(प्रारंभिक परीक्षा: भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-1; विषय: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान)
संदर्भ
23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाई जा रही है। बोस को अदम्य साहस और प्रतिबद्धता का प्रतीक माना जाता है। स्वतंत्रता संग्राम में इन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी जयंती के अवसर उनसे जुड़े अनेक पहलूओं पर विचार-विमर्श किया गया है।
स्वतंत्रता संग्राम में सुभाषचंद्र बोस का योगदान
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बोस एक उपनिवेश नेता के रूप में उभरे। बोस वर्ष 1921 में कांग्रेस के साथ जुड़े और महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए असहयोग आंदोलन में शामिल हुए।
- इन्होंने वर्ष 1921 में आई.सी.एस. परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन मातृभूमि की सेवा के लिये इस्तीफा दे दिया।
- उसके बाद बंगाल कांग्रेस में स्वयंसेवकों के युवा शिक्षक और कमांडेंट बन गए। उन्होंने 'स्वराज' अखबार की शुरुआत की। वर्ष 1927 में जेल से रिहा होने के बाद, बोस कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने और जवाहरलाल नेहरू के साथ भारत के स्वतंत्रता-संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वर्ष 1938 में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया और इन्होंने एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया, जिसमें व्यापक औद्योगीकरण की नीति तैयार की गई। वर्ष 1939 में वे पुनः अध्यक्ष चुने गए, परंतु गांधीवादी समर्थक पट्टाभि सीतारमैया को हराने और गांधीजी का समर्थन न मिलने के कारण उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया।
- वर्ष 1939 में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल का गठन किया गया, जो कांग्रेस के भीतर एक गुट के रूप में उभरा। इसका मुख्य उद्देश्य कांग्रेस पार्टी के सभी कट्टरपंथी तत्त्वों को एकसाथ लाना था, ताकि वह समानता एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए भारत को पूर्ण स्वतंत्र करा सकें।
- वर्ष 1941 में बोस भारत से भागकर जर्मनी चले गए और भारत की स्वतंत्रता के लिये कार्य करने लगे। वर्ष 1943 में वह भारतीय स्वतंत्रता लीग का नेतृत्व करने के लिये सिंगापुर आए।
- 21 अक्टूबर, 1943 को इन्होंने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार के गठन की घोषणा की।
आज़ाद हिंद फौज (INA)
- दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना को जाग्रत करने के लिये बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना या आज़ाद हिंद फौज (INA) का पुनर्निर्माण किया।
- यह भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति में एक प्रभावी साधन बनीं । आज़ाद हिंद फौज भारत के लोगों के लिये एकता और वीरता का प्रतीक बन गई थी।
- वर्ष 1944 की शुरुआत में आज़ाद हिंद फौज की तीन इकाईयों ने अंग्रेज़ों को देश से बाहर खदेड़ने के लिये भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से पर आक्रमण किया।
- आज़ाद हिंद फौज में लगभग 60,000 सैनिक शामिल थे, जिसमें युद्ध-बंदियों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी एशिया के विभिन्न देशों में बसे भारतीय भी शामिल थे। स्वतंत्रता संग्राम में इनमें से लगभग 26,000 सैनिकों के मारे जाने की अधिकारिक पुष्टि की गई थी।
- भारत से अंग्रेज़ों की वापसी पर अंतिम निर्णय करने वाले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली पद छोड़ने के बाद वर्ष 1956 में भारत आए थे, तब पश्चिम बंगाल के तत्कालीन गवर्नर जस्टिस पी.बी. चक्रवर्ती द्वारा यह पूछे जाने पर कि भारत छोड़ो आंदोलन के नरम पड़ जाने पर भी अंग्रेज़ों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत भारत क्यों छोड़ा? इसके जवाब में एटली ने कहा कि, इसका कारण बोस और उनकी आज़ाद हिंद फौज थी। इसके कारण ब्रिटिश भारतीय सशस्त्र बल विद्रोह करने लगे थे, अतः अंग्रेजों का लंबे समय तक भारत में बने रहना मुमकिन नहीं था।
सुभाषचंद्र बोस बनाम गांधी: मतभेदों पर राष्ट्रहित को वरीयता
