(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : स्वास्थ्य सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)
संदर्भ
कोविड-19 महामारी के पश्चात् यह अनुभव किया गया कि स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या का समाधान केवल आर्थिक सहायता प्रदान करने से नहीं होगा बल्कि इसके लिये स्वास्थ्य के क्षेत्र में निरंतर सुधार की आवश्यकता है।
भारत में स्वास्थ्य की समस्या
- स्वास्थ्य की वास्तविक स्थिति का अवलोकन करने पर इस क्षेत्र में असमानता, जागरूकता की कमी, पर्याप्त आधारभूत संरचना आभाव आदि कई समस्याएँ दिखाई पड़ती है।
- आधुनिक सुविधा से युक्त अधिकतर अस्पताल नगरीय क्षेत्र में केन्द्रित हैं, अतः इन अस्पतालों पर अधिक बोझ पड़ने के साथ-साथ इसके संचालन में भी समस्या उत्पन्न हो रही है।
- भारत में जनसंख्या और चिकित्सक अनुपात में काफी अंतर है। वर्ष 2011 के एक अध्ययन के अनुसार 10,000 जनसंख्या पर मात्र 20 स्वास्थ्य कर्मी हैं।
- लोगों में शिक्षा की कमी और अपने स्वास्थ्य को वरीयता न देना (विशेषकर महिलाओं द्वारा) चिंता का विषय बना हुआ है।
- ग्रामीण क्षेत्र की जनसंख्या के साथ-साथ नगरीय क्षेत्र के वंचित लोगों तक ठीक तरह से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच नहीं है।
- गरीब व्यक्ति द्वारा स्वास्थ्य खर्च को उठा सकने और उसकी आमदनी के अनुसार गुणवत्तायुक्त सेवा मिलने में भी समस्या देखी जा सकती है।
बजट में स्वास्थ्य
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को पिछले वर्ष की तुलना में 10% तक अधिक धन प्रदान किया गया है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के अनुसार भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 6% तक स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय करता है। इस बार के बजट में वर्ष 2025 तक इस व्यय को 2.5% तक बढ़ाने का दावा किया गया है।
- स्वास्थ्य सेवा को अगले छ: वर्षो में मज़बूत बनाने के संकल्प को पूर्ण करने के लिये ‘पी.एम. आत्म निर्भर स्वस्थ भारत योजना’ में तथा वित्त आयोग के अनुदान परामर्श के अनुसार धन राशि आवंटित की गई है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य चिकित्सा सेवा शहरी एवं ग्रामीण को वर्ष 2022 तक अधिक विस्तारित करने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में धन का आवंटन 4% तक बढ़ा दिया गया है, परंतु स्वास्थ्य सेवा के फ्रंटलाइन वर्कर, जैसे- आंगनवाडी तथा आशा कार्यकर्ताओं आदि के वेतनमान तथा बीमा के लिये विशेष प्रयास नहीं किये गए हैं।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, 2018-2019 की रिपोर्ट के अनुसार ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ (PM-JAY) अपने कई मोर्चो पर असफल रही, फिर भी इस योजना को लगभग दोगुना धन दिया गया है।
- लगभग 15 इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर को बजट में धन आवंटन किया गया है। हालाँकि, इन सेंटरों के संचालन तथा इनकी त्वरित आवश्यकताओं के संबंध में स्पष्ट रेखांकन नहीं किया गया है।
सार्वभौमिक स्वास्थ्य में आगे की दिशा
- वर्ष 2018 में शुरू कि गई ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ में 50 करोड़ गरीब नागरिकों को कवर किया गया है और प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष खर्च 5 लाख रूपए निर्धारित किये गए हैं। वर्ष 2021 में इस योजना पर सरकार की अधिकतम लागत 1,08,000 करोड़ रूपए है। यदि सरकार इस योजना को छोटे स्तर तक संचालित कर पाने में सफल होती है तो विश्व की वृहद् स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले देशों की सूची में भारत शामिल हो जायेगा।
- अंततः उच्च स्वास्थ्य कवरेज के साथ-साथ वित्तीय सुरक्षा भी आवश्यक है। उदाहरण के रूप में आंध्र प्रदेश में सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा लगभग 70% है उसके बावजूद देश के ‘आउट ऑफ़ पॉकेट’ खर्च में उनका हिस्सा काफी अधिक है, जबकि हिमाचल प्रदेश का सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा में योगदान काफी कम होने के बावजूद आउट ऑफ़ पॉकेट में इनका योगदान काफी कम है।
- भारत को स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को चुस्त करना होगा। साथ ही, दूरदराज के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिये टेलीमेडिसिन सेवा को विशेष रूप से इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ पहुँचाना होगा।
- इसके अतिरिक्त आयुष्मान योजना के संयोजन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पर जोर देना होगा। साथ ही, जी.डी.पी. में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय को 2.5% से 3% तक करना होगा।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में उल्लिखित आउट ऑफ़ पॉकेट खर्च को 65% से घटाकर 30% तक लाना है। साथ ही, स्वास्थ्य बीमा को प्रोत्साहित किये जाने के साथ-साथ उसे किसी भी आपदा को सँभालने योग्य बनाया जाना चाहिये।
- चूँकि भारत की स्वास्थ्य सेवा में निजी क्षेत्र की बड़ी हिस्सेदारी है अतः नीति निर्माताओं को ऐसी नीतियाँ बनानी होगी, जिसमें सूचना की विषमता को दूर किया जा सके।
- ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज स्टडी, 2016 के अनुसार स्वास्थ्य गुणवत्ता के मामले में भारत 180 देशो की सूची में 145वें स्थान पर है। इस बात को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के आधुनिकीकरण एवं गुणवत्ता मानकों को बढाए जाने की आवश्यकता है।