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ओबीसी का उप-वर्गीकरण

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी की अध्यक्षता में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उप-वर्गीकरण की जांँच के लिए आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया। 
  • पांँच वर्ष पूर्व गठित आयोग के कार्यकाल को अब तक 10 बार बढ़ाया जा चुका है। 
  • अब उस अपनी रिपोर्ट अगले वर्ष 31 जनवरी तक प्रस्तुत करनी है।

ओबीसी का उप-वर्गीकरण :

  • सरकार द्वारा आरक्षण के उद्देश्य से ओबीसी के बड़े समूह के भीतर उप-श्रेणियाँ बनाने का विचार है। 
  • केंद्र सरकार के तहत ओबीसी को नौकरियों और शिक्षा में 27% आरक्षण दिया जाता है। 
  • विगत वर्ष सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया था।
  • ओबीसी उप-वर्गीकरण इसलिए आवश्यक है कि ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल 2,600 से अधिक में से केवल कुछ संपन्न समुदायों ने 27% आरक्षण का एक बड़ा हिस्सा हासिल किया है। 
  • ओबीसी के भीतर उप-श्रेणियां बनाने का तर्क यह है कि यह सभी ओबीसी समुदायों के बीच प्रतिनिधित्व का "समान वितरण" सुनिश्चित करेगा।
  • उप-वर्गीकरण के लिए 2 अक्टूबर, 2017 को रोहिणी आयोग का गठन किया गया था।

यह मूल रूप से निम्नलिखित संदर्भ शर्तों के साथ स्थापित किया गया था:

  • ओबीसी की व्यापक श्रेणी में शामिल जातियों या समुदायों के बीच आरक्षण के लाभों के असमान वितरण की सीमा की जांच करना।
  • ओबीसी के भीतर उप-वर्गीकरण के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अनुसार तंत्र, मानदंड और पैरामीटर तैयार करना।
  • ओबीसी की केंद्रीय सूची में संबंधित जातियों या समुदायों या उप-जातियों या समानार्थक शब्दों की पहचान करने और उन्हें उनकी संबंधित उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करने की कवायद शुरू करना।
  • ओबीसी की केंद्रीय सूची में विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करना और किसी भी दोहराव, अस्पष्टता, विसंगतियों और वर्तनी या प्रतिलेखन की त्रुटियों के सुधार की सिफारिश करना।
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