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सुप्रीम कोर्ट द्वारा रैखिक परियोजनाओं के लिए अनियमित मिट्टी निष्कर्षण पर रोक

प्रारंभिक परीक्षा- समसामयिकी, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 3 (संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण)

संदर्भ:

  • हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2020 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना को रद्द कर दिया है 
  • इस अधिसूचना में सड़कों, पाइपलाइनों आदि जैसी रैखिक परियोजनाओं (Linear Projects) के लिए मिट्टी निकालने के लिए पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया था।

supreme-court

मुख्य बिंदु:

  • मामला पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत मार्च 2020 की अधिसूचना की वैधता से संबंधित था।
  • मामले की सुनवाई जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने की।

अधिसूचना में दी गई छूट:

  • सितंबर 2006 में पर्यावरण मंत्रालय ने ‘पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986’ के तहत उन गतिविधियों पर एक अधिसूचना जारी की थी, जिनके लिए पर्यावरणीय मंजूरी की पूर्व आवश्यकता होगी। 
  • जनवरी 2016 में जारी दूसरी अधिसूचना के तहत कुछ श्रेणियों की परियोजनाओं को इस आवश्यकता से छूट दे दी गई।
  • मार्च 2020 की तीसरी अधिसूचना में छूट वाली गतिविधियों की सूची में इन विषयों को भी जोड़ा गया;
    • सड़कों, पाइपलाइनों आदि जैसी रैखिक परियोजनाओं के लिए सामान्य मिट्टी की निकासी या सोर्सिंग या अधिग्रहण।
  • इसके लिए केंद्र सरकार ने NGT के समक्ष तर्क दिया कि आम जनता की सहायता के लिए छूट आवश्यक है;
  • इससे गुजरात के कुम्हार, किसानवंजारा, ओड, ग्राम पंचायत और राज्य के सभी गैर-खनन गतिविधियों को मदद मिलेगी। 
  • सरकार ने यह भी कहा कि छूट देना एक नीतिगत मामला है। इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
  • वर्ष 2020 की अधिसूचना का सामान्य उद्देश्य था;
    • पर्यावरणीय सुरक्षा को मार्च 2020 में किए गए खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधनों के अनुरूप लाना।
    • जिससे नए पट्टेदारों को वैधानिक मंजूरी और जारी किए गए लाइसेंस के साथ दो साल तक खनन जारी रखने की अनुमति मिल सके। 

चुनौती का आधार:

  • इस छूट को NGT के समक्ष इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि अंधाधुंध मिट्टी निकालने की अनुमति देना मनमाना और संविधान के अनु. 14 का उल्लंघन है। 
  • याचिकाकर्ता का कहना था कि इस छूट ने दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य (2012) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित पट्टों में पर्यावरण मंजूरी की पूर्व आवश्यकता का उल्लंघन किया है।
  • याचिका में यह भी कहा गया कि पर्यावरण मंत्रालय ने कोविड-19  लॉकडाउन के दौरान अपनी शक्तियों का गलत प्रयोग किया;
    • उसने सार्वजनिक हित का सहारा लेते हुए पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकताओं को दूर करने के लिए वर्ष 2020 की अधिसूचना जारी करने से पहले सार्वजनिक आपत्तियां आमंत्रित करने की कानूनी प्रक्रिया को नहीं अपनाया
    • उसने निजी खनिकों और ठेकेदारों के हित को आगे बढ़ाया।
  • अक्टूबर 2020 में NGT ने कहा कि छूट को संतुलित बनाना चाहिए और व्यापक छूट के बजाय इसे उत्खनन तथा मात्रा की प्रक्रिया जैसे उचित सुरक्षा उपायों द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए।
    • NGT ने केंद्र सरकार से तीन महीने के भीतर अधिसूचना पर दोबारा विचार करने को कहा।

सरकार की कार्रवाई:

