना कर रहे हैं।
- चरम मौसम खाद्य उत्पादन और खाद्य पहुँच को सीमित करता है, जिससे बच्चों में खाद्य असुरक्षा का जोखिम बढ़ जाता है।
- जलवायु संबंधी आपदाएँ बच्चों में असहायता, आघात और चिंता की भावनाएँ पैदा करती हैं।
- वर्ष 2022 से दुनिया भर में 400 मिलियन छात्रों को खराब मौसम के कारण स्कूल बंद होने का सामना करना पड़ा है।
- यह घटना बाल अधिकारों का उल्लंघन करने के साथ ही आर्थिक विकास को भी बाधित करती है।
- जलवायु और पर्यावरणीय खतरे बच्चों को उनके घरों से विस्थापित करते हैं।
जनसांख्यिकीय बदलाव
- रिपोर्ट के अनुसार, 2050 के दशक तक वैश्विक बाल जनसंख्या लगभग 2.3 बिलियन पर स्थिर हो जाने का अनुमान है।
- दक्षिण एशिया सबसे बड़ी बाल जनसंख्या वाले क्षेत्रों की श्रेणी में बना रहेगा।
- इस श्रेणी में पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के साथ-साथ पश्चिमी और मध्य अफ्रीका क्षेत्र भी शामिल हो जाएंगे।
- हालांकि भारत में वर्ष 2050 तक बच्चों की आबादी 106 मिलियन घटकर 350 मिलियन रह जाएगी, लेकिन फिर भी यह 2.3 बिलियन की वैश्विक बाल आबादी का 14.9% भाग होगा।
अग्रणी प्रौद्योगिकीय प्रभाव
- अग्रणी प्रौद्योगिकियों के प्रभाव पर, रिपोर्ट में कहा गया है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), न्यूरोटेक्नोलॉजी, अगली पीढ़ी की नवीकरणीय ऊर्जा और वैक्सीन संबंधी सफलताएं भविष्य में बच्चों के बचपन में महत्वपूर्ण सुधार ला सकती हैं।
- हालांकि रिपोर्ट में चेतावनी भी दी गई है, कि डिजिटलीकरण बच्चों को सशक्त बना सकता है, लेकिन यह उन्हें यौन शोषण और दुर्व्यवहार सहित ऑनलाइन जोखिमों के प्रति भी उजागर कर सकता है।
सामजिक-आर्थिक चिंताएं
- रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के 23% बच्चे वर्तमान में निम्न आय वाले 28 देशों में रहते हैं, जो 2000 के दशक की तुलना में दोगुने से भी अधिक है।
- 2020 से 2050 के दशक तक पूर्वी एशिया और प्रशांत एवं दक्षिण एशिया में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दोगुने से अधिक हो जाएगा।
- 2050 के दशक में वैश्विक स्तर पर लगभग 60% बच्चे शहरी परिवेश में रहेंगे, जबकि 2000 के दशक में यह आंकड़ा 44% था।
- उच्च आय वाले देशों में 95% से अधिक लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं, जबकि निम्न आय वाले देशों में यह संख्या मात्र 26% है।
- वर्तमान में बुनियादी ढांचे की सीमाएं, उच्च लागत और पहुँच संबंधी बाधाएं बच्चों की प्रगति में बाधा डालती हैं।
आगे के लिए सुझाव
- आने वाले दशकों में अधिक बच्चे शहरों में रहने लगेंगे, इसलिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि शहरी क्षेत्र अधिक स्वस्थ और सुरक्षित हों।
- बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सेवाओं में निवेश की आवश्यकता है।
- बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी, शिक्षा और अन्य आवश्यक सेवाओं में जलवायु लचीलापन का विस्तार करने की आवश्यकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा एवं भंडारण में निवेश के साथ स्थानीय नवीकरणीय समाधानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 43% की कटौती हो सके।
- बच्चों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा के लिए कानून और प्रभावी शासन प्रणाली को मजबूत करना चाहिए।
- शासन और नई प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण (Rights-based approach) के उपयोग की आवश्यकता है।