खनिज संशोधन अधिनियम पर राज्यों का रुख
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ)
संदर्भ
हाल ही में, केरल सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा संशोधित खान एवं खनिज अधिनियम का विरोध किया है।
खान एवं खनिज (संशोधित) अधिनियम, 2021
- भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिये खान एवं खनिज (विकास तथा विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन किया गया है।
- इस संशोधन के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं-
- खनिजों के अंतिम उपयोग पर लगे प्रतिबंध को हटाना- संशोधित अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा किसी भी खान को किसी विशेष अंतिम उपयोग के लिये आरक्षित नहीं किया जाएगा।
- कैप्टिव खानों द्वारा खनिजों की बिक्री- इस अधिनियम में प्रावधान है कि कैप्टिव खदानें (परमाणु खनिजों के अतिरिक्त) अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक खनिज उत्पादन का 50% तक खुले बाजार में बेच सकती हैं। संशोधन के बाद केंद्र सरकार अधिसूचना के जरिये इस सीमा को बढ़ा सकती है।
- कुछ मामलों में केंद्र सरकार द्वारा नीलामी-
- अधिनियम के तहत राज्य द्वारा खनिज रियायतों (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिजों के अलावा) की नीलामी की जाती हैं। खनिज रियायतों में खनन पट्टा और पूर्वेक्षण लाइसेंस-सह-खनन पट्टा शामिल होते हैं।
- नवीन अधिनियम केंद्र सरकार को राज्य सरकार के परामर्श से नीलामी प्रक्रिया को पूरा करने के लिये एक समयावधि निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है और राज्य सरकार द्वारा असमर्थता की स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा नीलामी प्रक्रिया आयोजित की जा सकती है।
- सरकारी कंपनियों को पट्टों का विस्तार- अधिनियम में प्रावधान है कि सरकारी कंपनियों को दिये गए खनन पट्टों की अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी।
- खनन पट्टे के समाप्त होने की शर्तों में परिवर्तन- अधिनियम में प्रावधान है कि कोई खनन पट्टा निम्न स्थिति में समाप्त हो जाएगा यदि पट्टेदार :
- पट्टे के अनुदान के दो वर्षों के भीतर खनन कार्य शुरू करने में सक्षम नहीं है।
- दो वर्ष की अवधि के लिये खनन कार्यों को बंद कर दिया गया है।
- तथापि इस अवधि के अंत में पट्टा व्यपगत नहीं होगा यदि पट्टेदार के आवेदन पर राज्य सरकार ने छूट प्रदान कर दी है।
- नवीन अधिनियम के अनुसार राज्य सरकार द्वारा पट्टे की अवधि समाप्त होने की सीमा को केवल एक बार और एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- गैर-अनन्य टोही परमिट- संशोधित अधिनियम टोही परमिट के प्रावधान को समाप्त करता है। टोही का अर्थ कुछ सर्वेक्षणों के माध्यम से किसी खनिज का प्रारंभिक पूर्वेक्षण है।
- इसके अतिरिक्त वैधानिक मंजूरियों के हस्तांतरण, लीज खत्म होने वाली खदानों के आवंटन तथा कुछ मौजूदा रियायत धारकों के अधिकारों में भी परिवर्तन किया गया है।
विरोध का कारण
- केरल सरकार ने निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर अपना विरोध प्रकट किया है-
- खनिज राज्य क्षेत्राधिकार के अधीन है तथा ये संशोधन राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण है।
- यह संशोधन कुछ निजी हितधारकों द्वारा सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण खनिजों (जैसे यूरेनियम आदि) के अनुचित रखरखाव को बढ़ावा देगा।
- इस सूची में परमाणु खनिज से सबंधित कुछ खनिजों की नीलामी के लिये केंद्र सरकार को सशक्त किया गया है।
- राज्य की सीमा के भीतर स्थित खान एवं खनिज पर राज्य सरकार का अधिकार होता है तथा संविधान की सूची II की प्रविष्टि 23 और अनुच्छेद 246 (3) के तहत राज्य के संवैधानिक अधिकार के तहत राज्य विधानसभाएं ऐसे खनिजों पर कानून बना सकती हैं।