(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)
संदर्भ
टीकाकरण के क्षेत्र में भारत की सफलता न केवल देश के लिये बल्कि दुनिया के लिये भी एक उपलब्धि है। भारत ने नवजात शिशुओं, बच्चों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित करके सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में लगातार योगदान दिया है।
टीकाकरण की भूमिका
स्वास्थ्य लाभ
- टीकाकरण सबसे अधिक लागत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों में से एक है, जो विशेषकर बच्चों को बीमारियों से बचाता है।
- दो सदी पूर्व चेचक के टीके की खोज के बाद से पोलियो, खसरा, टिटनेस, काली खाँसी, इन्फ्लूएंजा और कोविड-19 के टीकों ने बीमारियों के बोझ को प्रभावी रूप से कम किया है।
- मेडिकल जर्नल द लैंसेट के एक अध्ययन के अनुसार टीकों ने विगत 20 वर्षों में केवल निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में 3.7 करोड़ लोगों को मौत के प्रति सुरक्षा प्रदान की है।
आर्थिक और सामाजिक लाभ
- हेल्थ अफेयर्स के एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2021-30 तक एल.एम.आई.सी. में 10 रोगज़नकों के खिलाफ टीकाकरण में प्रत्येक रुपए के निवेश पर 52 रुपए प्रतिफल होगा।
- टीकाकरण बीमारियों से बचाव एवं जीवन की रक्षा के साथ ही आर्थिक और सामाजिक लाभ के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।
भारत में टीकाकरण कार्यक्रम
विस्तारित टीकाकरण कार्यक्रम
- वर्ष 1977 में चेचक मुक्त घोषित होने के बाद भारत ने वर्ष 1978 में विस्तारित टीकाकरण कार्यक्रम (EPI) शुरू किया।
- इसके तहत बी.सी.जी. (BCG), डी.पी.टी. (DPT) और ओ.पी.वी. (OPV) टीकों की शुरुआत की।
सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम
- वर्ष 1985 से सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunization Programme : UIP) के तहत भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर 11 बीमारियों और उप-राष्ट्रीय स्तर पर एक बीमारी के खिलाफ टीके उपलब्ध कराए है।
- ये प्रतिवर्ष लगभग 2.7 करोड़ नवजात शिशुओं और 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं को लक्षित करते हैं।
- भारत वर्ष 2016 में ‘सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम’ के तहत रोटावायरस वैक्सीन लॉन्च करने वाला एशिया का पहला देश बना। वर्ष 2017 में बच्चों में रोटावायरल डायरिया और न्यूमोकोकल निमोनिया को रोकने के लिये न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccine : PCV) में ‘मेड इन इंडिया’ टीकों का उपयोग किया गया।
- भारत में उत्पादित पी.सी.वी. की कीमत लगभग 200 रुपए प्रति खुराक है, जिससे यह भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों के लिये सस्ती व सुलभ हो जाती है।
यू.आई.पी. के बाद की स्थिति
- वर्ष 1985 में यू.आई.पी. के बाद से भारत के टीकाकरण कार्यक्रम की पहुँच और इसके तहत उपलब्ध कराए गए टीकों की उपलब्धता में लगातार सुधार हुआ है।
- सरकार संचालित उन्मूलन योजना और एक बहुआयामी संचार दृष्टिकोण के माध्यम से भारत वर्ष 2014 में पोलियो मुक्त घोषित हुआ।
- वर्ष 2014 के बाद से मिशन इंद्रधनुष जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से टीकाकरण गतिविधियों को और तेज किया गया है ताकि पूर्ण टीकाकरण कवरेज को 90% तक बढ़ाया जा सके।
- भारत ने ‘खसरा-रूबेला (Measles-Rubella) टीकाकरण अभियान’ भी शुरू किया और तीन वर्षों में 3 करोड़ से अधिक बच्चों का टीकाकरण किया गया।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आँकड़े
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़े भारत की सफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। नवीनतम 2019-21 सर्वेक्षण के अनुसार, ‘पूर्ण टीकाकरण’ वाले बच्चों का अनुपात 76% तक पहुँचने के साथ-साथ विगत दो दशकों में बचपन में टीकाकरण की दर में लगातार सुधार हुआ है।
- जैसा कि भारत और दुनिया ने 95% के निरंतर टीकाकरण कवरेज को प्राप्त करके खसरे को खत्म करने के लिये खुद को स्थापित किया है, भारत से डेटा आशाजनक लग रहा है।
