(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक विकास; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र –3, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
कोविड-19 महामारी के कारण सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योग (MSMEs) बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। लॉकडाउन के कारण सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प रहीं, जिससे अनेक लघु उद्योग गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं तथा वित्तपोषण संबंधी आवश्कताओं को पूरा करने के लिये सरकारी नीतियों व उपायों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योगों का महत्त्व
- सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योग अर्थव्यस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लगभग 6.3 करोड़ एम.एस.एम.ई. देश की जी.डी.पी. में एक-तिहाई का योगदान देते हैं और आबादी के एक बड़े हिस्से को विशेषकर असंगठित क्षेत्र में रोज़गार प्रदान करते हैं।
- भारत में विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया जाता है, ऐसे में एम.एस.एम.ई. ने घरेलू उत्पादों को आयातित उत्पादों के समक्ष प्रतिस्पर्धी बनाया है।
- एम.एस.एम.ई. आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त करने के साथ-साथ भारत की आर्थिक रणनीति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- ये उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगीकरण में भी उल्लेखनीय योगदान देते हैं। लघु एवं मध्यम उद्यम पूरक इकाइयों की तुलना में बड़े उद्योग होते हैं,जो देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में भी योगदान देते हैं।
- घरेलू उत्पादन में वृद्धि, न्यून निवेश आवश्यकताएँ, परिचालनात्मक लचीलापन, स्थानिक गतिशीलता, उचित घरेलू तकनीक विकसित करने की क्षमता और प्रशिक्षण प्रदान करके निर्यात बाज़ार द्वारा नए उद्यमियों के प्रवेश के माध्यम सेएम.एस.एम.ई. क्षेत्रराष्ट्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योगों के समक्ष चुनौतियाँ
- बैंकिंग क्षेत्र तक व्यापक पहुँच न होने के कारण अधिकाँश एम.एस.एम.ई. वित्तीय आवश्यकताओं के लिये एन.बी.एफ़.सी. और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (MFI) पर निर्भर होते हैं। ऐसे में जब एन.बी.एफ़.सी. या सूक्ष्म वित्त संस्थानों में पूंजी या तरलता की कमी होती है तब इन उद्योगों को भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
- इस क्षेत्र के लिये ऋण माँग तथा ऋण आपूर्ति में एक बड़ा अंतर है। इस क्षेत्र को औपचारिक रूप से 16 ट्रिलियन रुपए का ऋण प्राप्त होता है, जबकि इसकी समग्र मांग 36 ट्रिलियन है। इस प्रकार, ऋण माँग तथा ऋण आपूर्ति में 20 ट्रिलियन का अंतर है।
- वर्तमान समय में लगभग 6.3 करोड़ एम.एस.एम.ई. में से केवल 1.1 करोड़ ही जी.एस.टी. व्यवस्था के अंतर्गत पंजीकृत हैं। इनमें भी आयकर दाखिल करने वालों की संख्या तो और भी कम है, जिस कारण इस क्षेत्र को डाटा के आभाव में पर्याप्त ऋण और अन्य लाभ प्राप्त नहीं हो पाते।
- एक अनुमान के मुताबिक एम.एस.एम.ई. क्षेत्र जर्मनी तथा चीन की जी.डी.पी. में क्रमशः 55% और 60% का योगदान देताहै, जबकि भारत में इस स्तर को प्राप्त करने के लिये अभी एक लंबा रास्ता तय करना होगा।
- इसके अतिरिक्त, आधारभूत ढाँचे की कमी, बाज़ार तक पहुँच का न होना, आधुनिक तकनीक का आभाव, कौशल विकास एवं प्रशिक्षण का आभाव तथा जटिल श्रम कानून भी एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के लिये चुनौती उत्पन्न करते हैं।
सरकारी प्रयास
