(प्रारंभिक परीक्षा: सामान्य विज्ञान) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास व अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव) |
संदर्भ
नेचर पत्रिका में प्रकाशित दो स्वतंत्र नैदानिक परीक्षणों ने पार्किंसंन रोग के लिए स्टेम सेल थेरेपी की उपयोगिता को प्रदर्शित किया है।
हालिया शोध
- इस परीक्षण में ह्यूमन इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (Human Induced Pluripotent Stem Cells) और मानव भ्रूण स्टेम सेल (Human Embryonic Stem Cells) से प्राप्त कोशिकाओं का उपयोग किया गया।
- सेल थेरेपी, विशेष रूप से मस्तिष्क में डोपामाइन-उत्पन्न करने वाले न्यूरॉन्स (डोपामिनर्जिक) की भरपाई करके, कम प्रतिकूल प्रभावों के साथ अधिक प्रभावी उपचार कर सकती है।
- पार्किंसंस रोग के लिए सेल थेरेपी की सुरक्षा एवं संभावित दुष्प्रभावों की जाँच के लिए क्योटो विश्वविद्यालय (जापान) के शोधकर्ताओं ने चरण I/II परीक्षण किया।
ह्यूमन इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल का प्रयोग
- इसके तहत मस्तिष्क में ह्यूमन इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल से प्राप्त डोपामिनर्जिक प्रोजेनिटर का प्रत्यारोपण किया गया।
- प्रत्यारोपित कोशिकाओं ने किसी अतिवृद्धि के बिना या ट्यूमर के बिना डोपामाइन का उत्पादन किया।
- इस परीक्षण में शोधकर्ताओं ने पार्किंसंन रोग (अध्ययन का एक द्वितीयक परिणाम) से जुड़े मोटर लक्षणों में कमी देखी।
मानव भ्रूण स्टेम सेल का प्रयोग
- शोधकर्ताओं ने मानव भ्रूण स्टेम सेल से प्राप्त डोपामिनर्जिक न्यूरॉन प्रोजेनिटर सेल उत्पाद (बेमडेनप्रोसेल) की सुरक्षा का पता लगाया।
- इसके तहत रोगियों के मस्तिष्क के पुटामेन में बेमडेनप्रोसेल का सर्जिकल प्रत्यारोपण किया गया।
- इस परीक्षण में चिकित्सा से संबंधित कोई गंभीर प्रतिकूल घटना नहीं हुई और रोगियों के मोटर फ़ंक्शन में कुछ सुधार भी देखा गया।
पार्किंसंन रोग के बारे में
पार्किंसंन रोग एक दीर्घकालिक (Chronic) एवं वृद्धिशील (Progressive) तंत्रिका तंत्र विकार है जो मुख्यतः मस्तिष्क के उस भाग को प्रभावित करता है जो शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
कारण
- डोपामिन नामक रसायन की कमी
- पार्किन्सन रोग मुख्यतः डोपामिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर के उत्पादन में गिरावट के कारण होता है।
- यह रसायन सब्सटैंटिया निग्रा (Substantia Nigra) नामक मस्तिष्क भाग द्वारा उत्पादित होता है।
- आनुवंशिक कारण : कुछ मामलों में यह रोग वंशानुगत भी हो सकता है।
- पर्यावरणीय कारक : विषैले रसायनों के संपर्क में आना, कीटनाशक, औद्योगिक प्रदूषण इत्यादि।
मुख्य लक्षण
- हाथ व पैरों में कंपकंपी
- गति में सुस्ती आना
- शारीरिक संतुलन की समस्या एवं अकड़न
- बोलने व लिखने में कठिनाई
निदान
- MRI एवं CT Scan के माध्यम से
- न्यूरोलॉजिकल परीक्षण के आधार पर रोग की पहचान
उपचार
- पार्किंसंन रोग का कोई स्थायी उपचार नहीं है किंतु लक्षणों को निम्नलिखित माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है :
- Levodopa, Dopamine Agonists एवं MAO-B Inhibitors जैसी दवाओं का उपयोग
- शरीर को सक्रिय बनाए रखने के लिए फिजियोथेरेपी एवं एक्सरसाइज
- डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (Deep Brain Stimulation: DBS) : गंभीर मामलों में मस्तिष्क में एक डिवाइस प्रत्यारोपित की जाती है।
भारत में स्थिति
- भारत में लगभग 70 लाख से अधिक लोग पार्किंसंन से प्रभावित माने जाते हैं।
- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और NIMHANS जैसे संस्थान इस पर अध्ययन कर रहे हैं।
- जन जागरूकता की कमी और देर से निदान इस रोग के उपचार में एक बड़ी चुनौती है।