(प्रारम्भिक परीक्षा : सामाजिक विकास; मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र – 2 : सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सेंट्रल काउंसिल ऑफ़ इंडियन मेडिसिन (आयुष मंत्रालय के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय) ने स्नातकोत्तर आयुर्वेदिक चिकित्सकों को विभिन्न प्रकार की 58 सामान्य सर्जरी, जैसे नाक, कान एवं गला (ENT), नेत्र और दंत चिकित्सा प्रक्रियाओं, के लिये औपचारिक प्रशिक्षण की अनुमति प्रदान की है।
भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सकों की पेशेवर स्थिति
- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एलोपैथी के चिकित्सा मानकों तथा प्रणालियों को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेदिक चिकित्सकों को आयुर्वेदिक सर्जरी की अनुमति प्रदान की है।
- आयुष मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि स्नातकोत्तर आयुर्वेदिक चिकित्सक पहले से ही अपने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के तहत आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों में विभिन्न सामान्य सर्जरी प्रक्रियाएँ सीख रहे हैं।
- वर्तमान में गैर-एलोपैथिक डॉक्टरों तथा आयुर्वेदिक सर्जरी में स्नातकोत्तर करने वालों अभ्यर्थियों के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
आयुर्वेदिक चिकित्सकों की आवश्यकता
- अनेक व्यक्ति आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली के कम दुष्प्रभावों को देखते हुए एलोपैथी की बजाय आयुर्वेद प्रणाली से उपचार को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन प्रशिक्षित आयुर्वेद चिकित्सकों तथा दवाइयों की अनुपलब्धता के कारण उन्हें चिकित्सा सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं।
- सर्जन सहित एलोपैथिक डॉक्टरों की कमी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी कार्य करने की अनिच्छा के चलते सरकार ने यह निर्णय लिया है। साथ ही, सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा प्रदान करने वाले आयुर्वेदिक चिकित्सा छात्रों के लिये स्नातकोत्तर की सीटों में कोटा की व्यवस्था तथा रूरल बॉन्ड का प्रावधान किया है।
सम्बंधित चिंताएँ
- आयुर्वेद चिकित्सकों को सामान्य सर्जरी की अनुमति देने में चिंता का विषय इनका अल्पकालिक तथा निम्नस्तरीय गुणवत्तायुक्त प्रशिक्षण है, जो भारत में चिकित्सा मानकों के स्तर को कम करता है।
- भारत में चिकित्सा देखभाल की गुणवत्ता अधिकतर व्यक्तिगत संसाधनों पर निर्भर है। ऐसे में, आयुर्वेदिक स्नातकों को प्रदान की गई सर्जरी करने की अनुमति का लक्ष्य जनसंख्या के उस वर्ग तक चिकित्सीय सेवाओं को पहुँचाना है, जो आधुनिक चिकित्सीय सेवाओं को वहन नहीं कर सकते हैं।
मरीजों के अधिकार सम्बंधी पहलू
- रोगी को यह जानने का अधिकार होना चाहिये कि उसका सर्जन कौन होगा, वह किस चिकित्सा पद्धति से मरीज का उपचार करेगा।
- शहरी तथा ग्रामीण रोगियों की देखभाल सम्बंधी गुणवत्ता के स्तर में कोई अंतर नहीं होना चाहिये।
आगे की राह
- साक्ष्य-आधारित एप्रोच की सहायता से चिकित्सा सुविधाओं में असामनता तथा अनुपलब्धता के अंतर को कम या समाप्त करने के लिये कार्य-साझाकरण तथा कुशल और गुणवत्तायुक्त रेफरल तंत्र विकसित करने जैसे उपायों को व्यावहारिक रूप से लागू करना होगा।
- ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों की कमी को पूरा करने का सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीका सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि करना है जिससे एक वहनीय स्वास्थ्य प्रणाली की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।
- अमेरिका के चिकित्सा आँकड़ों से पता चलता है कि सर्जरी के सभी पहलुओं पर गम्भीरता से विचार तथा कार्य करने के बावजूद प्रति वर्ष 4,000 त्रुटियाँ होती हैं। इसलिये भारत को मज़बूत और व्यावहारिक पेशेवर सहिंता तथा सुरक्षित चिकित्सा पद्धति सुनिश्चित करने हेतु एक तीव्र प्रतिक्रियात्मक कानूनी तंत्र विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
- आयुष मंत्रालय द्वारा आयुर्वेदिक चिकित्सकों को सर्जरी के लिये औपचारिक प्रशिक्षण की अनुमति इंडियन मेडिसिन सेंट्रल काउंसिल (पोस्ट ग्रेजुएट आयुर्वेद एजुकेशन) रेगुलेशन, 2016 में संशोधन के तहत दी गई है।
- वर्ष 2019 में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम में सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में औपचारिक रूप से शामिल किया गया था।