(प्रारम्भिक परीक्षा: अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, अधिकारों सम्बन्धी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: सामाजिक न्याय और महिलाओं सम्बंधी मुद्दे)
पृष्ठभूमि
- हाल ही में, सूडान की सरकार ने वहाँ व्यापक रूप से प्रचलित ‘महिला जननांग विकृति’ (Female Genital Mutilation- FGM) की प्रथा को अपराध घोषित करने सम्बंधी एक ऐतिहासिक कानूनी मसौदे को स्वीकृति प्रदान की है।
- भारत में इस प्रथा को महिलओं का ख़तना या सुन्नत (Circumcision) कहा जाता है। भारत में यह प्रथा ‘दाऊदी बोहरा’ समुदाय में प्रचलित है। भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस प्रथा को निजता का उल्लंघन माना है।
महिला जननांग विकृति (एफ.जी.एम.) प्रथा
- महिला जननांगों को विकृत या ख़तना करने सम्बंधी प्रथा सूडान और अन्य अफ्रीकी देशों सहित एशिया और मध्य-पूर्व के साथ गहरे रूप से जुडी हुई है।
- एफ.जी.एम. में गैर-चिकित्सकीय कारणों से महिला जननांगों (Female Genitalia) को आंशिक या पूर्ण रूप से हटाना शामिल है।
- इसे पारम्परिक रूप से महिलाओं की यौन इच्छा पर अंकुश लगाने की रूढ़िवादी प्रथा के रूप में देखा जाता है। प्रचलित प्रथा के अनुसार, इसे वैवाहिक जीवन से पूर्व महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
वर्तमान वस्तुस्थिति
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, कई अफ्रीकी देशों में लगभग 20 करोड़ से अधिक महिलाएँ इस क्रूर सामाजिक रूढ़ि से प्रभावित हैं। यह प्रथा सूडान, मिस्र, नाइजीरिया, जिबूती व सेनेगल सहित एशिया के कुछ देशों में भी प्रचलित है।
- वर्ष 2014 की संयुक्त राष्ट्र बाल एजेंसी की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि 15-49 आयु वर्ग की लगभग 87% सूडानी महिलाएँ और लड़कियाँ इस प्रथा की शिकार हो चुकी हैं। इनमें से अधिकांश महिलाओं को ‘इन्फीबुलेशंस’ (Infibulations) नामक अत्यधिक पीड़ादायक प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। इस प्रक्रिया में योनि मुख को संकीर्ण करने हेतु लेबिया (Labia) को हटाना और उसको पुन: व्यवस्थित करना शामिल है।
- यह प्रथा न केवल प्रत्येक बालिका के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भी है। इससे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य गम्भीर रूप से प्रभावित होता है। हालाँकि, इसकी क्षतिपूर्ति व नकारात्मक प्रभाव को कम करने हेतु सर्ज़री सहित कई अन्य प्रकार के अनुसंधान जारी हैं।
- हालाँकि क्षतिपूर्ति और नकारात्मक प्रभाव को कम करने हेतु की जाने वाली सर्ज़री के प्रभावों को लेकर डब्ल्यू.एच.ओ. असहमत है।
सूडान सरकार द्वारा किये गए बदलाव
- सरकार द्वारा आपराधिक संहिता में व्यापक संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। यह संशोधन उमर-अल-बशीर के लगभग 30 वर्षों के तानाशाही शासन के दौरान महिलाओं को निशाना बनाने वाले दमनकारी सामाजिक कानूनों और अपमानजनक दंडों को समाप्त करने की एक कोशिश है।
- प्रस्तावित संशोधनों के अंतर्गत, किसी भी व्यक्ति को एफ.जी.एम. प्रक्रिया का अभ्यास करने का दोषी पाए जाने की स्थिति में 3 वर्ष तक के कारावास की सज़ा हो सकती है।
- इसके साथ-साथ कुछ और विधियों में भी संशोधन किया गया है। अन्य संशोधनों में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के लिये मृत्युदंड को भी समाप्त कर दिया गया है। साथ ही, यह संशोधन गर्भवती महिलाओं को छोटे व गौण अपराधों के मामलें में कारावास के दंड से भी रोकेगा।
- हालाँकि, इस कानून को अभी भी कैबिनेट और सम्प्रभु परिषद की संयुक्त बैठक द्वारा मंज़ूरी मिलने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि सूडान में वर्ष 2019 में लम्बे समय तक राष्ट्रपति रहे उमर-अल-बशीर के तख्तापलट के बाद सम्प्रभु परिषद ने सत्ता सम्भाली थी।
- इस कानून को देश की अंतरिम सरकार द्वारा प्रस्तावित किया गया है। इस अंतरिम सरकार में चार महिला मंत्री भी शामिल हैं।
चुनौतियाँ
- महिला अधिकारों के लिये कार्य करने वाले समूहों ने चेताया है कि यह परम्परा रूढ़िवादी समाज में अत्यधिक गहराई से जकड़ी हुई है। उनका कहना है की ऐसी स्थिति में केवल कानूनी उपाय ही इस प्रथा को रोकने के लिये पर्याप्त नहीं हैं क्योंकि इस प्रथा की सांस्कृतिक जड़ें काफी गहरी हैं। साथ ही, महिला जननांग विकृति उन देशों में अभी भी प्रचलित है जिन्होंने इस प्रथा को अपराध घोषित कर दिया है।
- सूडान अभी भी तानाशाही से लोकतांत्रिक व्यवस्था बनने के संक्रमणकाल में है। अतः यह स्पष्ट नहीं है कि सम्प्रभु परिषद में बहुमत रखने वाला देश का सैन्य नेतृत्व इस कानून को सहमती देगा। फिर भी, इस प्रकार का प्रस्ताव स्वयं में महत्त्वपूर्ण है।
- कानून में हुए संशोधनों को मंज़ूर किये जाने की स्थिति में अल-बशीर का समर्थन करने वाले शक्तिशाली इस्लामिक समूह इसके विरुद्ध चिंगारी भड़का सकते हैं। इसलिये, इस कानून को लागू करने के लिये विभिन्न समुदायों के साथ समन्वय करने के अतिरिक्त जागरूकता बढ़ाना भी आवश्यक है।
- इसके अलावा, हाल के महीनों में पेश किये गए लैंगिक सुधारों को मज़बूत करने के लिये देश के प्रगतिशील तत्त्वों और लोकतांत्रिक संक्रमण को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण होगा।