- खसरा टीकाकरण की दर वर्ष 2006 में 59% से बढ़कर वर्ष 2021 में 88% हो गई है। बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियानों ने बच्चों में खसरे से होने वाली दसियों हजार मौतों को रोका है।
कोविड-19 महामारी के दौरान टीकाकरण
- कोविड-19 महामारी के बावजूद वर्ष 2021 में देश के सभी राज्यों में वैक्सीन का विस्तार किया गया। इसके अलावा, नियमित टीकाकरण अभियान में पेंटावैलेंट वैक्सीन की शुरूआत पाँच बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करती है। इसके लिये अतिरिक्त बुनियादी ढाँचागत लागत की आवश्यकता नहीं होती है।
- लॉकडाउन के कारण नियमित टीकाकरण सेवाएँ बाधित हुईं। हालाँकि, टीकों के विकास में अभूतपूर्व वैश्विक सहयोग के समानांतर उन लोगों में 'इंफोडेमिक' वैक्सीन शंका भी देखी गई, जो पहले टीकों पर भरोसा करते थे।
इंफोडेमिक
- किसी बीमारी के प्रकोप के दौरान सोशल मीडिया द्वारा डिजिटल और भौतिक वातावरण में प्राप्त होने वाली झूठी या भ्रामक जानकारी को ‘इंफोडेमिक’ कहते हैं।
- इसके कारण लोगों में बड़ी मात्रा में सरकारों और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के प्रति संशय व अविश्वास पैदा हो जाता है।
- यह भ्रम और जोखिम लेने की प्रवृत्ति का कारण बनती है एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति अविश्वास के कारण स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकती है।
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- इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (eVIN) सिस्टम जैसी तकनीक के उपयोग ने वैक्सीन की उपलब्धता और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की है।
- ई-विन ने राष्ट्रीय स्तर से लेकर उप-जिला स्तर तक वैक्सीन भंडारण के सभी चरणों पर संपूर्ण वैक्सीन स्टॉक प्रबंधन और तापमान ट्रैकिंग को डिजिटाइज़ (Digitizes) किया है।
- भारत का कोविड-19 टीकाकरण कवरेज 213 करोड़ के आँकड़े को पार कर गया है।
टीकाकरण अभियान की सफलता के कारण
बुनियादी ढाँचे का निर्माण
- आजादी के बाद से भारत ने अनुसंधान एवं विकास (R&D), विनिर्माण क्षमता और जैव चिकित्सा उद्यम (Biomedical Enterprise) का ढाँचा तैयार किया है। सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) ने इसके विकास को गति देने में मदद की है।
- भारत ने कोल्ड चेन तंत्र स्थापित करके और इसमें संलग्न श्रमिकों के सामुदायिक स्वास्थ्य संवर्ग को विकसित तथा प्रशिक्षित करके वितरण बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया है।
- उदाहरणस्वरुप स्वदेशी रूप से उत्पादित रोटावायरस और पी.सी.वी. टीके तथा कोविड-19 टीकों का उत्पादन इस क्षेत्र में किये गए निवेश प्रतिफल के उदाहरण हैं।
मांग एवं जागरूकता में वृद्धि
- सामाजिक और व्यावहारिक संचार अभियानों के माध्यम से टीके की मांग पक्ष में सुधार हुआ है। साथ ही, टीकाकरण अभियानों ने सभी वर्गों में टीकों के प्रति जागरूकता फैलाने और टीकाकरण में विश्वास पैदा करने में सहायता की है।
- इसमें संचार के विभिन्न उपलब्ध प्लेटफार्मों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता) की भूमिका सराहनीय रही है।
- भारत दुनिया में टीकों का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण टीके उपलब्ध कराता है और अन्य एल.एम.आई.सी. के प्रतिरक्षण में मदद करता है। एक अनुमान के अनुसार, दुनिया के लगभग दो-तिहाई बच्चे भारत में निर्मित टीके का उपयोग करते हैं।
निष्कर्ष
- भारत ने अपनी अधिकांश आबादी को कवर करने, अंतिम छोर तक डिलीवरी सुनिश्चित करने, सार्वजनिक स्तर पर सतत व बड़े पैमाने पर संचालन को वित्तपोषित करने और लोगों के बीच विश्वास पैदा करने एवं उसे बनाए रखने जैसी चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है।
- टीकाकरण अभियान भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सफलता की कहानियों में से एक है। नीति निर्माता और सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सक (Practitioners) भारत के टीकाकरण कार्यक्रमों से सीख सकते हैं।
- क्षमता निर्माण, अनुसंधान और उत्पादन में निवेश, सामुदायिक व सामाजिक जुड़ाव, मास मीडिया एवं सोशल मीडिया के प्रयोग ने भारत को अपने वर्तमान टीकाकरण कवरेज तक पहुंचने में मदद की है।