- महामारी के समय में एम.एस.एम.ई. क्षेत्र को बढ़ावा देने केउद्देश्य से आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत इस क्षेत्र के लिये निम्नलिखित घोषणाएँ की गईं-
- सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिये 3 लाख करोड़ रुपए की आपातकालीन कार्यशील पूंजी सुविधा
- ऋणग्रस्तसूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिये 20,000 करोड़ रुपए का ग़ैर-प्राथमिकता क्षेत्र ऋण
- एम.एस.एम.ई. फंड ऑफ़ फंड्स के माध्यम से 50,000 करोड़ रुपए की इक्विटी का प्रावधान।
- एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के विकास के लिये जनवरी 2019 में एम.एस.एम.ई. मंत्रालय ने एक स्थाई पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के उद्देश्य से निर्यात संवर्द्धन परिषद् का गठन किया।
- इस क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2018 में ब्याज अनुदान योजना शुरू की गई। भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक इस योजना के लिये नोडल एजेंसी है।
- एम.एस.एम.ई. इकाईयों का विस्तृत डाटा-आधार निर्मित करने तथा सार्वजनिक खरीद नीति के तहत खरीद प्रक्रिया में भाग लेने के उद्देश्य से एम.एस.एम.ई. डाटा बैंक का गठन किया गया।
- एम.एस.एम.ई. क्षेत्र की विपणन क्षमता को घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाने के लिये विपणन संवर्द्धन योजना शुरू की गई।
- इसके अतिरिक्त, स्फूर्ति योजना, एस्पायर योजना, साख गारंटी कोष, ज़ीरो डिफेक्ट ज़ीरो इफ़ेक्ट, स्टैंड-अप तथा मुद्रा (MUDRA) जैसी योजनाएँ भी एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के विकास से संबंधित हैं।
सुधार हेतु सुझाव
- एम.एस.एम.ई. क्षेत्र का वृहद स्तर पर औपचारीकरण (Formalization) होना चाहिये। हालाँकि इन उद्योगों का पंजीकरण, प्रमाणन तथा प्रलेखन तेज़ी से हो रहा है।जहाँ वर्ष 2015 में केवल 22 लाख पंजीकृत एम.एस.एम.ई. थे, वहीं अब यह संख्या 88 लाख हो गई है।
- भारत में बॉण्ड बाज़ार धीरे-धीरे विकसित हो रहा है। अतः एम.एस.एम.ई. बॉण्ड जारी करने का प्रयास करना चाहिये। इससे ऋण पूंजी बाज़ारों की भागीदारी को बढ़ावा मिल सकता है।
- एम.एस.एम.ई. क्षेत्र को बेहतर समझने, इससे संबंधित डाटा व सूचनाओं का प्रयोग करने तथा इसके लिये उचित नीतियों के निर्माण के लिये सरकार को एक स्वतंत्र निकाय का गठन करना चाहिये, जो इस क्षेत्र के लिये एक परामर्शदाता की भूमिका निभाएगा।
- वर्तमान के श्रम कानून एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के लिये अनुकूल नहीं हैं। अतः विकासोन्मुख ढाँचा प्रदान करने के लिये ऐसे श्रम कानून बनाए जानेचाहियें जो इस क्षेत्र के लिये अनुकूल हों तथा श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा करने में भी सक्षम हों।
- इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र के विकास हेतु कर-व्यवस्था में सुधार, ई-कॉमर्स को बढ़ावा, बाज़ार तक आसान पहुँच और व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं कौशल विकास जैसे उपायों को अपनाना चाहिये।
निष्कर्ष
एम.एस.एम.ई. क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। आर्थिक विकास को गति देने तथा ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने के लिये इन उद्योगों के विकास को प्राथमिकता देना आवश्यक है। हालाँकि, सरकार इनके विकास की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन ये प्रयास वर्तमान में पर्याप्त नहीं हैं। अतः वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए प्रभावी उपायों को अपनाना तथा एक सक्षम तंत्र का निर्माण करना आवश्यक है।