प्रारंभिक परीक्षा – सर्वोच्च न्यायालय, अध्यादेश,राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 2 - संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ। |
दिल्ली में 'सेवाओं' को लेकर नया अध्यादेश
अब तक क्या हुआ?
- भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले संवैधानिक पीठ ने 11 मई को कहा था कि दिल्ली सरकार कानून बना सकती है और राष्ट्रीय राजधानी में सिविल सेवाओं का प्रशासन कर सकती है।
- अदालत ने राजधानी में नौकरशाहों पर उपराज्यपाल (एलजी) की भूमिका को तीन विशिष्ट क्षेत्रों - सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि तक सीमित कर दिया।
- इस फैसले का उद्देश्य राजधानी में केंद्र के राष्ट्रीय हितों और एक निर्वाचित दिल्ली सरकार के विभागों में प्रतिनियुक्त "पेशेवर" सिविल सेवा अधिकारियों के माध्यम से सार्थक रूप से कानून बनाने और प्रशासन करने के अधिकार के बीच संतुलन बनाना था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मंत्रिपरिषद के दिन-प्रतिदिन के फैसलों को सुचारू रूप से पूरा करने के लिए एक "तटस्थ सिविल सेवा" की परिकल्पना की थी।
- 19 मई को केंद्र सरकार द्वारा इस फैसले के विरोध में एक अध्यादेश “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023” लाया गया।
अध्यादेश क्या कहता है?
- सरकार ने अध्यादेश के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से अदालत के फैसले के पूर्व की स्थिति प्राप्त की है, जिसका निर्णय 21 मई, 2015 को गृह मंत्रालय की अधिसूचना के माध्यम से लिया था।
- इस अधिसूचना ने, जो पिछले आठ वर्षों से आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है, उपराज्यपाल (एलजी) को “सेवाओं” पर अधिकार पर अधिकार प्रदान करता है।
- इसके तहत उपराज्यपाल को अपने "विवेक" पर ही मुख्यमंत्री से परामर्श करने की आवश्यकता थी।
- इस अधिसूचना द्वारा दिल्ली सरकार की शक्तियों के दायरे से राज्य सूची की प्रविष्टि 41 (सेवाओं) को बाहर कर दिया गया था।
- अध्यादेश अध्यक्ष के रूप में मुख्यमंत्री के साथ एक "स्थायी" राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाता है, और क्रमशः सदस्य और सदस्य सचिव के रूप में मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव का प्रावधान करता है।
- एनसीसीएसए सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर दिल्ली सरकार के सभी विभागों में कार्यरत सिविल सेवा अधिकारियों पर अधिकार का प्रयोग करता है।
- यह उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से दिल्ली सरकार के विभागों में प्रतिनियुक्त सिविल सेवा अधिकारियों के स्थानांतरण, पोस्टिंग, अभियोजन स्वीकृति, अनुशासनात्मक कार्यवाही, सतर्कता मुद्दों आदि का निर्णय करेगी।
- मत भिन्नता के मामले में उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा।
- इससे संभावनाएं उत्पन्न होती हैं जिसमें एनसीसीएसए में सिविल सेवक संभवतः निर्वाचित मुख्यमंत्री को वीटो कर सकते हैं।
- अध्यादेश के अनुसार मुख्य सचिव "जीएनसीटीडी के अधिकारियों की इच्छा" (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) का प्रतिनिधित्व करेंगे।
- अध्यादेश राष्ट्रपति के स्वयं के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार, 1993 के कार्य संचालन नियमों के विरुद्ध भी है।
क्या अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है?
- अध्यादेश इस तर्क पर आधारित है कि सर्वोच्च न्यायालय ने खुद ही राष्ट्रीय राजधानी के लिए कानून बनाने के लिए संसद के श्रेष्ठ अधिकार को स्वीकार किया है।
- सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका में दावा किया गया है कि दिल्ली एक "पूर्ण राज्य" नहीं है, बल्कि केवल केंद्र शासित प्रदेश है जो केंद्र का विस्तार है।
- केंद्र ने तर्क दिया है कि संसद दिल्ली की वास्तविक विधायिका है।
- 11 मई को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इसको स्वीकार करते हुए कहा था कि हालांकि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है, परन्तु इसकी विधान सभा को संवैधानिक रूप से राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति सौंपी गई है।
- अनुच्छेद 239एए(3) में परिकल्पित संवैधानिक योजना के तहत, एनसीटीडी को विधायी शक्ति दी गई है जो सीमित होने के बावजूद कई क्षेत्रों में राज्यों के समान है।
- 11 मई के फैसले में यह भी उल्लेख किया गया था कि 2018 की संविधान पीठ के फैसले में बहुमत ने कहा था कि एनसीटीडी को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, संघवाद की अवधारणा अभी भी एनसीटीडी पर लागू होगी।
- न्यायालय ने माना था कि दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति उसकी विधायी शक्ति के साथ "सह-विस्तृत" थी।
एलजी की शक्तियों के बारे में अध्यादेश और निर्णय क्या कहते हैं?
- अध्यादेश ने सेवाओं के संबंध में एनसीसीएसए द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय पर अंतिम निर्णय लेने की शक्ति देकर एलजी कोन्यायालय के आदश के पहले वाली स्थिति में पहुंचा दिया है।
- एलजी की शक्तियों को 2018 में एक अन्य संविधान पीठ के फैसले से कम कर दिया गया था, अब अध्यादेश द्वारा उसे भी समाप्त कर दिया गया है।
- 11 मई को अदालत ने 2018 में अपने निर्णय के साथ सहमति जताई थी कि एनसीटीडी के विधान सभा के विधायी डोमेन के भीतर आने वाले मामलों के संबंध में कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एलजी अनुच्छेद 239AA (4) के तहत मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हुए थे।
- अदालत ने कहा था कि एलजी को दी गई "सीमित विवेकाधीन शक्ति" का भी "राष्ट्रीय हित और वित्त के मामलों जैसे दुर्लभ परिस्थितियों” में सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए।
- एलजी हर मामले को राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।
आगे क्या हो सकता है?
- अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है
- ।यदि 2023 के अध्यादेश को अलग से चुनौती दी जाती है, तो संघ को "असाधारण या आकस्मिक स्थिति" को साबित करना होगा, जिसके कारण संविधान पीठ द्वारा निर्णय देने के बाद अध्यादेश को लाना करना आवश्यक हो गया।
- डीसी वाधवा बनाम बिहार राज्य(1986) मामले में संविधान पीठ ने कहा था कि अध्यादेश जारी करने की कार्यपालिका की शक्ति को "राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विकृत" नहीं किया जाना चाहिए।