संदर्भ
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कानून को वैध और संवैधानिक घोषित किये जाने संबंधी वर्ष 2018 के अपने निर्णय की समीक्षा करने से इंकार कर दिया है और समीक्षा के लिये जारी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- आधार कानून के धन विधेयक के रूप में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रमाणित किये जाने तथा संसद में इसके पारित होने के फैसले (पुट्टस्वामी आधार मामला) के विरुद्ध राज्यसभा सांसद जयराम रमेश समेत सात लोगोंद्वारा याचिका दायर की गयी थी।
- इस याचिका को ख़ारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय को केवल ‘कुछ परिस्थितियों’ के तहत ही चुनौती दी जा सकती है।
निर्णय की समीक्षा संबंधी सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति
- संविधान के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया कोई भी निर्णय अंतिम निर्णय माना जाता है।
- हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 137 में यह प्रावधान है कि अनुच्छेद 145 के तहत बनाए गए किसी भी कानून और नियम के प्रावधानों के अधीन सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी निर्णय (या दिये गए आदेश) की समीक्षा करने की शक्ति प्राप्त है।
- इस प्रकार, समीक्षा याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के बाध्यकारी निर्णय की समीक्षा की जा सकती है और सर्वोच्च न्यायालय अपने पूर्व के किसी निर्णय या आदेश को ‘स्पष्टता के अभाव’ के आधार पर समीक्षा कर सुधार सकता है।
धन विधेयक
- धन विधेयक (110) में कराधान, सरकार द्वारा धन उधार लेने, भारत के समेकित कोष में धन की प्राप्ति व खर्च से संबंधित प्रावधान शामिल होते हैं।
- सभी धन विधेयक वित्तीय विधेयक कहलाते हैं, जबकि सभी वित्तीय विधेयक धन विधेयक नहीं होते।
- वह वित्त विधेयक जिसमें केवल कर प्रस्तावों से संबंधित प्रावधान शामिल होते हैं, धन विधेयक कहलाता है, जबकि वह विधेयक जिसमें कराधान या व्यय से संबंधित प्रावधानों के साथ-साथ अन्य मामले भी शामिल होते हैं, वित्तीय विधेयक कहलाते हैं।