(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, संवैधानिक या वैधानिक निकाय से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अधययन प्रश्नपत्र 2 - सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में ‘सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2021’ के मसौदे को सार्वजनिक टिप्पणियों के लिये जारी किया है।
संशोधित अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
◊ प्रमाणन में संशोधन
- नवीनतम विधेयक का मसौदा वर्ष 1952 के अधिनियम में एक प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव करता है, जो धारा 5B(1) (फिल्मों को प्रमाणित करने में मार्गदर्शन के सिद्धांत) के उल्लंघन के कारण केंद्र सरकार को ‘पुनरीक्षण शक्तियाँ’ प्रदान करेगा।
- मसौदा विधेयक में धारा 6 की उप-धारा (1) में एक परंतुक जोड़ने का भी प्रस्ताव है कि सार्वजनिक प्रदर्शन के लिये प्रमाणित फिल्म के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा कोई संदर्भ प्राप्त होने पर, अधिनियम की धारा 5B (1) का उल्लंघन करने पर, केंद्र सरकार, यदि ऐसा करना आवश्यक समझती है, तो बोर्ड के अध्यक्ष को फिल्म की पुनः जाँच करने का निर्देश दे सकती है
- प्रस्तावित संशोधन का अर्थ है कि केंद्र सरकार, यदि आवश्यक हो, तो बोर्ड के निर्णय को उलटने की शक्ति रखती है।
◊ आयु-आधारित प्रमाणीकरण
- मसौदे में आयु-आधारित वर्गीकरण और वर्गीकरण शुरू करने का प्रस्ताव है।
- वर्तमान में, फिल्मों को चार श्रेणियों में प्रमाणित किया जाता है –
- अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शन के लिये 'U'; 'U/A' - इसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिये माता-पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
- एडल्ट फिल्मों के लिये 'A' - श्रेणी तथा व्यक्तियों के किसी विशेष वर्ग के लिये प्रतिबंधित 'S' श्रेणी।
- नए मसौदे में श्रेणियों को आगे के आयु-आधारित समूहों में विभाजित करने का प्रस्ताव है: U/A 7+, U/A 13+ और U/A 16+।
- फिल्मों के लिये यह प्रस्तावित आयु वर्गीकरण स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के लिये नए आईटी नियमों को प्रतिध्वनित करता है।
◊ पायरेसी के विरुद्ध प्रावधान
- वर्तमान में, सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के अंतर्गत फिल्म पायरेसी को रोकने के लिये कोई ठोस कानून मौजूद नहीं हैं।
- विधेयक के नवीन मसौदे में धारा 6AA जोड़ने का प्रस्ताव है, जो अनधिकृत रिकॉर्डिंग को प्रतिबंधित करेगा।
- प्रस्तावित खंड में कहा गया है कि किसी भी कानून के लागू होने के बावजूद, किसी भी व्यक्ति को, लेखक के लिखित प्राधिकरण के बिना, किसी भी ऑडियो-विज़ुअल रिकॉर्डिंग डिवाइस को जानबूझकर बनाने या प्रसारित करने या बनाने का प्रयास करने की या किसी फिल्म या उसके हिस्से की प्रतिलिपि बनाने या प्रसारित करने के लिये प्रेषित या प्रेरित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- यदि कोई ऐसा कृत्य करते पकड़ा जाता है, तो वह व्यक्ति एक निश्चित अवधि के लिये कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि 3 महीने से कम नहीं होगी; लेकिन इस अवधि को 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही, वह आर्थिक ज़ुर्माने से भी दंडनीय होगा, जो 3 लाख रुपए से कम नहीं होगा। लेकिन, आर्थिक दंड ऑडिटेड सकल उत्पादन लागत का 5% या दोनों के साथ हो सकता है।
◊ शाश्वत प्रमाण पत्र
- वर्तमान अधिनियम के अंतर्गत सी.बी.एफ.सी. द्वारा जारी किये जाने वाले प्रमाण पत्र की वैद्यता केवल 10 वर्षों के लिये है। जबकि, नवीनतम विधेयक फिल्मों को आजीवन प्रमाणित करने का प्रस्ताव करता है।
- वर्ष 2013 की ‘न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल समिति’ और वर्ष 2016 की ‘श्याम बेनेगल समिति’ की सिफारिशों पर भी, मसौदा तैयार करते समय विचार किया गया था।
- नवीनतम विधेयक का मसौदा वर्ष 2000 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध भी जाता है। जिसमें न्यायालय द्वारा सी.बी.एफ.सी. के आदेशों पर सरकार की पुनरीक्षण शक्तियों को कम करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को बरक़रार रखा गया।
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC)
- सी.बी.एफ.सी. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है, जो ‘सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952’ के तहत फिल्मों के ‘सार्वजिनक प्रदर्शन’ को नियंत्रित करता है।
- बोर्ड के सभी सदस्यों तथा अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार के द्वारा की जाती है तथा इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है।
सेंसरशिप से संबंधित प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अनुसार राज्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित युक्तियुक्त निर्बंधनों के साथ प्रतिबंध लगा सकती है, जिसमें शामिल हैं-
- भारत की एकता एवं अखंडता
- मानहानि
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- सार्वजनिक व्यवस्था
- शिष्टाचार या सदाचार
- न्यायालय की अवमानना