- बोस गांधी को पहली बार बॉम्बे के मणि भवन में आयोजित एक बैठक मिले थे। शुरुआती स्तर पर ही गांधी और बोस के दृष्टिकोण में पर्याप्त अंतर था। इस बैठक में गांधी ने भारत के लिये एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्ति का लक्ष्य रखा और इसके लिये उन्होंने 20 लाख चरखों के माध्यम से कार्य करने की बात कही। युवा और उत्साही बोस चरखे के माध्यम से स्वराज प्राप्ति के विचार को लेकर आश्वस्त नहीं थे।
- बोस शुरू से ही पूर्ण और शीघ्र स्वराज प्राप्ति के लक्ष्य को लेकर चल रहे थे और वे देश में किसी भी अन्य सत्ता का हस्तक्षेप नहीं चाहते थे। इसी समय बोस देशबंधु चित्तरंजन दास से मिले, जो बाद में इनके राजनीतिक गुरु बने।
- बोस ने लाहौर अधिवेशन में पारित होने वाले नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा प्रस्ताव पर अपनी असहमति व्यक्त की, बोस के अनुसार इनके स्थान पर सामानांतर सरकार की स्थापना के लिये प्रस्ताव पारित होना चाहिये।
- यद्यपि बोस ने नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा के प्रस्ताव पर अपनी असहमति व्यक्त की थी परंतु जब नमक सत्याग्रह शुरू हुआ तो उन्होंने इसकी तारीफ की और कहा कि ‘हमें अपनी पूरी शक्ति इसमें लगा देनी चाहिये’। यह गांधीजी और पार्टी के अनुशासन के प्रति इनके सम्मान को दर्शाता है।
- कुछ वर्षों के बाद, बोस और विट्ठलभाई पटेल ने ज़िनेवा से एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि, “हमारे देश ने अहिंसा का अनुसरण करके बहुत प्रगति की है, परंतु अब यह कारगर नहीं है, अतः नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता है”। यह बयान गांधीजी के तरीकों से असहमति को दर्शाता है।
- गांधीजी के सुझाव पर बोस को विट्ठलनगर अधिवेशन (हरिपुरा) में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। इसमें उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये कांग्रेस द्वारा अपनाए जाने वाले तरीकों को बदलने की कोशिश की जिसे कांग्रेस कार्यसमिति ने ख़ारिज कर दिया।
- अगले वर्ष, बोस ने पट्टाभि सीतारमैय्या को हराकर पुनः चुनाव जीता, पट्टाभि की हार को गांधी ने अपनी हार बताया। अतः बोस ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया।
- मौलाना आज़ाद ने अपनी पुस्तक ' इंडिया विंस फ़्रीडम' में यह उल्लेख किया है कि गांधी बोस के संगठनात्मक क्षमता और जेल से बचकर निकलने की कला से बहुत प्रभावित थे। साथ ही, गांधी बोस के साहस और विनम्रता की भी प्रशंसा करते थे।
- बोस और गांधी एक दूसरे से अलग होते हुए भी एक दूसरे के विरुद्ध कभी नहीं गए। जहाँ बोस ने गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया तो वहीं गांधी बोस को ‘सबसे बड़ा देशभक्त’ मानते थे।
- बोस और गांधी में अनेक वैचारिक मतभेद थे परंतु दोनों राजनीतिक स्तर पर परिपक्व थे, दोनों के देशहित में एकसमान लक्ष्य थे और दोनों एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते थे, जिस कारण दोनों के बीच कभी भी कटुता नहीं पनप सकी।
सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज (INA) : एक सांस्कृतिक विरासत के रूप में
- 125वीं जंयती के अवसर पर स्वतंत्रता प्राप्ति में सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज के योगदान को दर्शाने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोलकाता में सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज के सेनानियों को समर्पित एक राष्ट्रीय संग्रहालय का उद्घाटन करने जा रहे हैं।
- नेताजी सुभाष बोस-आईएनए ट्रस्ट, जो कि भावी पीढ़ियों के बीच सुभाषचंद्र बोस के संदेश, उनकी प्रतिबद्धता और साहस का प्रसार करने हेतु समर्पित एक राष्ट्रीय संगठन है, सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जंयती धूमधाम से मना रहा है।
- इसके साथ ही, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज को समर्पित स्मारक निर्माण की मांग उठ रही है।
- विदित है कि दिल्ली में सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज को समर्पित एक भी स्मारक नहीं है, जहाँ भारत और अन्य देशों के आगंतुक इनके प्रति अपने सम्मान को व्यक्त कर सकें।