(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन व कार्य) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, न्यायालय द्वारा जमानत के लिए किसी आरोपी (अभियुक्त) व्यक्ति को गूगल मैप पर अपनी लोकेशन शेयर करने जैसी शर्तें नहीं लगाई जा सकती हैं। साथ ही, यदि आरोपी विदेशी नागरिक है, तो न्यायालय संबंधित दूतावासों या उच्चायोगों से आरोपी के देश न छोड़ने संबंधी ‘आश्वासन प्रमाण पत्र’ (Certificate of Assurance) की मांग भी नहीं कर सकता है।
हालिया वाद
- 31 मई, 2022 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाइजीरियाई नागरिक फ्रैंक विटस को ड्रग तस्करी के एक मामले में इस शर्त पर जमानत दे दी कि वह एवं उसका सह-आरोपी जाँच अधिकारी को अपनी वास्तविक अवस्थिति की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गूगल मैप पर अपनी वास्तविक स्थिति को साझा (Location Sharing) करेंगे।
- साथ ही, न्यायालय ने जमानत की शर्तों में उन आरोपियों को नाइजीरियाई उच्चायोग से देश (भारत) छोड़कर न जाने संबंधी आश्वासन प्रमाणपत्र प्राप्त करने की भी आवश्यकता जोड़ दी थी।
याचिकाकर्ता के तर्क
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) द्वारा गिरफ्तार आरोपियों (याची) ने न्यायालय में तर्क दिया कि उनके पास गिरफ़्तारी के लिए कोई भी सबूत नहीं था। इसलिए, वे सुप्रीम कोर्ट लीगल एड कमेटी रिप्रेजेंटिंग अंडरट्रायल प्रिजनर्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स (1994) के निर्देशों के अनुसार जमानत के हकदार हैं।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि जब स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS) के तहत मामलों के निपटारे में देरी होती है और आरोपी पर 10 वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले अपराध का आरोप है, तो उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा, यदि :
- वह कम-से-कम पाँच वर्ष जेल में रहा हो
- वह एक लाख रुपए की जमानत राशि और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करे
- अन्य ‘सामान्य शर्तों’ में विदेशी नागरिकों के मामले में संबंधित दूतावास से देश न छोड़ने का आश्वासन प्रमाणपत्र प्राप्त करना शामिल था।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसी आधार पर याचिकर्ताओं को जमानत प्रदान की किंतु गूगल मैप पर उनके लोकेशन शेयरिंग की आवश्यकता को भी जोड़ दिया गया।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- दो न्यायाधीशों की पीठ के अनुसार, यदि आरोपी विदेशी नागरिक है तो न्यायालय द्वारा संबंधित दूतावासों या उच्चायोगों से आरोपियों के देश छोड़कर न जाने संबंधी ‘आश्वासन प्रमाणपत्र’ की मांग नहीं की जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, इस तरह का प्रमाणपत्र प्राप्त करना ‘आरोपी के नियंत्रण से परे’ (Beyond the Control of the Accused) है क्योंकि यदि दूतावास या उच्चायोग उचित समय में ऐसा प्रमाणपत्र नहीं प्रदान करता है, तो आरोपी को ऐसी शर्त के आधार पर जमानत से वंचित नहीं किया जा सकता है जिसका पालन करना आरोपी के लिए असंभव है।
- लोकेशन शेयरिंग के मामले में गूगल के हलफनामे में यह उल्लेख था कि पिन किए गए स्थान को साझा करने से उपयोगकर्ता या उनके डिवाइस की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग सक्षम नहीं होती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि आरोपित शर्त पूर्णतया निरर्थक है क्योंकि इससे आरोपी व्यक्तियों को ट्रैक करने में मदद नहीं मिलती है।
- न्यायालय ने यह भी माना कि जमानत की ऐसी कोई भी शर्त जो पुलिस/जांच एजेंसी को किसी भी तकनीक का उपयोग करके या अन्य तरीके से आरोपी (व्यक्ति) की प्रत्येक गतिविधि को ट्रैक करने में सक्षम बनाती है, अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन है।
ज़मानत एवं ज़मानत से संबंधित शर्तें
- जाँच या ट्रायल का सामना कर रहे आरोपी या कैदी की बाद की सुनवाई के दौरान उसकी उपस्थिति के लिए दी गई सुरक्षा या प्रतिभूत के बदले में आरोपी या कैदी की अस्थायी रिहाई को ’जमानत’ कहते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने ‘खिलारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार वाद’ (2009) में निर्णय दिया कि अपीलीय न्यायालय को जमानत देते समय अपने कारणों को दर्ज करना चाहिए।
- इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के अनुसार, उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय हिरासत में लिए गए किसी भी आरोपी व्यक्ति को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दे सकता है।
- यह उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय को धारा 437(3) के उद्देश्यों के लिए आवश्यक समझी जाने वाली कोई भी शर्त लगाने की अनुमति प्रदान करता है :
- जिसमें ऐसी शर्तें सूचीबद्ध हैं जो सात वर्ष या उससे अधिक जेल की सजा वाले अपराधों के मामलों में लगाई जा सकती हैं।
- इनमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि इसके समान ही आरोपी कोई अपराध न करे और वह मामले से जुड़े लोगों को न धमकाएँ।
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विभिन्न उच्च न्यायालयों की जमानत शर्तों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णय
उड़ीसा उच्च न्यायालय से संबंधित
- ‘सिबा शंकर दास उर्फ़ पिंटू बनाम ओडिशा राज्य’ मामले में उड़ीसा उच्च न्यायालय की जमानत शर्त में इस बात का उल्लेख था कि याची सार्वजनिक रूप से कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न नहीं करेगा और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होगा।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए निर्णय दिया कि ऐसी शर्त लगाने से याची के मौलिक अधिकारों का हनन होगा और ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती है।
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय से संबंधित
- सर्वोच्च न्यायालय ने तेलुगु देशम पार्टी प्रमुख एवं आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू को जमानत देने में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस निर्देश को हटाने का आदेश दिया जिसमें नायडू को जमानत पर रिहा करने की शर्त के रूप में सार्वजनिक रैलियों एवं बैठकों में भाग लेने से रोक दिया गया था।
राजस्थान उच्च न्यायालय से संबंधित
- विगत वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई उस शर्त को खारिज कर दिया जिसमें आरोपी को एक लाख रुपए का जुर्माना तथा एक लाख रुपए की जमानत के साथ ही 50,000 रुपए के दो अन्य जमानत बांड जमा करने का निर्देश दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के अनुसार, जमानत की शर्तें इतनी कठोर नहीं हो सकती हैं कि उनका अस्तित्व ही जमानत से इनकार करने के बराबर हो जाए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय से संबंधित
- जुलाई 2022 में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने आजम खान को जमानत देते हुए रामपुर स्थित मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय को सील करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जमानत शर्त को खारिज कर दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि उच्च न्यायालय ने उन मामलों का उल्लेख किया है जो संबंधित आरोपी के खिलाफ दर्ज अपराध के संदर्भ में जमानत के लिए प्रार्थना पर विचार करने से संबंधित नहीं हैं।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय से संबंधित
- मार्च 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें उसने यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को जमानत की पूर्व शर्त के रूप में पीड़िता से अपनी कलाई पर राखी बंधवाने का निर्देश दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अधीनस्थ न्यायालयों को आरोपी एवं पीड़िता के बीच संपर्क की आवश्यकता या अनुमति देने से बचना चाहिए और शिकायतकर्ता को आरोपी द्वारा आगे के उत्पीड़न से बचाना चाहिए।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार जमानत की शर्तों और आदेशों में महिलाओं तथा समाज में उनकी स्थिति के संबंध में रूढ़िवादी या पितृसत्तात्मक धारणाओं को प्रतिबिंबित करने से बचना चाहिए।