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अनुसूचित जाति का उप-वर्गीकरण

प्रारंभिक परीक्षा- समसामयिकी, अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के लिए समिति, ईवी चिन्नैया मामला, अनु. 341
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 2,  अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि

संदर्भ-

हाल ही में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जातियों के सबसे पिछड़े समुदायों को लाभ, योजनाओं और पहलों के समान वितरण के लिए एक पद्धति का मूल्यांकन और काम करने के लिए एक समिति का गठन किया है 

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मुख्य बिंदु-

  • ये अनुसूचित जाति के वे समुदाय हैं, जिन्हें अपेक्षाकृत प्रभावशाली लोगों ने बाहर कर दिया है। 
  • इससे पूरे देश में लगभग 1,200 अनुसूचित जातियों के सबसे पिछड़े समुदायों को लाभ मिलेगा।

समिति के बारे में-

  • पीएम मोदी ने तेलंगाना में ‘मडिगा रिजर्वेशन पोराटा समिति’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में घोषणा की थी कि सरकार जल्द ही समिति का गठन करेगी।
  • पांच सदस्यीय समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे
  • इसमें गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय, जनजातीय मामलों के मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय के सचिव शामिल हैं। 
  • समिति को अपना रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कोई समय सीमा नहीं दिया गया है। 
  • समिति केवल मौजूदा योजनाओं के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करेगी।
  • आरक्षण के सवालों या रोजगार और शिक्षा के लिए एससी कोटा का विभाजन क्या होना चाहिए या नहीं इस पर समिति विचार नहीं करेगी  
  • यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

केंद्र सरकार के पूर्व के प्रयास-

  • केंद्र सरकार ने वर्ष, 2005 में SC के उप-वर्गीकरण के लिए कानूनी विकल्पों पर विचार किया था। 
  • उस समय भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल ने राय दी थी कि ऐसा तभी सकता है जब ऐसी आवश्यकता को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त और निर्विवाद सबूत हों। 
  • उस समय अनुसूचित जाति आयोग और अनुसूचित जनजाति आयोग दोनों ने भी उप-वर्गीकरण के लिए संविधान में संशोधन करने के कदम का विरोध किया था।
  • आयोगों के अनुसार, कि आरक्षण के भीतर आरक्षण को अलग रखना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि यह सुनिश्चित करना होगा कि मौजूदा योजनाएं और लाभ वंचित लोगों तक पहुंचें। 
  • प्राथमिकता के आधार पर यह अधिक उचित है।
  • संविधान संसद को SC या ST को उप-वर्गीकृत करने से नहीं रोकता है।
  • प्रत्येक समुदाय और उप-समुदाय की जाति जनगणना और उनके संबंधित सामाजिक-आर्थिक डेटा का 100%जनगणना होना चाहिए  

अन्य राज्यों के प्रयास-

  • पिछले दो दशकों में पंजाब, बिहार और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों ने एससी को उप-वर्गीकृत करने का प्रयास किया है। 
  • इन राज्यों ने उपश्रेणियों के लिए आरक्षण की एक अलग मात्रा तय करने के लिए राज्य स्तर पर आरक्षण कानून लाने की कोशिश की है। 
  • ये मामले अभी कोर्ट में अदालतों में रुकी हुई हैं, सुप्रीम कोर्ट की सात-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का इंतज़ार कर रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय-

  • वर्ष, 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में 5-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि; 
  • एक बार जब किसी समुदाय को संविधान के अनु. 341 के तहत अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है , तो वे लोगों के एक बड़े वर्ग का हिस्सा बन जाते हैं। 

अनु. 341(1)- राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के राज्यपाल से परामर्श के बाद सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा अनुसूचित जाति के बारे में निर्देश दे सकता है।

अनु. 341(2)- संसद कानून द्वारा खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना किसी समूह को अनुसूचित जाति के रूप में शामिल कर सकती है या बाहर कर सकती है।

  • राज्य के पास एकल वर्ग के भीतर उप-वर्गीकरण बनाने की विधायी शक्ति नहीं है। 
  • इस तरह की कार्रवाई समानता के अधिकार का उल्लंघन होगी ।
  • ईवी चिन्नैया मामले में न्यायालय के फैसले के दो साल बाद  पंजाब विधानमंडल ने ‘पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 लागू किया। 
  • इस अधिनियम की धारा 4(5) में एससी आरक्षण के लिए बाल्मीकि और मजभी सिखों को प्राथमिकता दी गई। 
  • पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने ईवी चिन्नैया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए 2010 में इस प्रावधान को रद्द कर दिया 
  • पंजाब राज्य ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के विरुद्ध अपील की और वी चिन्नैया मामले में अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया । 
  • यह मामला वर्ष, 2014 में 5 जजों की संविधान पीठ को भेजा गया था।
  • 27 अगस्त, 2020 को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने उप-वर्गीकरण को मान्यता प्रदान की 
  • लेकिन पीठ ने उप-वर्गीकरण के संवैधानिक होने के सवाल को 7-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया।
  • वर्तमान में इस पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई नौकरियों और शिक्षा में उनके लिए निर्धारित आरक्षण के विभाजन के उद्देश्य से अनुसूचित जाति के बीच उप-वर्गीकरण की संवैधानिकता पर होगी।

मडिगा समुदाय-

  • मडिगा समुदाय अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के लिए वर्ष, 1994 से संघर्ष कर रहा है।
  • उनकी मांग पर वर्ष 1996 में न्यायमूर्ति पी. रामचन्द्र राजू आयोग और वर्ष 2007 में एक राष्ट्रीय आयोग का गठन हुआ, दोनों के अनुसार उप-वर्गीकरण का रास्ता निकाला जा सकता है।
  • मडिगा समुदाय के लोग तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में रहते हैं।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, तेलंगाना की आबादी में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 15% से कुछ अधिक है। 
  • मडिगा समुदाय तेलंगाना में कुल अनुसूचित जाति का कम से कम 50% हिस्सा है। 
  • मडिगा समुदाय के अनुसार, SC वर्ग के लिए आरक्षण सहित सभी लाभ, माला समुदाय द्वारा हड़प लिया जाता है और मडिगा को इसका लाभ नहीं मिलता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण को लेकर केंद्र सरकार द्वारा गठित समिति किस/किन मंत्रालयों के सचिव  शामिल है/हैं?

  1. गृह मंत्रालय
  2. कानून मंत्रालय
  3. जनजातीय मामलों के मंत्रालय 
  4. सामाजिक न्याय मंत्रालय

नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।

(a) 1, 2 और 3

(b) 1, 3 और 4

(c) 2, 3 और 4

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर- (d)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- अनुसूचित जातियों के सबसे पिछड़े समुदायों को लाभ, योजनाओं और पहलों के समान वितरण के लिए उप-वर्गीकरण आवश्यक है। विवेचना कीजिए।

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