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स्टेलाइट नोजल डायवर्जेंट

(प्रारंभिक परीक्षा : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)

संदर्भ

इसरो ने PSLV के चौथे चरण  के लिए स्टेलाइट का उपयोग करके स्वदेशी नोजल डाइवर्जेंट (Nozzle Divergent) विकसित किया। 

Nozzle-Divergent

नोजल डायवर्जेंट (Nozzle Divergent) के बारे में 

  • क्या है: नोजल डायवर्जेंट,रॉकेट इंजन का वह हिस्सा होता है जो गैसों को तेजी से बाहर निकालकर थ्रस्ट (धक्का) उत्पन्न करता है।
    • यह नोजल इंजन के ऑपरेशन के दौरान बेहद उच्च तापमान (1100°C से अधिक) और यांत्रिक दबाव सहन करता है। 
    • यह थ्रस्ट की दिशा और वेग को नियंत्रित करता है, जो रॉकेट की स्थिरता और मार्गदर्शन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
  • प्रयुक्त सामग्री : 
    • PSLV के चौथे चरण में पहले विदेशों से आयातित कोलंबियम (Columbium – C103) नामक दुर्लभ और उच्च ताप प्रतिरोधी धातु का उपयोग होता था। कोलंबियम की आयात पर निर्भरता के कारण लागत और आपूर्ति दोनों प्रभावित होती थीं।
    • इसरो द्वारा स्टेलाइट का उपयोग करके स्वदेशी नोजल डाइवर्जेंट विकसित किया गया जोकि कोलंबियम की तुलना में 90% तक सस्ता विकल्प है।

स्टेलाइट (Stellite) के बारे में 

  • क्या है : स्टेलाइट, एक कोबाल्ट आधारित मिश्रधातु है जिसमें क्रोमियम, निकल, टंगस्टन और लोहा आदि शामिल हैं, जो इसे उच्च ताप और दबाव सहने योग्य बनाते हैं।
    • ISRO द्वारा विकसित विशेष स्टेलाइट को KC20WN नाम दिया गया। 
  • विकास एवं परीक्षण :इसे तमिलनाडु के महेंद्रगिरी स्थित ISRO प्रपल्शन कॉम्प्लेक्स में स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है।
  • तकनीकी विशेषताएँ:
    • उच्च ताप सहनशीलता
    • उच्च यांत्रिक शक्ति
    • सटीकता से ढलने योग्य
    • संक्षारण और घर्षण-रोधी
    • लंबे समय तक परीक्षण (665 सेकंड हॉट टेस्ट)

रणनीतिक महत्त्व :

  • आत्मनिर्भरता: भारत अब इस महत्त्वपूर्ण  तकनीक के लिए विदेशी आयात पर निर्भर नहीं रहेगा।
  • लागत में कमी: इसके उपयोग से लागत  में 90% तक की कमी होगी, जिससे अंतरिक्ष मिशनों की संख्या और दक्षता बढ़ेगी।
  • निर्यात क्षमता: भारत भविष्य में अंतरिक्ष तकनीकों के निर्यातक के रूप में उभर सकता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: स्वदेशी तकनीकें रणनीतिक रूप से अधिक सुरक्षित और सुलभ होती हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • भविष्य के मिशनों के लिए महत्त्वपूर्ण: यह विकास भविष्य में लॉन्च व्हीकल्स, उपग्रहों और विभिन्न  अंतरिक्ष अभियानों में स्वदेशी तकनीकों के अधिक उपयोग का मार्ग प्रशस्त करता है।
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