  • NGT के निर्देश पर केंद्र सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
  • इसके बाद याचिकाकर्ता  ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। 
  • 10 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हुई किंतु उसने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
  • 21 अगस्त 2023 को पर्यावरण मंत्रालय ने एक कार्यालय ज्ञापन जारी कर छूट के लिए प्रवर्तन तंत्र का गठन किया
  • 30 अगस्त, 2023 को मंत्रालय ने नई अधिसूचना जारी की; 
  • नई अधिसूचना  के अनुसार, वर्ष 2020 की अधिसूचना में दी गई छूट समय-समय पर इस संबंध में जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं और पर्यावरण सुरक्षा उपायों के अनुपालन के अधीन होगी।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना है। 
  • अधिसूचना जारी करने से पहले आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए सार्वजनिक सूचना की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया। 
    • लागू नियमों के अनुसार ऐसा केवल जनहित में ही किया जा सकता है। 
    •  सरकार पूर्व अधिसूचना जारी न करने के पीछे सार्वजनिक हित को दिखाने वाले कारणों को बताने में विफल रही।
    • मंत्रालय द्वारा यह निर्णय बिना विचार किए गए लिया गया।
  • छूट पूरी तरह अनिर्देशित मनमानी थी और यह अनु. 14 का उल्लंघन था; क्योंकि-
    • वर्ष 2020 की अधिसूचना में 'रैखिक परियोजनाओं' को परिभाषित नहीं किया गया था। 
    • इसमें मिट्टी की निष्कर्षण की मात्रा और क्षेत्र को भी निर्दिष्ट नहीं किया गया था।
    • कोई भी प्राधिकरण नहीं है जो यह तय करे कि कोई परियोजना रैखिक है या नहीं।
  • यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि सामान्य मिट्टी की केवल उतनी ही मात्रा के निष्कर्षण की छूट दी गई है, जितनी रैखिक परियोजनाओं को लागू करने के लिए आवश्यक है। 
    • कोर्ट ने कहा कि किसी भी सुरक्षा उपाय को शामिल किए बिना दी गई छूट पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम के उद्देश्य को विफल करता है।
  • अगस्त 2023 की अधिसूचना में मंत्रालय निम्नलिखित कार्यों में विफल रहा;
    • रैखिक परियोजनाओं की अवधारणा को विस्तार देने में। 
    • पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों या उसके प्रावधानों के लिए जिम्मेदार प्राधिकरण को निर्दिष्ट करने में। 
    • निष्कर्षण की मात्रा पर प्रतिबंध लगाने में

पर्यावरणीय मंजूरी के पूर्व के मामले:

  • पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम के तहत इस प्रकार की छूट का मामला अतीत में भी न्यायिक जांच के दायरे में आ चुका है।
    • जनवरी 2018 में NGT ने मंत्रालय की वर्ष 2016 की अधिसूचना को रद्द कर दिया;
      • इस अधिसूचना में निर्मित क्षेत्रों (built-up areas) में 20,000 वर्ग मीटर से अधिक के भवन और निर्माण गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की पूर्व आवश्यकता को रद्द कर दिया गया था। 
      • पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार करने करने के लिए छूट को उचित ठहराना स्पष्ट नहीं था
  • NGT ने जुलाई 2015 में वर्ष 2006 की अधिसूचना के तहत परियोजनाओं को पूर्व-पोस्ट फैक्टो पर्यावरणीय मंजूरी देने के लिए दिसंबर 2012 और जून 2013 में मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दो कार्यालय ज्ञापनों को रद्द कर दिया
    • NGT के अनुसार, पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम पूर्व अनुमोदन को अनिवार्य करता है।
  • 6 मार्च 2024 को केरल उच्च न्यायालय ने 2014 की अधिसूचना को रद्द कर दिया
    • इसमें 20,000 वर्ग मीटर से अधिक के निर्मित क्षेत्रों वाले शैक्षणिक संस्थानों और औद्योगिक शेडों को पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने से छूट दी गई थी।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (Environment Protection Act, 1986):

  • इसे संसद द्वारा 23 मई 1986 को पारित किया गया था। 
  • यह 19 नवंबर 1986 को लागू हुआ। 
  • इसे लागू करने का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को भारत में विधि बनाकर लागू करना है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT): 

  • इसका गठन 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत किया गया।
  • इसके साथ भारत विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण गठित करने वाला दुनिया का तीसरा  देश बन गया। 
  • इससे पूर्व केवल ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में ही ऐसे किसी निकाय का गठन किया गया था।
  • इसके गठन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संबंधी मुद्दों का तेज़ी से निपटारा करना है।
  • NGT का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न:

प्रश्न: राष्ट्रीय हरित अधिकरण के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. इसका गठन वर्ष 2015 में किया गया था।
  2. भारतविशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण गठित करने वाला दुनिया का तीसरा  देश है।
  3. इसके गठन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संबंधी मुद्दों का तेज़ी से निपटारा करना है।

नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

 (c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर- (b)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न:

प्रश्न: रैखिक परियोजनाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2020 में जारी अधिसूचना क्या थी? हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उस पर क्या निर्णय दिया? स्पष्ट कीजिए।

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